Thursday, March 28, 2019

31 रूपये में क्या नहीं आता?


हाथ में टीवी का रिमोट होना ही महसूस करा देता है कि घर की सत्ता हमारे हाथ में है। कभी घर की दादी पूजा कर रही होती थी, पूजा की घण्टी बजाते-बजाते भी निर्देश देती थी कि बहू दूध देख लेना, कहीं उफन ना जाए, पोते को कहती कि बेटा जरा मेरा चश्मा पकड़ा जाना, फिर जोर से बेटे को आवाज लगाती कि जाते समय मेरी दवा लाना भूल मत जाना। दादी पूजा घर में है लेकिन पूरे घर का रिमोट उनके हाथ में है, सभी को हर पल चौकन्ना रखती थी। अब दादी वाले घर तो कम होते जा रहे हैं लेकिन मन बहलाने को रिमोट हाथ आ गया है, जैसे ही पतिदेव के हाथ लगता है, बटन दबते ही जाते हैं और जब तक 100-50 चैनल बदल लिये नहीं जाते तब तक समाचार देखना सम्भव नहीं होता। पतिदेव रिमोट से चैनल बदल रहे होते हैं और पत्नी अल्मारी में से साड़ियों को हाथों से सरका रही होती है, यह नहीं, यह भी नहीं! 10-20 को जब तक परे धकेल नहीं देती तब तक साड़ी का चयन नहीं होता। बच्चे खिलौनों में उलझे हैं, सारे ही खिलौने कमरे में फैले हैं, लेकिन मजा नहीं आ रहा और छोटा बच्चा रसोई में जा पहुँचता है, कटोरी-चम्मच को बजाने से जो आवाज आती है, बस वही उसका आनन्द है। ढेर सारी चीजों में से अपनी पसन्द चुनना हमारी आदत है। यदि चुनने का अधिकार नहीं मिला तो लगता है जीवन ही बेकार गया। किसी युवा को यदि 10-20 लड़कियाँ या लड़के देखने को नहीं मिलें हो तो वह कभी ना कभी कह ही देंगे कि जिन्दगी में हमने क्या किया! सब्जी वाले की दुकान जब तक सब्जी से भरी ना हो तो क्या खाक सब्जी खरीदने का आनन्द है!
इन दिनों ट्राई ने यह आनन्द छीन लिया है, कहते हैं कि जो चैनल देखने हो, बस उतने ही रखो और पैसे बचाने के मजे लो। हुआ यूँ कि कुछ बुजुर्गवारों ने कहा कि हम तो केवल दाल-रोटी ही खाते हैं, चपाती भी कम से कम होती जा रही हैं तो भला 56 भोगों वाली पूरी थाली के पैसे क्यों दें! दूसरे ने कहा कि सच कह रहे हो, मैं तो टीवी पर केवल समाचार ही देखता हूँ, तो भला 1000 चैनल के पैसे क्यों दूँ! पहुँच गये ट्राई के दरबार में, मुकदमा दर्ज करा दिया। न्याय तो पैरवी करने वाले के हिसाब से मिलता है, ट्राई ने कहा कि सच है आप पूरे पैसे क्यों देंगे! फरमान जारी हो गया कि जितने चैनल देखते हो, बस उतने का ही पैसा दो। बड़ा अच्छा लगा, सुनने में। अब दो दो-चार चैनल के ही पैसे देंगे। लेकिन यह क्या! जो रिमोट घुमाते थे, उनका तो खेल ही समाप्त हो गया! ऐसे लगने लगा जैसे बोईंग विमान की जगह हेलीकोप्टर में यात्रा कर रहे हों। अभी रिमोट हाथ में लिया ही था कि मन ही मन सोच रहे थे और निर्देश दे रहे थे कि बीबी – दाएं घूम, बीबी बाएं घूम, लेकिन चैलन तो वहीं अटक गया। अब घुमा लो अपनी अंगुलियों पर दुनिया को! सारा मिजाज ही ठण्डा पड़ गया। पति बड़बड़ा रहा है, पत्नी बड़बड़ा रही है, बच्चे भी बड़बड़ा रहे हैं कि हमने भूसें के ढेर में से सुई खोज ली है, ऐसा आनन्द ही समाप्त हो गया। माना कि अपने घर का ही खाना खाना है लेकिन आसपास के घरों में ताक-झांक करके खाने का आनन्द ही कुछ और है। ऐसा लग रहा है कि टीवी पुराने दूरदर्शन का डिब्बा हो गया। समाचार देख लो और कृषिदर्शन देख लो। एचडी चैनल लेते हैं तो एसडी नहीं ले सकते और एसडी भी ले लेते हैं तो बजट तो लिमिट से बाहर हो जाता है। देखना हमें चार ही है लेकिन भरी पूरी दुकान से ही सौदा खरीदेंगे ना! भाई ट्राई वालों हमारे रिमोट चलाने का आनन्द हमसे मत छीनो, हम तो इसी के सहारे जीवन यापन कर रहे हैं। जैसे ही हमारे हाथ में भूले भटके से रिमोट आता था हम कहीं की महारानी बन जाते थे, हमें भी रिजेक्ट करने का और चयन करने का सुख मिल जाता था। लेकिन हाय! घर में ही पुस्तकालय बना रखा था, जब मन करता किताब उठाकर पढ़ लेते थे लेकिन अब कहा जा रहा है कि आप सीमित रूप से ही किताबें रख सकेंगे, कौन सी किताब छाटूं और कौन सी नहीं, समझ ही नहीं आ रहा है। छाँटना भी टेढ़ी खीर है, कोई कह रहा है कि 31 रूपये में क्या नहीं आता है? लेकिन जब 31 रूपये ढूंढते हैं तो कहीं नहीं मिलते। कभी सोनी में अच्छा सीरियल आ जाता है तो कभी जी पर, कभी कौन सी फिल्म किस पर आ जाएगी, कुछ कह नहीं सकते, तो भाई वाट लग गयी है हमारी तो। सबसे बड़ी वाट तो चैनल छांटने में लगी है, किस को छांटे और कैसे छांटे, किसी के पास सरल रास्ता हो तो बता दो नहीं तो हम पैसे भी देते जाएंगे और भूखे ही रह जाएंगे। हमें तो लग रहा है कि भूसे में से सुई ढूंढना जैसा काम हो गया है। सत्ता का सुख भी गया और सुई ढूंढने की मुसीबत सर पड़ी वो अलग।

1 comment:

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन अब अंतरिक्ष तक सर्जिकल स्ट्राइक करने में सक्षम... ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...