Tuesday, February 2, 2021

भगवान हर पल साथ हैं

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फेसबुक पर एक कहानी चल रही है – एक दिन भगवान के साथ। एक युवक के पास एक दिन भगवान पहुँच जाते हैं और पूरा दिन उसके साथ रहते हैं। युवक के व्यवहार में पूर्णतया परिवर्तन आ जाता है क्योंकि उसे लग रहा था कि भगवान मुझे देख रहे हैं। ना गाली दी गयी, ना काम के लिये रिश्वत ली गयी और ना ही घर में भोजन में कमियाँ निकाली गयी। सारा परिवार आश्चर्यचकित था कि यह परिवर्तन कैसे!
आपका बचपन याद कीजिए। आप एक परिवार का हिस्सा होते थे, आपके साथ दसों आँखें होती थी, जो आपको समाज के नियमों के विरूद्ध जाने को रोकती थी। परिवार में नवदम्पत्ती को नौकरी के लिये दूसरे शहर में जाना है, साथ में परिवार के एक बच्चे को साथ चिपका दिया जाता था। वह बच्चा परिवार की आँख होता था, नवदम्पत्ती समझते थे कि कुछ भी मनमानी की तो इस बच्चे के माध्यम से बात परिवार के बड़ों तक पहुँच जाएगी। परिवार में बामुश्किल ही गलत बातों का प्रवेश होता था। एक छोटे से बच्चे का साथ भी भगवान का साथ ही होता था।
विदेशों में संतान के युवा होते ही उनका अधिकार होता है कि वे अपना अलग घर बसा लें। बस बच्चे 16 साल का इंतजार करते हैं। उनके साथ परिवार का बच्चा तक नहीं होता है। पूर्ण स्वतंत्रता! समाज के कैसे भी नियम हो, सारे ही टूट जाते हैं। देश में भी यह चलन आ गया है, लेकिन यहाँ 16 साल के बाद नहीं! अपने पैरों पर खड़ा हुए नहीं की अलग घर बसाने का रिवाज चल पड़ा है। इसका प्रारम्भ भी बॉलीवुड की ही देन है। बॉलीवुड इसके परिणाम भुगतने भी लगा है, न जाने कितने कलाकार आत्महत्या तक कर लेते हैं।
परिवार में वैसे ही बात चली, पता लगा कि गाली-गलौज की भाषा ही बाहर की भाषा है! मैंने पूछा कि घर में क्यों नहीं है? घर में तो सभी है, वहाँ भला असभ्यता कैसे दिखायें! मतलब अकेले हैं तो असभ्यता और साथ हैं तो सभ्यता!
कहानी के मर्म को समझो, भगवान के साथ रहने से ही आप सुधरते नहीं हैं, किसी के भी साथ रहने से आप सुधर जाते हैं। जिस दिन घर में अतिथि आता है, आप की भाषा बदल जाती है। किसी का भी साथ हमारे लिये समाज के नियमों की आँखें होती हैं। हमें लगता है कि हमारा आकलन हो रहा है, हमारी असभ्यता बाहर प्रचारित हो जाएगी।
हमारा आकलन समाज प्रतिक्षण करता है। अब आप कहेंगे कि कैसे करता है? आपके घर में काम करने वाले कर्मचारी आपके लिये भगवान की आँख है, वे आकलन भी करते हैं और निर्णय भी करते हैं कि आप कैसे हैं। घर से बाहर आपके दूसरे कर्मचारी यही आँख बनते हैं। आप चारों तरफ से घिरे हैं। आप कितने भी अकेले रहने का प्रयास करें, आपका आकलन होता ही है। इसलिये इस सत्य को मानिये कि हर क्षण भगवान आपके साथ है।
परिवार रूपी सदस्यों के साथ यदि आप रहेंगे तो आपका जीवन सुखद होगा क्योंकि आपको हरपल सुधरने का और सम्भलने का अवसर मिलेगा नहीं तो आप असभ्यता को रोक नहीं पाएंगे। केवल आप ऐश्वर्य के साधन एकत्र करने में ही जुटे रहेंगे फिर वे साधन किसी भी प्रकार से अर्जित क्यों ना हो! क्योंकि भगवान की आँख का डर आपको नहीं है। ना आपके साथ भगवान है और ना ही उसका प्रतिनिधि! फिर एक दिन कोई कहानी पढ़ेंगे और कल्पना करेंगे कि काश मेरे पास भी एक दिन के लिये भगवान आते और मुझे अच्छा बनने का अवसर मिलता। यह अवसर आपके पास हर पल आता है, बस आप इसे समेट नहीं पाते और खो देते हैं। आप अपनी स्वतंत्रता को इतना महत्व देते हैं कि अपने परिवार और अतिथियों से दूर होते चले जाते हैं। पूर्णतया एकाकी।
अजित गुप्ता

3 comments:

Dr Varsha Singh said...

सार्थक अभिव्यक्ति

अजित गुप्ता का कोना said...

वर्षा जी आभार। स्वागत है मेरे ब्लाग पर।

Ankit said...

आपने बहुत ही शानदार पोस्ट लिखी है. इस पोस्ट के लिए Ankit Badigar की तरफ से धन्यवाद.