Wednesday, November 4, 2009

अंग्रेजी खूनी पंजे-2

भारत में अकाल पड़ने का इतिहास हमेशा मिलता रहा है। लेकिन मृत्यु का इतना बड़ा आंकड़ा अंग्रेजों के काल में ही उपस्थित हुआ। गरीब जनता की मृत्यु इसलिए नहीं हुई कि देश में अन्न की कमी थी। जनता की मृत्यु इसलिए हुई कि अन्न इंग्लैण्ड जा रहा था। भारत में एक तरफ अकाल पड़ा हुआ है तो दूसरी तरफ किसानों पर लगान बढ़ा दिया गया, ऐसे कितने ही प्रकरण इस देश ने झेले हैं। बारड़ोली आन्दोलन जिसे सरदार वल्लभ भाई पटेल का नेतृत्व प्राप्त था और गांधी जी भी प्रत्यक्ष रूप से जुड़े थे, एक उदाहरण है। ऐसे आंदोलनों की भी एक सूची है जो शायद सैकड़ों में है। इसमें न केवल किसानों ने आंदोलन किया अपितु बहुत बड़ी संख्या में जनजाति समाज ने भी आंदोलन किया। आंदोलनकारियों को कहीं फांसी पर लटकाया गया और कहीं डाकू कहकर मार डाला गया। जो भारत में डाका डाल रहे थे वे तो साहूकार बन गए थे और जो किसान अन्न उपजा रहे थे वे डाकू बन गए थे।
अंग्रेजों के समय पड़े भारत के अकालों पर भी एक नजर डाल लें। 1825 से 1850 के मध्य भारत में दो बार अकाल पड़े, जिनमें 4 लाख लोग मरे। 1850 से 1875 के बीच 6 बार अकाल पड़े, जबकि 1875 से 1900 के बीच 18 बार अकाल पड़े। मृतकों की कुल संख्या 260 लाख थी। 1918 और 1921 के मध्य भी भयंकर अकाल पड़ा जिसमें मृतकों की संख्या 130 लाख थी। ये आकड़े दिए हैं ‘भारत का इतिहास’ के रचनाकार अंतोनोवा, लेविन और कोतोव्स्की ने, जो कि सरकारी आंकड़ों के आधार पर दिए गए हैं, वास्तविक आंकड़े तो महाविनाश की कहानी कहते हैं। इस काल में देश में अनाज की कमी नहीं थी, अपितु भारत का अनाज इंग्लैण्ड जा रहा था और भारत की जनता को भूखा मारने के लिए छोड़ दिया गया था। इन आंकड़ों से यह तथ्य निकलता है कि 1825 में पड़े अकाल में 4 लाख लोग मरे, वहीं 1918 के अकाल में 130 लाख लोग मरे। एक शताब्दी में भारत की आर्थिक स्थिति में इतना बड़ा अंतर आ चुका था कि मृतकों की संख्या 4 लाख से बढ़कर 130 लाख तक जा पंहुची।
एक और लूट का तथ्य प्रस्तुत करती हूँ। जब 1857 की क्रांति हुई तब इंग्लैण्ड से फौज बुलायी गयी और उस फौज के आने से छः महिने पूर्व का और जाने के छः महिने बाद का वेतन भी भारत के मत्थे मढ़ा गया। इतना ही नहीं प्रथम विश्वयुद्ध एवं द्वितीय विश्वयुद्ध का खर्चा भी भारत के माथे मढ़ा गया। युद्ध ही नहीं विलासिता के न जाने कितने खर्चों का कर्ज भारत से वसूला गया। द्वितीय विश्वयुद्ध तक 1179 करोड़ रूपयों का खर्चा भारत के मत्थे लिखा गया। भारत से 1931 से 37 के मध्य 24 करोड़ 10 लाख पौण्ड का सोना इसी कारण भारत से अंग्रेज ले गए।
अतः आज वर्तमान युग में प्रबुद्ध और समृद्ध वर्ग को चिंतन की आवश्यकता है। जिन्हें हम आदर्श मान रहे हैं, वे कितने घिनौने हैं? उनका वास्तविक स्वरूप क्या है? भारत में हर्षवर्द्धन के काल तक गरीबी और भुखमरी नहीं थी। लेकिन उसके बाद जब लूट की परम्परा प्रारम्भ हुई तब गरीबी का अभ्युदय हुआ। मुगलकाल में भी विदेशी आक्रांता बनकर आए बाबर के बाद हुमायूं और अकबर के आगे के मुगल राजा भारत में आत्मसात हुए और यहाँ का धन विदेश नहीं गया। यहाँ के कारीगर और उद्योगधंधों को चौपट नहीं किया गया। लेकिन अंग्रेजों ने भारत को बड़ी बेरहमी से लूटा। लूटा ही नहीं, यहाँ के एक-एक व्यक्ति को एक-दूसरे का दुश्मन बनाने में भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने भारतीय समाज को अपनी नजरों में ही गिरा दिया। जो देश सोने की चिड़िया कहलाता हो, जहाँ विदेशी आक्रांता बार-बार लूटने आते हो, उस देश की प्रजा को जाहिल की संज्ञा देना स्वयं की जाहिलता और अज्ञान की ओर इंगित करता है।
