Thursday, December 2, 2010

लघुकथा - पूजनीय- अजित गुप्‍ता

पूजनीय
प्रसिद्ध साहित्यकार रामबल्लभजी का आज उद्बोधन है। मंच पर एक राजनेता, एक पूँजीपति भी बैठे हैं। रामवल्लभजी अपने उद्बोधन से पूर्व मंच को सम्बोधित करते हुए बोल रहे हैं कि पुज्यनीय नेता जी, पूज्यनीय सेठजी.......। लोग आश्चर्य में पड़ गए। रामवल्लभजी एक राजनेता और काली कमाई से बने सेठ को पुज्यनीय सम्बोधित कर रहे हैं! कार्यक्रम समाप्त हुआ, उनके शिष्य ने प्रश्न किया कि आप का सम्बोधन कितना उचित था? क्या आप भी राजनेता और पूँजीपतियों को पूजनीय मानते हैं?
हाँ। क्योंकि भारत में हम साँपों की भी पूजा करते हैं।

35 comments:

naresh singh said...

जिन सापों की पूजा की जा रही है आजकल वो ही डस भी रहे है |

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत सुन्दर।

महेन्‍द्र वर्मा said...

क्योंकि भारत में हम साँपों की भी पूजा करते हैं।

बहुत तीखा व्यंग्य है, इस लघुकथा में।

निर्मला कपिला said...

बहुत धारदार कटाक्ष है अजित जी बधाई इस लघुकथा के लिये।

डॉ टी एस दराल said...

बेहद तीखा व्यंग है ।
जाने लोग साँपों को दूध क्यों पिलाते हैं !

Kailash Sharma said...

आज हमारे समाज में भ्रष्टाचार ,शोषण आदि का जो ज़हर फ़ैल रहा है ,उसका एक प्रमुख स्रोस्त्र ये नाग ही हैं, लेकिन फिर भी हम इनकी पूजा करते हैं..बहुत ही सटीक व्यंग्य..आभार

अनामिका की सदायें ...... said...

व्यंग्य में लेखनी की धार तेज होती जा रही है. :)

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत ही सटीक लघुकथा है!

Satish Saxena said...

यह ठीक रही :-)

Dr (Miss) Sharad Singh said...

तीखा कटाक्ष है। अजित जी, इस सार्थक लघुकथा के लिए बधाई!

anshumala said...

बहुत ही अच्छी लगी लघु कथा एक ही शब्दों में दो लोगों का चरित्र चित्रण हो गया |

कडुवासच said...

... kyaa baat hai ... behatreen !!!

shikha varshney said...

सत्य वचन :)

डॉ. मोनिका शर्मा said...

अच्छी कही.... :)

वाणी गीत said...

शानदार व्यंग्य !

Khushdeep Sehgal said...

सांप शायद तरस खाकर एक बार छोड़ भी दे लेकिन नेता....

जय हिंद...

Majaal said...

अच्छा चुटकुला है.

rashmi ravija said...

बहुत ही सटीक व्यंग्य....कम शब्दों में बड़ी गहरी और सोच्परक बात कह दी आपने...

अजित गुप्ता का कोना said...

भाई मजाल जी, आपने इस लघुकथा को चुटकुला कहा है। आपका कथन एक अंश में ठीक हो सकता है लेकिन इस अन्तिम वाक्‍य में गहरी हँसी नहीं है अपितु व्‍यथा भी शामिल है। लघुकथा तभी सार्थक होती है जब उस अन्तिम वाक्‍य से कहने वाले का चिंतन झलके और सोचने पर मजबूर करे। वैसे आपका आभार, क्‍योंकि मैंने भी इस पर चिंतन किया था कि कहीं चुटकुला तो नहीं लगेगा। क्‍योंकि लघुकथा और चुटकुले में बहुत थोड़ा ही तो अन्‍तर होता है। एक शुद्ध हास्‍य होता है और दूसरा चिंतन।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

अच्छा कटाक्ष है ...वैसे हमारी यह पूजने की आदत ने ही तो बेड़ा गर्क किया हुआ है ...

