Saturday, July 25, 2009

लोरी - गुब्‍बारे में सैर करूँगी

अपनी नाती के लिए एक लोरी बनायी थी। सोचा कि सभी नाती, पोतों के काम आएगी तो यहाँ पोस् कर रही हूँ। आप सभी की प्रतिक्रिया का इन्तजार रहेगा।


गुब्‍बारे में सैर करूँगी

नानी से मिल आऊँगी

जब भी मुझको निदियाँ आए

चन्‍दा से मिल आऊँगी।


एक टोकरी सपने होंगे

मुठ्ठी में भर लाऊँगी

थोड़ा-थोड़ा सबको दूँगी

आँखों में भर आऊँगी

बगिया में खेलूँगी ऐसे

सबके मन पर छाऊँगी।


नानी की बाँहों का झूला

मम्‍मी से मैं पाऊँगी

हिचकी-हिचकी याद करूँगी

सपनों में मिल आऊँगी

नानी की पप्‍पी मैं लेकर

जल्‍दी वापस आऊँगी।

Thursday, July 2, 2009

नवगीत - एक गाँव में देखा मैंने

एक गाँव में देखा मैंने

सुख को बैठे खटिया पर

अधनंगा था, बच्‍चे नंगे,

खेल रहे थे मिटिया पर।


मैंने पूछा कैसे जीते

वो बोला सुख हैं सारे

बस कपड़े की इक जोड़ी है

एक समय की रोटी है

मेरे जीवन में मुझको तो

अन्‍न मिला है मुठिया भर

एक गाँव में देखा मैंने

सुख को बैठे खटिया पर।


दो मुर्गी थी चार बकरियां

इक थाली इक लोटा था

कच्‍चा चूल्‍हा धूआँ भरता

खिड़की ना वातायन था

एक ओढ़नी पहने धरणी

बरखा टपके कुटिया पर

एक गाँव में देखा मैंने

सुख को बैठे खटिया पर।


लाखों की कोठी थी मेरी

तन पर सुंदर साड़ी थी

काजू, मेवा सब ही सस्‍ते

भूख कभी ना लगती थी

दुख कितना मेरे जीवन में

खोज रही थी मथिया पर

एक गाँव में देखा मैंने

सुख को बैठे खटिया पर।