जब 1498 में वास्कोडिगामा भारत आया था, तब उसने यही कहा था कि मैं यहाँ मसालों और ईसाइयत की खोज में आया हूँ। गांधीजी ने कहा था कि अंग्रेज न तो हिन्दुस्तानी व्यापारी का और न ही यहाँ के मजदूरों के मुकाबले में खड़ा हो सकता है। इसी कारण अफ्रिका, मॉरीशस, फिजी, गुयाना आदि देशों को खड़ा करने के लिए भारतीय मजदूरों को एग्रीमेंट पर ले जाया गया और इन बेरहम अंग्रेजों ने उन्हें गुलामों से भी बदतर जीवन दिया। जिन जंगलों को शहरों के रूप में बसाने के लिए अंग्रेज मजदूर उपलब्ध नहीं थे, तब भारतीय मजदूर वहाँ ले जाए गए, इस शर्त पर की वहाँ बेहतर नौकरी और बेहतर सुविधाएं मिलेंगी, लेकिन अंग्रेजों ने उनका जीवन नारकीय बना दिया। ऐसे अत्याचार तो कोई शैतान भी नहीं कर सकता था, जैसे उन्होंने किए। मजदूरों के साथ केवल 40 प्रतिशत महिलाओं को ही ले जाने की छूट मिली, उनमें भी काफी बड़ी संख्या में वेश्याएं थीं। परिणाम स्वरूप सभी महिलाओं को वेश्याओं के रूप में परिणित कर दिया गया।
आज का प्रश्न यह है कि क्या आज यह जाति सुधर गयी है? क्या अंग्रेजों की मानसिकता आज बदल गयी है? नहीं वे आज भी उतने ही क्रूर है, जितने कल थे। हमारी युवापीढ़ी यदि अंग्रेजों का अनुसरण करती है, तब ऐसा लगता है कि हम भी उसी क्रूरता के अनुयायी बनते जा रहे हैं। उनके पास अभी तक भी भारत की लूट का बहुत धन है अतः वे आज तक अमीर बने हुए हैं। लेकिन जैसे-जैसे उनकी लूट का धन कम होता जा रहा है, वे नवीन लूट के अनुसंधान में लगे हैं। उनकी निगाहें अब तैल पर लगी हैं और इसी कारण वे कभी ईरान पर और कभी कुवैत पर आक्रमण करते रहते हैं। उन्होंने भारत के प्रबुद्ध वर्ग पर पहले से ही कब्जा कर रखा है, वह और बात है कि अब भारतीय प्रबुद्ध वर्ग भी राष्ट्रीयता की भावना को समझने लगा है। पूर्व में भारतीय मस्तिष्क आध्यात्म या व्यापार में ही अपनी सार्थकता सिद्ध करता था लेकिन अब भारतीय मनीषा प्रत्येक क्षेत्र में अपने आपको सिद्ध कर रही है और दुनिया ने यह जान लिया है कि भारतीय बौद्धिक स्तर का कोई मुकाबला नहीं कर सकता। यही कारण है कि आज भारत में बौद्धिक प्रतिभाओं के लिए नवीन सूरज निकलने लगा है और वह दिन दूर नहीं जब यूरोप और अमेरिका जैसे देश भारतीय प्रतिभाओं से रिक्त होकर पुनः अपने वास्तविक स्वरूप में होंगे। नवीन युवावर्ग सारी परिस्थितियों को देख रहा है, समझ रहा है अतः वे भारत के विकास में भी भागीदार बन रहा है। बस उसे कल का इतिहास पढ़ने की आवश्यकता है जिससे वे अंग्रेज, अंग्रेजी और अंग्रेजीयत के खूनी पंजों की पहचान कर सकें। वे जान लें कि हमारे पूर्वजों पर नृशंस अत्याचार करने वाले कौन लोग थे और क्या ऐसे खूनी, लुटरे लोग कभी हमारे आदर्श बन सकते हैं? जिस दिन हमारे युवावर्ग ने अंग्रेजों के इतिहास की सच्चाई को जान लिया उस दिन कोई भी भारतीय अपने आपको अंग्रेजों की श्रेणी में रखना पसन्द नहीं करेगा। आज स्वतंत्रता के साठ वर्ष पूर्ण होने पर, गुलामी के दिनों में अंग्रेजी खूनी पंजों का स्मरण ही हमारी प्रगति का मार्ग प्रशस्त करेगा।

