Thursday, January 24, 2013

जीवन के दो मूल शब्‍द - अपमान और सम्‍मान (insult & respect)

मान शब्‍द मन के करीब लगता है, जो शब्‍द मन को क्षुद्र बनाएं वे अपमान लगते हैं और जो शब्‍द आपको समानता का अनुभव कराएं वे मन को अच्‍छे लगते हैं। दूसरों को छोटा सिद्ध करने के लिए हम दिनभर में न जाने कितने शब्‍दों का प्रयोग करते हैं। इसके विपरीत दूसरों को अपने समान मानते हुए उन्‍हें आदर सूचक शब्‍दों से पुकारते भी हैं। दुनिया में रोटी, कपड़ा और मकान के भी पूर्व कहीं इन दो शब्‍दों का जमावड़ा है। सम्‍पूर्ण पोस्‍ट पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें - http://sahityakar.com/wordpress/%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%A8-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%A6%E0%A5%8B-%E0%A4%AE%E0%A5%82%E0%A4%B2-%E0%A4%B6%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%A6-%E0%A4%85%E0%A4%AA%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8/

Saturday, January 19, 2013

बाकी है एक और बर्बरता के समाचार

अभी एक और ज्‍वलंत समस्‍या से हमें दो-हाथ होना है। अभी पुरुष बर्बरता के कारण महिलाएं संकट में पड़ी है, देश और दुनिया इनकी बर्बरता का हल ढूंढ रहे है। सारा ही देश आंदोलित है, लेकिन तर्क-वितर्क से समाधान नहीं समझ आ रहा। पुरुष की बर्बरता सभी ने स्‍वीकार की है लेकिन उसे अनुशासित करना होगा, उस पर नियन्‍त्रण रखना होगा, ऐसी आवाज कहीं से भी नहीं आ रही है। शेष पोस्‍ट को पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें - http://sahityakar.com/wordpress/%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%B9%E0%A5%88-%E0%A4%8F%E0%A4%95-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B8%E0%A4%AE/

Saturday, January 12, 2013

स्‍वामी विवेकानन्‍द के सांस्‍कृतिक नवजागरण में महिलाओं का योगदान


स्‍वामी विवेकानन्‍द की 150वीं जन्‍मशताब्‍दी वर्ष पर विशेष

स्‍वामी विवेकानन्‍द बाल्‍यकाल से ही सांस्‍कृतिक एवं आध्‍यात्मिक नवजागरण के प्रखर चिंतक रहे हैं। बाल्‍यकाल में राम-सीता के युगल रूप की आराधना करते हुए, भक्‍त प्रहलाद और नचिकेता सहित अनेक पौराणिक आदर्शों का नाट्य मंचन उनके प्रतिदिन के कार्यकलापों में निहित था।
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Sunday, January 6, 2013

आपको अभी तक याद है आपकी छत?

घर की छत, शाम होते ही पानी से सरोबार हो जाने वाली छत। सुबह के साथ ही गहमा-गहमी वाल छत। शाम होते ही पहले पानी से छिड़काव किया जाता, बड़े करीने और सलीके से उसे सुखाया जाता और फिर कितनी खुबसूरती के साथ बिस्‍तर लगाए जाते।
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Wednesday, January 2, 2013

निरर्थक सदवचनों से समाज का वीरत्‍व समाप्‍त हो गया है



कतिपय सदवाक्‍य, हमें अंधकार में धकेल रहे हैं
अभी एक सदवाक्‍य पढ़ा - don’t find fault, find a remedy.
चिकित्‍सकीय भाषा में एक बात कही जाती है - रोग का निदान हो जाए तो चिकित्‍सा हो जाती है।
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