Sunday, July 2, 2017

बुजुर्ग हमारे इतिहास की किताब हैं

माँ हमारे बारे में हमें छोटी-छोटी कहानियां सुनाती थी, अब वही कहानियाँ हमारे अन्दर घुलमिल गयी हैं। हमारा इतिहास बन गयी हैं। जब वे सुनाती थी कि गाँव में तीन कोस पैदल जाकर पानी लाना होता था तब उस युग का इतिहास हमारे सामने होता था। माँ अंग्रेजों की बात नहीं करती थी, बस अपने परिवार के बारे में बताती थी और हम उसी ज्ञान को पाकर बड़े हुए हैं। हम जब भी उन प्रसंगों को याद करते हैं तो वे बातें इतिहास बनकर हमारे सामने खड़ी हो जाती हैं। बचपन तक ही हम माँ से अपनी कहानियां सुन सके फिर तो हम स्याणे हो चुके थे और स्वयं को ज्ञानवान भी समझने लगे थे तो भला कौन उन घर-परिवार की बातों को सुने! जमाना तो दुनिया की जानकारी का था तो पिताजी बाहरी ज्ञान दे देते थे। उनके दिये ज्ञान की बदौलत हम कुछ जानकार हो गये थे। लेकिन जब हमें फुर्सत मिली तो महसूस हुआ कि बहुत कुछ छूट गया, फिर हम भाइयों से कहने लगे कि जब भी हम मायके आएं हमें परिवार के किस्से सुनाया करो। लेकिन हमारी इच्छा वे पूरी नहीं कर पाते हैं क्योंकि शायद उन्होंने माँ से वे किस्से सुने ही नहीं तो उन्हें पता ही नहीं कि इन किस्सों से ही इतिहास बनता है। वर्तमान ज्ञान तो सभी के पास है लेकिन विगत का ज्ञान तो बुजुर्गों के पास ही है। 
बुजुर्ग व्यक्ति की क्या अहमियत होती है? हाथ-पैर हिलने लगते हैं, याददाश्त जाने लगती है, कानों से सुनायी नहीं देता, आदि-आदि। परिवार के युवा परेशान होने लगते हैं, वे उन्हें अपने आनन्द का बोझ समझने लगते हैं। लेकिन मुझे लगता है कि बुजुर्ग व्यक्ति कितना ही बुजुर्ग हो जाए, वह हमारे लिये इतिहास के पन्ने बन जाता है। परिवार का इतिहास, समाज का इतिहास, देश का इतिहास, सारा ही उसके अन्दर होता है, बस हमें पन्नों को उलटने की जरूरत है। मैं जब भी बड़ों के बीच बैठती हूँ तो उनसे यही आग्रह रहता है कि वे कुछ विगत का कथानक सुनाएं। मैं भी कोशिश करती हूँ कि मैं भी बच्चों को उनके परिवार के इतिहास से जोड़ू। यदि हमने इस सत्य को समझ लिया कि बुजुर्ग हमारी किताब हैं, और इनके पास बैठने से हमें विगत का पता लगेगा तो फिर बुजुर्ग कभी बोझ नहीं बनेंगे।
जब मुझे सुनाया जाता है कि मेरा बचपन किस भाई के कंधों पर बैठकर बीता तो मैं प्रेम के धागे से स्वत: बंध जाती हूँ, जब मुझे बताया जाता है कि कैसे पिताजी हमारे लिये सोचते थे कि उनकी संतान डॉक्टर-इंजीनियर ही बने, तो हम गर्व से भर जाते हैं। मैं आजकल लिखकर या बोलकर कहानी सुनाने लगती हूँ, जिससे नयी पीढ़ी और हमारे बीच दूरियाँ कम हो। उन्हे पता होना ही चाहिये कि उनके माता-पिता जो आज समर्थ दिखायी दे रहे हैं, उसके पीछे किसका परिश्रम है। जब तक हम बुजुर्गों को घेरकर नहीं बैठेंगे तब तक पता नहीं लगेगा कि कैसे यह परिवार बना था! जिन बुजुर्गों को हम कबाड़ समझने लगे हैं, जब उनके माध्यम से इतिहास में झांकेंगे तब उनके प्रति श्रद्धा से भर जाएंगे। इसलिये इनका उपयोग लो, इन्हें घेरकर बैठो, जीवन के कितने पाठ अपने आप समझ आ जाएंगे। कैसे माली ने बीज बोया था, कैसे उसने खाद डाली थी, कब कोंपल फूटी थी और कब कली खिली थी? आज जो फूल बनकर झूम रहा है, वह उसी माली की मेहनत है, जिसे तुम अंधेरों में धकेल चुके हो। इसलिये बेकार मत करो इस धरोहर को, इसे यादों के पन्नों में इतिहास बनने दो। यह पीढ़ी दर पीढ़ी हमें हमारी जड़ों से जोड़ता रहेगा और घर में कभी कोई बुजुर्ग घूरे के ढेर में नहीं फेंका जाएगा।

9 comments:

Satish Saxena said...


हिन्दी ब्लॉगिंग में आपका लेखन अपने चिन्ह छोड़ने में कामयाब है , आप लिख रही हैं क्योंकि आपके पास भावनाएं और मजबूत अभिव्यक्ति है , इस आत्म अभिव्यक्ति से जो संतुष्टि मिलेगी वह सैकड़ों तालियों से अधिक होगी !
मानती हैं न ?
मंगलकामनाएं आपको !
#हिन्दी_ब्लॉगिंग

अजित गुप्ता का कोना said...

आभार सतीश जी

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

काश ऐसा हो ... आज कल सब स्वयं में ही मस्त रहते हैं बुजुर्गों की सुनता ही कौन है ...

ताऊ रामपुरिया said...

कभी कभी लगता है कि बुजुर्ग बेमानी होगये हैं कोई सुनने को ही तैयार नही है. बहुत सुंदर और सार्थक लिखा, शुभकामनाएं.
रामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग

ताऊ रामपुरिया said...

कृपया कमेंट बाक्स से कैप्चा हटा लिजिये, बहुत परेशान करता है.:)
रामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बिल्कुल सही ...और हमें मार्गदर्शन देने वाले भी

अजित गुप्ता का कोना said...

ताऊ रामपुरिया केप्चा कहीं सेटिंग में दिख नहीं रहा, कृपया हटाने का तरीका बताएं।

sonal said...

maine aisi kahaniyaan , apni dadi se aur pitaji se suni hai

अशोक सलूजा said...

काश ....आप के इस लेख को देख,पढ़ कर अपने दिल में थोड़ी सी जगह दे दे तो आप का लिखा और सोचा कामयाब हो
जाये. आभार जी .
शुभकामनाये हम जैसो को ....