Sunday, August 14, 2011

दरवाजे अकड़े हैं जनता की तरह, सरकार की अर्गलाएं लातों के सहारे से लगायी जा रही हैं – अजित गुप्‍ता



बरसात का मौसम है, चहुतरफा हरियाली ने मन मोह रखा है। बारिश टूटकर तो नहीं बरसी लेकिन कभी फुहारें तो कभी कुछ मध्‍यम दर्जे की बारिश ने सरोबार अवश्‍य किया है। नमी वातावरण में घुली है। कभी दीवारों में दिखायी दे जाती है तो कभी दरवाजों से अनुभूत होती है। दरवाजे आम जन की तरह अकड़ने लगे हैं और सरकार जैसी अर्गलाओं के सारे प्रयासों को धता बताते हुए चौखट के अन्‍दर जाने से मना कर बैठे हैं। हम भी पुलिसिया लातों के साथ उसे धकियाते रहते हैं और कभी हमारी जीत हो जाती है और कभी जनतानुमा दरवाजे की। दिन की रौशनी में तो चिन्‍ता नहीं रहती इन दरवाजों की अकड़ की, लेकिन रात को लगता है कि इनकी अकड़ को ठीली छोड़ दिया गया तो ये अन्‍य लोगों को भी आमन्त्रित कर देंगे। इसलिए रात को चाक-चौबन्‍द रहना पड़ता है और सारे ही सरकारी हथकण्‍डों की तरह हम भी इन्‍हें चौखट में सीमित कर ही देते हैं। लेकिन फिर प्रश्‍न उगता है कि आखिर कब तक चौखट में बन्‍द रखे जाएंगे? कब तक लातों के सहारे इनकी अकड़ को काबू में रखा जाएगा? ये तो अपनी स्‍वतंत्रता चाहेंगे ही ना। अब देखो ना ये कहते हैं कि हमें स्‍वतंत्रता दो और अर्गलाएं कहती हैं कि तुम स्‍वतंत्रता नहीं स्‍वच्‍छन्‍दता मांग रहे हो।
हमारी वर्तमान सरकार की भी यही स्थिति है। आम जनता और सरकार के बीच यही कसमकस मची है। अन्‍ना हजारे रूपी बौछारे आ रही हैं और आम आदमी को लग रहा है कि आजादी के बाद पहली बार किसी ने आम आदमी के लिए प्रेम की बरसात की है। उसे बताया है कि तुम इस देश के मालिक हो। अभी तक तो हम यही समझे थे कि जनता तो बेचारी गुलाम ही रहती है, कभी परायों की और कभी अपनों से। हम भी मालिक हैं, यह सुनकर तो शरीर में झुरझुरी सी होने लगी। वैसे जब भी देश में चुनाव होते हैं, नेता लोग कहते हैं कि हमें सेवा का अवसर दीजिए। लेकिन यह नहीं सुना था कि आप मालिक हैं और हमें आपकी सेवा का अवसर दीजिए। वे तो इतना कहते थे कि देश की सेवा का अवसर दीजिए। अब देश का तो मूर्त स्‍वरूप दिखायी देता नहीं तो बेचारे किस की सेवा करते, स्‍वयं की सेवा को ही उन्‍होंने कर्तव्‍य समझ लिया। लेकिन अब तो समझ आ रहा है कि देश की मूर्त स्‍वरूप जनता रूपी हम है और हमारी सेवा के लिए ही ये नियु‍क्‍त हैं। घर के बाहर झांककर भी देखा कि देखें तो सही कि आखिर कौन नियुक्‍त है हमारी सेवा को? एक बार हमारे शहर में देश के सबसे बड़े सेवक पधारे। लगा कि आज तो जनता दरबार लगेगा। जनता के दरवाजे जाकर पूछा जाएगा कि आपको कोई तकलीफ तो नहीं है? लेकिन उस दिन तो सारा शहर ही मानो कर्फ्‍यूग्रस्‍त हो गया। लाट साहब नहीं वर्तमान में लाट साहिबा है कि सवारी निकलेगी इसलिए सभी रास्‍ते, चौराहे बन्‍द कर दिये गए। जनता को मुनादी करा दी गयी कि कोई सड़क पर नहीं निकले। दिन भर शहर में गस्‍त चलती रही, और बेचारी जनता को समझाया जाता रहा कि आज तुम्‍हारी मालकिन आयी है। अब आप ही बताइए कि अन्‍ना जी की बात पर विश्‍वास करें तो कैसे करें? दिन में कई बार चिकौटी काटकर देख लेते हैं कि सपना तो नहीं है? लेकिन अभी तक तो सच ही लग रहा है। अभी कुछ दिन पहले भी बहुत खुश हुए थे कि देश का खजाना जो बाहर जमा है, आने वाला है लेकिन रातों-रात सपनों को तोड़ दिया गया। देश में ऐसा गदर मचाया गया और ठोक-ठोक के बता दिया गया कि तुम जनता ही हो, मालिक नहीं अत: अपनी औकात में रहो। इसलिए अब देखों कि आम जनता कब ठुकती है बस इसी बात का इन्‍तजार है।
मैं तो मेरे नमी से सरोबार दरवाजे को देख रही हूँ, उसकी अकड़ को समझा भी रही हूँ कि अपनी औकात में आ जाओ नहीं तो अभी लातों के सहारे तुम्‍हें चौखट में बन्‍द किया जाता है नहीं मानोंगे तो आरी से छील दिए जाओगे। थोड़ी सी छिलाई हुई और सारी अकड़ समाप्‍त। मालिक बनने का भ्रम पालने का नतीजा जल्‍दी ही समझ आ जाएगा, मुझे तो समझ आ गया है। अभी जनता जनार्दन को भी आ ही जाएगा। फिर भी आशा तो लगी ही है शायद कुछ चमत्‍कार हो जाए? आप लोग क्‍या कहते हैं?  

