Wednesday, July 31, 2013

कलाकार और सम्‍मान

यदि आज ये कलाकार नहीं होते तो हमारा जीवन कैसा होता? हम प्रकृति के समक्ष खड़े होते, निहत्‍थे बनकर। लेकिन मनुष्‍य ने प्रकृति को संवार दिया, उसे सुसंस्‍कारित कर दिया। आज सृष्टि का जो स्‍वरूप हमें दिखायी देता है, वह स्‍वरूप इन कलाकरों के कारण ही है। इनके लिए जितने भी शब्‍द लिखे जाएं, वे कम हैं। 

Friday, July 26, 2013

Monday, July 8, 2013

थाईलैण्‍ड से कम्‍बोडिया की ओर

पटाया में हमें एक स्‍थान और दिखाया गया और वह था - ज्‍वेल्‍स फेक्‍ट्ररी। किस प्रकार से हीरे जवाहरात धरती से निकलते हैं, फिल्‍म शो के माध्‍यम से दिखाया गया और फिर कीमती जवाहरात से लदी पड़ी फेक्‍ट्री को दिखाया गया। हीरे-जवाहरात से इतनी सुन्‍दर कलाकृतियां बना रखी थी और उनका मूल्‍य लाखों में था। फोटो खींचने की सख्‍त मनाही थी। किसी को भी यदि वहाँ खरीददारी करनी हो तो जेब भारी-भरकम होनी चाहिए। सभी प्रकार के पत्‍थर वहाँ मौजूद थे। हीरा, पन्‍ना, माणक, वैदूर्य और न जाने क्‍या क्‍या। फटी आँखों से देखने के अलावा हमारे पास और कोई विकल्‍प नहीं था। एक और स्‍थान था पटाया-पार्क, जहाँ जंपिंग टॉवर था। समयाभाव के कारण वहाँ भी टॉवर के ऊपर हम नहीं जा पाए, बस नीचे से ही देखते रहे। बहुत विशाल और ऊँचाई पर स्थित था टॉवर। वहीं नीचे घूमते रहे और एक पेड़ पर नजर ठहर गयी। पेड़ फलों से लदा था लेकिन हमारे लिए अन्‍जान था। बाद में गाइड ने बताया कि यह सारा फ्रूट है।

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Wednesday, July 3, 2013

कम्‍बोडिया हिन्‍दी सम्‍मेलन - खट्टे-मीठे अनुभव

हिन्‍दी सम्‍मेलन के संयोजक का फेसबुक पर निमंत्रण मिला। कहीं बाहर जाने का मन हो रहा था और यदि पर्यटन के साथ साहित्‍य का साथ हो जाए तो ऐसा लगता है जैसे सोने पर सुहागा। क्‍योंकि कुछ लोगों के मनोरंजन का अर्थ होता है नाचना, गाना और खाना। लेकिन हम लोगों के मनोरंजन का अर्थ होता है बौद्धिक चर्चा। जब तक मानसिक खुराक नहीं मिले लगता है कुछ नहीं मिला। फिर जानना था आज के थाईलैण्‍ड को जो कल तक भारत का श्‍याम देश था और जानना था कम्‍बोडिया को जो कल तक भारत का कम्‍बौज देश था।
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