19 comments:

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

मैने देखी-सुनी है भुख से मौत हो्ने वाले व्यक्ति की पत्नी की दास्तान। आज भी भारत मे भुख से मौत होती है और प्रशासन उसे बिमारी करार दे देता है। लानत है-
सार गर्भित लेख के लिए आभार

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

डा0 साहब, सब उनके ही बोए हुए कांटे है, बहुत बढिया लेख ! सिर्फ आपने इसमें १९३० के बंगाल अकाल जिक्र छोड़ दिया ! लेकिन आखिर में सवाल वहीं आकर ठहर जाता है की इन अंग्रेजो को यहाँ आने की दावत किसने दी थी ?

Unknown said...

"जो भारत में डाका डाल रहे थे वे तो साहूकार बन गए थे और जो किसान अन्न उपजा रहे थे वे डाकू बन गए थे।"

सत्य वचन!

ज्ञानवर्धक लेख!

अजित गुप्ता का कोना said...

गोदियाल साहब
हम भारतीयों में हीनभावना कूट-कूट कर भरी है, इसी कारण हमें दूसरे बहुत अच्‍छे लगते हैं। हम आपस में इतना लड़ते हैं कि उसका फायदा दूसरा उठाता है। उस काल में भी यही हुआ और आज भी यही हो रहा है। हमने अंग्रेजों को भारत थाली में परोसकर दे दिया। आज भी उनके गुणगान करने में हम कहीं पीछे नहीं हैं। आज भी हम ऐसे अत्‍याचारियों को आदर्श मानते हैं और उनकी वकालात करते हैं। हम न तो इतिहास पढते हैं और न ही अपने आप पर गर्व करते हैं। आपकी टिप्‍पणी से मेरे आलेख को सम्‍बल मिला है, इसके लिए आभार।

Asha Joglekar said...

बहुत शोध के बाद लिखा है आपने इसे । बार बार अकाल भुखमरी और रोजगार का अभाव इसमें पिसती भारतीय जनता और उस पर लगान और तरह तरह के कर अंग्रेजों ने जो किया अपने फायदे के लिये किया उसका अपरोक्ष फायदा हमें जरूर हुआ । हमारे राजनायकों नें उनकी भाषा सीखी ताकि उनकी सोच मालूम करके उन्हे उन्ही के खेल में मात देने की । पर अब तो अंधानुकरण हो रहा है ।

Neelesh K. Jain said...

Aapko meri posting achchi lagi iskeliye Dhanyavaad. Kal hi UDaipur se Jayanti ji ka bhi main aaaya hai.
Aapki ye Itihasparak posting colonial History ka bhandaphod hai.
Maine itihaas vishay ke roop mein kabhi nahin pada par baad mein interest jaga aur phir maine 5 kitabein Bhartiya Itihaas aur sanskriti par likhin.
aapka neelesh

दिगम्बर नासवा said...

आपका लेख बहूत ही गहरे अध्यन की बाद लिखा गया है और बहूत से पहलूओं को खोलता है ....... ये सच है की हमारी फूट का अंग्रेजों ने फायद उठाया ....... हमारी सरलता का उन्होंने इस्तेमाल किया ........... साथ के साथ ये भी सच है की उस वक्त जो भी राजा थे .......... उन्होंने अंग्रेजों का साथ अपने स्वार्थ के चलते दिया ........ गरीब जनता की नहीं सोची ........

परमजीत सिहँ बाली said...