48 comments:

दीपक बाबा said...

@ तुम जनता ही हो, मालिक नहीं अत: अपनी औकात में रहो।

और औकात से बाहर गए तो उसका भी इंतज़ाम है इस मनमोहनी देश में \.

Sunil Kumar said...

तुम जनता ही हो, मालिक नहीं अत: अपनी औकात में रहो।
जनता के हर प्रकार के रोग का इलाज सरकार के पास है |अकड़े दरवाजे का बिम्ब अच्छा लगा......

vandana gupta said...

आज के हालात पर सटीक और सामयिक आलेख ……………देखें कब समझ आती है ये बात्।

संजय कुमार चौरसिया said...

सटीक और सामयिक आलेख

Maheshwari kaneri said...

आज के हालात पर सर्थक आलेख....

Girish Kumar Billore said...

सहजता से कह दी बड़ी बात
पर क्या हमारी आवाज़ ऐसे ही कुचली जाती रहेगी कब तक..?

दिवस said...

आज के हालातों को जाहिर करती एक बेहतर प्रस्तुति...
हम तो इस अभियान में लगे ही हुए हैं| विश्वास दिलाते हैं कि भ्रष्टों की सत्ता अधिक नहीं रहेगी| चाहे काल धन आए न आए, चाहे लोकपाल बने न बने, किन्तु भ्रष्टाचार जरुर ख़त्म होगा| इस भ्रष्ट सरकार को इसके किये का दंड भी मिलेगा|

Shikha Kaushik said...

सटीक vyangy किया है आज की व्यवस्था पर .आभार

ताऊ रामपुरिया said...

होगा, होगा और चमत्कार अवश्य ही होगा बस थोडे धैर्य और कर्म की आवश्यकता है. हम जो कुछ भी अपने स्तर पर कर सके उतना ही काफ़ी होगा.

रामराम.

kshama said...

Hmmm...chamatkaar ka intezaar to hamesha rahta hai,lekin dilon me kadvahat bhar gayee hai.

प्रवीण पाण्डेय said...

पाँच साल में आता तो है छिलाई का मौका।

Smart Indian said...

जो पतन शताब्दियों के निग्लैक्ट से आया है उसे मिटाने में दशकों की चेताना तो लगेगी।

Kailash Sharma said...

आज के हालात पर बहुत सटीक और सार्थक प्रस्तुति..

DR. ANWER JAMAL said...

आज के हालात पर बहुत सार्थक और सटीक प्रस्तुति...

प्रतिभा सक्सेना said...

'प्रश्‍न उगता है कि आखिर कब तक चौखट में बन्‍द रखे जाएंगे? कब तक लातों के सहारे इनकी अकड़ को काबू में रखा जाएगा? ये तो अपनी स्‍वतंत्रता चाहेंगे ही ना'
बहुत पैना व्यंग्य!चाह सच्चे मन से की जायेगी तो पूरी होगी ज़रूर - बस थोड़ा समय और सचेत प्रयास. !

