Wednesday, March 16, 2016

तेरा सूरज अलग और मेरा सूरज अलग

अब बिसर जाने दो – सम्मान का मोह, अब परे धकेल दो मेरेपन का भाव, अब मत सोचो किसी को संस्कार देने की बात। अब तो बस स्वयं में ही जीवन की तलाश करनी है।
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Saturday, March 12, 2016

इन्वेस्टमेंट

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तुम्हारे पिता ने एक इंवेस्टमेंट किया था, मुझे एक बीज, अपनी कोख रूपी बैंक में सुरक्षित रखने को दिया था। कहा था कि यह मेरा बहुमूल्य इंवेस्टमेंट है, जब हम बूढ़े हो जायेंगे तब यह हमें जीवन का आधार देगा। मैंने इसे अपना मन दिया, आत्मा का अंश दिया और इस बीज के संवर्धन के लिये रस, रक्त, मांस, मज्जा सभी कुछ बिना कृपणता के दिया। जब उस बीज का साक्षात स्वरूप दिखायी दिया तब तुम्हारे पिता ने अपने सुरक्षित हाथों से उसका पालन-पोषण किया। हमारा तन-मन-धन इसी इंवेस्टमेंट के इर्द-गिर्द घूमता रहा, बस एक ही सपना था कि इसे सबल बनाया जाये जिससे हमारा भविष्य सुरक्षित हो सके।

Tuesday, March 8, 2016

मुझमें ही जीवन अमृत हैं

क्या-क्या नहीं हूँ मैं! मैं सृष्टि की जननी हूँ, मैं कोमलता का सरल प्रवाह हूँ। मुझसे ही होकर प्रेम निकलता हैं, मैं ही आनन्द की जननी हूँ। पोस्ट को पढ़ने के लिये इस लिंक पर क्लिक करें - 
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Saturday, March 5, 2016

आजाद तो प्रकृति भी नहीं है


जब आँधी चलती है तब धूल का गुबार उठता ही है. पेड़ से पत्ते झड़ते ही हैं। जब भूकम्प आता है तब समुद की लहरे तूफानी हो ही जाती है, जब मेघ गरजते हैं तब बरसाती आफत अपना कहर बरपाती ही है। क्या कहेंगे इसे? प्रकृति का नियम या प्रकृति की बर्बरता? जिस प्रकृति को हम जड़ मान लेते हैं, उसमें भी नियम हैं तो जहाँ चेतना है वह बिना नियम कैसे रह सकती है? इस सृष्टि के प्रत्येक प्राणी किसी ना किसी नियम से बद्ध है, फिर वे एकेन्द्रिय हों या पंचेन्द्रिय। 
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Tuesday, March 1, 2016

कभी घर का मन भी रूठ जाता है

जब हम घर की चाहत रखते हैं तब घर हमारे सामने आ खड़ा होता है लेकिन जब हम घर से दूर भागते हैं तो घर भी हमारी आँखों से ओझल हो जाता है। 
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