आपने इतिहास के काले पन्नो को फिर खोल दिया है ...यह सब बाहर के लोगों ने किया था......लेकिन आज भी सूखे से लोग मर रहे हैं...और प्रशासन क्या कहता है ऐसी मौतों पर सब जानते हैं.....
एक जानकारी पूर्ण ऐतिहासिक लेख के लिए आभार।

हरकीरत ' हीर' said...

हमारी युवापीढ़ी यदि अंग्रेजों का अनुसरण करती है, तब ऐसा लगता है कि हम भी उसी क्रूरता के अनुयायी बनते जा रहे हैं....

नवीन युवावर्ग सारी परिस्थितियों को देख रहा है, समझ रहा है अतः वे भारत के विकास में भी भागीदार बन रहा है। बस उसे कल का इतिहास पढ़ने की आवश्यकता है जिससे वे अंग्रेज, अंग्रेजी और अंग्रेजीयत के खूनी पंजों की पहचान कर सकें। वे जान लें कि हमारे पूर्वजों पर नृशंस अत्याचार करने वाले कौन लोग थे और क्या ऐसे खूनी, लुटरे लोग कभी हमारे आदर्श बन सकते हैं? जिस दिन हमारे युवावर्ग ने अंग्रेजों के इतिहास की सच्चाई को जान लिया उस दिन कोई भी भारतीय अपने आपको अंग्रेजों की श्रेणी में रखना पसन्द नहीं करेगा।

बहुत ही सशक्त लेखन है आपका .....!!

Dr. kavita 'kiran' (poetess) said...

aapke aalekh vicharon ko jhinjhod dene wale hote hain.aajkal french ko bhi bahut prachlit kiya ja raha hain.pahle angrezi aur ab french,yani ak aur gulami.is per bhi kuch kahen.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

लेख चाहे आपका हो या उद्धरित हो, मगर है प्रभावशाली लेखन!
बहुत - बहुत बधाई!

अजित गुप्ता का कोना said...

शास्‍त्री जी
यह आलेख मेरा ही है। ऐसे सामाजिक सरोकारों को लिए 30 निबन्‍ध मेरी नवीनतम पुस्‍तक "सांस्‍कृतिक निबन्‍ध" के अन्‍दर है। इसी पुस्‍तक का हवाला देते ह‍ुए मैंने अपनी बात कही थी। आपको आलेख पसन्‍द आया इसके लिए आभार।

ओम आर्य said...

मैम
आपकी विचार मुझे बहुत ही अच्छा लगा क्योकि मेरा भी यही मानना है कि हम भारतियो मे हीन भावना कुट कुट्कर भरी पडी है जिसका फायदा सही मे तीसरा उठाता है !बहुत बढिया !यह क्रम जारी रहे !

Mishra Pankaj said...

जनता की मृत्यु इसलिए हुई कि अन्न इंग्लैण्ड जा रहा था।

बिलकुल सही बात

अजय कुमार said...

जानकारी से परिपूर्ण , विचारोत्तेजक लेख के लिए धन्यवाद

M VERMA said...

शोधपरक लेख जानकारी से भरा
बहुत सुन्दर और विचारपूर्ण

निर्मला कपिला said...

aaj hi aapakee pichhali post bhee padhi cafe hindi chal nahin raha is liye roman me hi likh rahi hoon. aapakaa aalekh gyaanvardhak to hai hee un logon kee aanakhen kholane ke liye bhi kafee hai jo ye nahin samajhate ki angrej hamari jadhon me kaun se beej bo gaye hain ye beej us vish bel ki tarah hain jise aakaash bel kahate hain jo jis paudhe ke upar pamapati hai jis se khaad pani letee hai usi ko samapat kar deti hai> bahut achha aalekh hai> aasha hai aap bhavishay me bhee hame isee tarah kaa gyaanvardhak vishay padhavati rahengi aapake paas to bahut smridh khajana hai ek lekhak aur uch koti kee patarikaon ke sampadak hone kaa anuvhav aur gyaan hai. aapakaa blogger hona hi hamare liye gaurav ki baat hai .bhagavan aapako lambi aayoo de shubhakamanaye

सदा said...

बहुत ही अच्‍छा लेख हर शब्‍द अपने आप में सच्‍चाई लिये हुये, आपकी सशक्‍त लेखनी को सलाम, आभार ।

padmja sharma said...

युवाओं के साथ ही, सब के लिए है यह लेख .