Khushdeep Sehgal said...

अकड़ते मुर्दे हैं, वो नहीं जिनमें ज़िंदगी होती है...

अन्ना का जो मुद्दा है, उसके साथ मैं तन-मन से हूं...

लेकिन दिमाग कुछ सवाल करने लगा है...

15 अगस्त आज़ादी के साथ-साथ उन रणबांकुरों को सलामी देने का भी दिन है जिनकी वजह से हम अपने घरों में सलामत बैठते हैं...क्या देश के सबसे बड़े दिन घरों में अंधेरा करना सही होगा...

क्या देश में सिविल सोसायटी के अलावा और कोई अच्छे आदमी नही है जिनकी देश के ज्वलंत मुद्दों पर राय लेनी चाहिए...

टीम अन्ना से जुड़े कुछ लोगों के फाउंडेशन-एनजीओ के पास अमेरिका से बहुत मोटी रकम आने की ख़बरें हैं..

जय हिंद...

Rahul Singh said...

चौखट में दरवाजे समाते हैं और तस्‍वीरें, लेकिन जिन्‍दा इंसान...

anshumala said...

अजित जी
जनता इसी के लायक है जो जनता भ्रष्टाचार के खिलाफ अपने हक़ के लिए बोलना नहीं आता तो वो लात खाने के लायक ही है देखीये कितनी लात खाने के बाद इनका मौन समाप्त होगा मन में इस व्यवस्था के लिए विद्रोह जागेगा |

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

जनता के तथाकथिक सेवक ही तो जनता के असली मालिक हैं॥

डॉ. मोनिका शर्मा said...

सधा हुआ समसामयिक आलेख..... सच में कभी कभी समझ ही नहीं आता आखिर गलत है कौन ....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

अच्छा आलेख है!
स्वतन्त्रता की 65वीं वर्षगाँठ पर बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

डॉ टी एस दराल said...

सही लिखा है ।
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें अजित जी ।

प्रतुल वशिष्ठ said...

मैं आपके प्रतीक को कुछ और ढंग से समझना चाहता हूँ.'अनशन' के अस्त्र की कितनी घातक मार होती है हमने भी देख लिया ....
अभी अनशन शुरू भी नहीं हुआ उसके भय का भूत दुष्ट-आत्माओं को परेशान किये है...
भ्रष्ट पंथ का प्रधान दुष्ट 'मोहन' विरोध के शांतिवादी तरीकों को ही ग़लत बता रहे हैं.
अब आजादी की अर्गलाओं को खोलने के लिये केवल लतियाने का विकल्प ही शेष रहता है...
फिर भी हम 'अन्ना' जी को पूरा समर्थन देते रहेंगे... लेकिन इस बार उनके द्वारा अर्जित 'स्वाधीनता' को किसी नीच नेहरू को कब्जियाने नहीं देंगे.

'बरसात में खिडकी-दरवाजे जाम हो जाने और उनके साथ हमारा व्यवहार' ... लतियाने, रंदा लगवाने और कटवाने जैसे विकल्पों को सुझाना ... आपने परोक्ष रूप से नई राह दिखा दी.
इसलिये 'मार्गदर्शक' का महत्व हमेशा बना रहेगा... हमें तो क्रोध और आक्रोश को गालियों में बदलने के सिवाय कोई राह नहीं दिखती थी.. लेकिन अब जनता उस भूमिका में आने की तैयारी करेगी जो अहंकार से अकड़े नेताओं और मंत्रियों को लतियायेगी या उनके दिये अधिकारों से बाहर आये पाँवों को छाँट देगी.
....आभारी हूँ एक नई राह सुझाने को.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सरकार ने चला लीं बहुत लातें ..अब खाने के लिए भी थोड़ा तैयार रहें .. छिलने की बारी अब सरकार की है .. रोचक शैली में लिखा धारदार व्यंग ..

स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें

प्रतुल वशिष्ठ said...

अब आजादी की अर्गलाओं को खोलने के लिये केवल लतियाने का विकल्प ही शेष रहता है...
@ कृपया इसे इस तरह पढ़ें :
आजादी पर लगी अर्गलाओं को खोलने के लिये अब केवल लतियाने का विकल्प ही शेष रहता है...

अजित गुप्ता का कोना said...

