Monday, August 27, 2018

बहन की मुठ्ठी में सम्मान रख दो


कई बार आज का जमाना अचानक आपको धक्का मारता है और आप गुजरे हुए जमाने में खुद को खड़ा पाते हैं, कल भी मेरे साथ यही हुआ। बहने सज-धज कर प्रेम का धागा लिये भाई के घर जाने लगी लेकिन भाई कहने लगे कि आज तो बहनों को कुछ देना पड़ेगा! कुछ यहाँ लिखने भी लगे कि बहनों की तो कमाई का दिन है आज। मुझे मेरी माँ का जमाना याद आ गया। जैसे ही गर्मियों की छिट्टियां होती और माँ के पास भाई का बुलावा आ जाता और माँ हमें लेकर अपने मायके चले जाती। ना भाई कभी कारू का खजाना लुटाता और ना ही माँ कभी उलाहना देती, बस मुठ्ठी में जो भी प्यार से रख देता, माँ के लिये साल भर के प्रेम की सौगात होती। मामा माँ को इतना सम्मान देते कि कभी मामी के स्वर ऊँचे नहीं होते। जब हमारे घर किसी भाई का विवाह होता तो मामा सबसे पहले आकर खड़े होते और वे मायरे में क्या लाए हैं यह कोई नहीं पूछता बस माँ के खुशी के आँसू ही उनका खजाना बता देते। राखी पर तो कोई आने-जाने का बंधन कभी दिखायी ही नहीं दिया। बस माँ की आँखों में हमेशा विश्वास बना रहा कि मेरी हर जरूरत पर मेरे भाई सबसे पहले आकर खड़े होंगे और हमारे मामा ने कभी उनके विश्वास को टूटने नहीं दिया। भाई-बहन का सम्मान वाला प्रेम मैंने अपने घर देखा है। माँ का जमाना बीता फिर हमारा जमाना आया, सम्मान तो अटल खड़ा था लेकिन उसकी बगल में चुपके से पैसा भी आकर खड़ा हो गया था। जैसे ही पैसा आपका आवरण बनने लगता है, रिश्तों से आवाजें आने लगती हैं जैसे यदि आपने बरसाती पहन रखी है तो उससे आवाज अवश्य होगी ही। लेकिन फिर  भी रिश्ते में सम्मान  बना रहा और हमारी आँखों में भी वैसे ही आँसू होते थे जैसे माँ की आँखों में होते थे, विश्वास के आँसू।
लेकिन ....... आज वैसा प्यार कहीं दिखायी नहीं देता है, सब ओर पैसे से तौल रहे हैं इस अनमोल प्यार को। बहन क्या लायी और भाई ने क्या दिया, बस इसी पड़ताल में लगे दिखते हैं। कोई कह रहा है कि आज तो बहनों का दिन है, आज तो बहनों की चाँदी है। त्योहार भाई का और पैसे के कारण हो गया बहनों का! बहन रात-दिन इसी में लगी रहे कि मेरा भाई हमेशा खुश रहे, वह मेरे ससुराल के समक्ष मेरा गौरव और सम्मान  बनकर खड़ा रहे और भाई रिश्ते को पैसे से तौल रहा है! कल राखी थी, मेरी ननद को अचानक बाहर जाना पड़ा, मेरे पैर के नीचे से धरती खिसक गयी कि राखी कौन बांधेगा? लेकिन वह आ गयी। तब पता लगा कि जिनके बहने नहीं होती वे भाई इस प्यार को पाने से कितना वंचित होते होंगे! यह धागा प्रेम का है इसे पैसे से मत तौलो। यदि आज भी तराजू के एक पलड़े में राखी रख दोगे और दूसरे में तुम्हारा सारा धन तो भी पलड़ा हिलेगा नहीं, लेकिन यदि तुमने सम्मान का एक पैसा ही रख दिया तो पलड़ा ऊपर चले जाएगा। बहनें सम्मान के लिये होती हैं, इनसे पैसे का हिसाब मत करो, ये ऐसा अनमोल प्यार है जो दुनिया के सारे रिश्तों के प्यार से बड़ा है। इस रिश्ते पर किसी की आंच भी मत आने दो, भाई का सम्मान ही इस रिश्ते को किसी भी उलाहने से बचा सकता है। भाई का बड़प्पन भी इसी में है कि वह अपनी बहन को कितना सम्मान देता है।
मखौल में मत उड़ाओ इस रिश्ते को, यह भारत भूमि की अनमोल धरोहर है। जहाँ दुनिया अपनी वासना में ही प्रेम को ढूंढ रही है, वहीं भारत में यह अनमोल प्यार आज भी हम भाई-बहनों के दिलों में धड़कता है। पैसे को दूर कर दो, बस प्यार से बहन की मुठ्ठी में सम्मान रख दो, जैसे मेरी माँ के हाथ में रखा जाता था। इतना सम्मान दो कि आने वाली पीढ़ी भी उछल-उछलकर कहे कि आज हमारी बुआ आयी है, जैसे हम कहते थे। मुँह से बोले शब्द ही कभी मिटते नहीं तो भाई लोग तुम तो धमाधम लिखे जा रहे हो, बहनों के प्यार को पैसे से तौल रहे हो! हम बहनें तो नहीं तौलती पैसे से, हमें तो प्रेम का ही धागा बांधना आता है, हमने इसी धागे को राखी का रूप दिया है। जो सबसे सुन्दर लगता है बस हम वही धागा खरीद लेते हैं क्योंकि हम मानते हैं कि हमारा भाई भी इतना ही सुन्दर है।
www.sahityakar.com

4 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (28-08-2018) को "आया भादौ मास" (चर्चा अंक-3077) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

अजित गुप्ता का कोना said...

शास्त्रीजी आभार।

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन नेत्रदान कर दुनिया करें रोशन - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

अजित गुप्ता का कोना said...

आभार सेंगर जी