समयचक्र said...

बहुत बढ़िया लघुकथा है बेहतरीन प्रस्तुति.... संगीता जी के विचारों से सहमत हूँ ... आभार

फ़िरदौस ख़ान said...

क्योंकि भारत में हम साँपों की भी पूजा करते हैं...
तीखा व्यंग्य...

vandana gupta said...

गज़ब कर दिया…………धारदार कटाक्ष्।

सदा said...

बहुत ही तीखी बात ...।

उपेन्द्र नाथ said...

अजित जी बहुत ही गहरा व्यंग छुपा है इस लघुकथा में....... साँपों को पूजना गलत नहीं है बल्कि साँपों का दूध पीकर भूल जाना गलत है जिसमे हमारे नेता जी लोग तो पारंगत ही है. शायद स्वामी जी को इस बात का भान हो की सांप शब्द के असली हक़दार एही है.

kshama said...

Wah,kya jawaab diya guruji ne shishy ko!!

Rahul Singh said...

शीर्षक नागपंचमी भी हो सकता है.

शोभना चौरे said...

बहुत ही कम शब्दों में सार्थक लघुकथा |

हिमांशु गुप्ता said...

sahi kaha aapne.

lekin mai bhi sahi hoon ki jin vyaktiyon ne is laghu-katha par comment / tippnai likhi hai unme se ek bhi vyapari varg se nahi hai.

aakhir punjipati ki aukat saanp se jyada nahi aank sakte aap log.

galti bhi to nahi aapki kyonki aap punjipati banne ke peeche uski mehnat ko nahi dekhte.

aapki gali ke nukkad par kirane ki dukan chalane wala "BANIYA" agar 30-40 saal bad agar punjipati ban jaye aapko phuti aaknh nahi suhata aur agar university me padhane wala professor apne ghar bulakar tution padhakar paisa-wala ban jaye to aapko manjoor hai.

punjipati agar udyag na lagaye to BNAK apko apke deposit par interest kahan se dega ?? kabhi socha hai ?

punjipati agar kapde ki mill na lagaye to kya pahnenge ? sut kat-kar khadi ke kurte - pajame?

punjipati agar industry na lagaye to naye rojgar kahan se paida honge aur aapke hamare bachche kahan naukri karenge? ye nahi socha hoga apne

aakhir kyon chidte hain aap punjipati / vyapaari-varg se itne ?

ek vyapari subah 7 baje se le kar rat ke 10 baje tak apne kaam me laga rahta hai agar bimar bhi hai to bhi apne dukan/factory jata hai.... aur ek sarakari karmchari .... use ka parvah... use medical leave milti hi hain na.

BAAKI FIR KABHI......

हिमांशु गुप्ता said...
This comment has been removed by the author.
हिमांशु गुप्ता said...

aur haan ek baat to rah gayi

ye MOBILE jisse aap har samay apne sath rakte hain .... uska netwaork bhi punjipati hi khada karte hain.

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

सार्थक चिंतन।


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ईश्‍वर ने दुनिया कैसे बनाई?
उन्‍होंने मुझे तंत्र-मंत्र के द्वारा हज़ार बार मारा।

अजित गुप्ता का कोना said...

हिमांशुजी, आपका कथन सोलहा आना सही है। लेकिन मेरे शब्‍दों को यदि आपने ढंग से पढ़ा होता तो शायद इतना आक्रोश नहीं आता। मैंने लिखा है - काली कमाई से बने सेठ।

mridula pradhan said...

wah.kitni bari baat ka di lokkatha ke madhyam se.

G.N.SHAW said...

SAAP BHI HAMARE SAMAJ KE EK ANGA HAI. HAME INKI ILAJ KARANI CHAHIYE,JO PUJA KARATE HAI ,UNAKE ANDAR APANA SWARTH CHHIPA HOTA HAI.WAHI YAHA GURU KE WAANI/JABAB ME DIKHAI DETA HAI.WAISE AAP NE GAGAR ME SAGAR BHARA HAI .DHANYABAD.