कल जिस प्रकार से भारत को शर्मसार करने वाली भाषा का प्रयोग कांग्रेस और उनके मंत्रियों ने किया उससे तो लगता है कि हम वाकयी में तानाशाही में जी रहे हैं। या सत्ता का मद उन्‍हें इतना चढ़ गया है कि सभ्‍यता की भाषा भी भूल बैठे हैं। राजाशाही के जमाने को सोच रही हूँ कि उस समय व्‍यक्ति के लिए कोई बात करना कितना कठिन रहा होगा? फिर भी क्रान्तियां हुई हैं और परिवर्तन भी। अब कौन छिलेगा या कौन लतियाया जाएगा, उसमें अधिक देर नहीं है। नाई-नाई बाल कितने? जजमान सामने ही हैं।

Dev said...

आज की...दयनीय स्थिति को दर्शाता ये लेख ..

S.N SHUKLA said...

सार्थक प्रस्तुति
स्वाधीनता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें .

अनामिका की सदायें ...... said...

aaj ke haalat par ek sateek vyangy.me to chaahti hun ab janta apni malkiyat samajh hi le aur paintra badal jaye.

G.N.SHAW said...

गुप्ता जी मतदान दूर है इसीलिए पुलिसिया पैर चला रहे है ! जनता के घरो में घुस कर जादुई छड़ी खोज रहे है ! अब तो भ्रष्टाचार और जोरो पर है , जो जहा है वही लूटने में लग गया है ! पूछने पर कहते है - सरकार ही लूट रही है तो हम क्यों पीछे रहे ! स्वतंत्रता दिवस की बधाई !

Rahul Paliwal said...

वाकई एक और लड़ाई की जरूरत आन पड़ी हैं.

एक छोटी सी शुरुआत चाहिए.
कुछ बुँदे तो बरसे, गर बरसात चाहिए.
- - http://goo.gl/iJEI5

वाणी गीत said...

हम भी इन्तजार में है कब किसको सही बात समझ आये ...
अच्छा विश्लेषण !

ZEAL said...

लातों के भूत (सरकार) , बातों (सत्याग्रह) से कब मानते हैं ? अब इन्हीं की बारी है ! बात तो सरकार को समझनी होगी। बहुत कर ली मनमानी । अकड़ इनकी तोडनी ही होगी। शायद वक़्त आ गया है।

Rohit Singh said...

desh me sanghrash jaari rahegaa.. to kuch kuch na kuch result to niklega hi...jaroori hai ki sangharsh karete rahen hum sab...

Atul Shrivastava said...

मौजूदा दौर का बेहतरीन चित्रण।
शुभकामनाएं..........

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

आदरणीया दीदी अजित गुप्ता जी
सादर प्रणाम !

अच्छा व्यंग्य लिखा आपने
अभी कुछ दिन पहले भी बहुत खुश हुए थे कि देश का खजाना जो बाहर जमा है, आने वाला है लेकिन रातों-रात सपनों को तोड़ दिया गया। देश में ऐसा गदर मचाया गया और ठोक-ठोक के बता दिया गया कि तुम जनता ही हो, मालिक नहीं अत: अपनी औकात में रहो।
लेकिन सरकार को उसकी औक़ात हम बता भी सकते हैं … कुछ और सचेत हो'कर … संगठित हो'कर
चुनावों के समय नींद और नशे में न रह कर ………

मेरी ख़िदमत के लिए मैंने बनाया ख़ुद इसे
घर का जबरन् बन गया मालिक ; जो चौकीदार है

वोट से मेरे ही पुश्तें इसकी पलती हैं मगर
मुझपे ही गुर्राए … हद दर्ज़े का ये गद्दार है

काग़जी था शेर कल , अब भेड़िया ख़ूंख़्वार है
मेरी ग़लती का नतीज़ा ; ये मेरी सरकार है

पूरी रचना को आशीर्वाद देने आइए न ! :)


हार्दिक मंगलकामनाओं सहित
-राजेन्द्र स्वर्णकार

अरुण चन्द्र रॉय said...

आपके इस आलेख में आज की राजनीतिक स्थिति का बहुत सटीक और विम्बत्मक चित्रण है... समसामयिक विषयों पर आपके आलेख प्रभावशाली होते हैं...

kanu..... said...

ajit aunty ekdam sahi kah aapne.sarkaar apne aap ko bhagwan samjhne lagi hai.bahut hi sarthak lekh.
aap bhi padhe
apne andar ke kayar ko maar do
जंग में ना जा सको तो जाने वालों को आधार दो
नारे ना लगा सको समर में तो कम से कम शब्दों को तलवार दो
और कुछ ना कर सको तो , क्रांति को विस्तार दो
इस बार कम से कम अपने अन्दर के कायर को मार दो.
poori kaviya padhne ke lie link par click karein
http://meriparwaz.blogspot.com/2011/08/blog-post_18.html

Satish Saxena said...

यह जन्माष्टमी देश के लिए और आपको शुभ हो !

एक स्वतन्त्र नागरिक said...

सचिन भारत रत्न के लायक नहीं है. इस विषय पर तार्किक एवं दिमाग खोलने वाला आलेख पढ़े. http://sachin-why-bharat-ratna.blogspot.com

Dinesh pareek said...

आपने सही कहा पर होना तो वही है जो सदियों से होता आया है क्यों की ये भारत की जनता है जिसे कुछ दिखाई नहीं देता बस उसे दिखाना पड़ता है जनता तो वही है जो अन्ना के अनसन से पहले थी क्या ये जनता पहले मर गई थी क्या क्या हुआ था इस जनता को १२५ करोड़ जनता में १ अन्ना ही क्यों निकला १ गाँधी जी क्यों निकले बात वही है की अब कलयुग आज्ञा है अभी तो कुछ हुआ भी नहीं है होना तो बाकि है और होना भी क्या है इस देश में आँखों के अंधे रहते है उस देश की दशा असी होती है फूट डालो राज करो इस समय bhrstachar जसे खाने की कोई वस्तु का नाम है जो खरब हो चुकी है अब उसे फेंकना है अरे मेरे देश वाशियो जागो अब भी कुछ हुआ नहीं है पर इस जनता को कुछ कहना भी बेकार लगता है क्यों की सब अपना पेट पलते नजर आते है किसी को नहीं लगता की ये मेरा भारत है मेरा भारत महँ जेसा नारा लगाने से कुछ नहीं होगा कुछ महान कर्म करो अन्ना के पीछे तो तुम लोग हो पर क्या इस लोक पल बिल से सब कुछ सही हो जायेगा ये नेता लोग सब कुछ छोड़ देगे अरे मेरे भाइयो आज अगर किसी ने किसी को मर दिया है तो उस को जेल होते होते २० साल गुजर जाते है फिर जज बदल जाते है मुंबई बम धामके के आरोपी १ अज भी जेल में है पैर उसको फंसी देने की जगह पोलिस उसकी हिफाजत में लगी है उसकी मेहमान नवाजी कर रही है हर रोज़ उसका मेडिकल होता है लाखो रूपया खर्चा होता है जेसे पोलिश का या सरकार का वो जवाई है कुछ नहीं होने वाला इस देश का और नेताओ का जय जवान जय किशन
अगर आप मेरी बैटन से सहमत नहीं है तो करपिया मेरे ब्लॉग लिंक पे क्लिक करे और अपनी राय देवे
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/

joshi kavirai said...

अजित जी
बरसात, दरवाजे,अकड़, छिलाई आदि प्रतीकों का अच्छा प्रयोग और निर्वाह किया है सामायिक सन्दर्भों में |
रमेश जोशी

Sushil Bakliwal said...

बारिश से नम दरवाजों की अकड के साथ देश के इन तथाकथित मालिकों की अकड का दिलचस्प संयोग बना दिया आपने ।

Anonymous said...

Darvaze jyada aakad gaye hei ab sarkar ki lato se khul nahi rahe hei,sarkar man gayi heiki ab darvaze toot kar unper hi pad jayenge aur ve dab kar mar sakte hei so jhukjavo .

dr kiran mala jain said...

anonym0us is me
dr kiran mala jain

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) said...

आज के हालातों को जाहिर करती एक बेहतर प्रस्तुति...कुछ दिनों से अस्वस्थ जा रही ..........इसी कारण ब्लॉग से ब्लॉग परिवार r से दूर रही....

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

चमत्‍कार तो ही हो गया। फिर लगे हाथ मुबारकबाद भी कुबूल फरमा लें।

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कसौटी पर शिखा वार्ष्‍णेय..
फेसबुक पर वक्‍त की बर्बादी से बचने का तरीका।

amrendra "amar" said...

सार्थक प्रस्तुति, सामयिक आलेख ……
स्वाधीनता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं