Friday, January 25, 2019

हुकूमत इनके खून में बहती है


यदि आप ध्यान से सुने और गौर करें तो टीवी के चैनल बदलते-बदलते न जाने कितने ऐसे बोल सुनाई दे जाएंगे जो आपको सोचने पर विवश करते हैं। कल ऐसा ही हुआ, टीवी से आवाज आयी – हुकूमत इनके खून में बहती है। तभी मेरे दिल ने कहा – गुलामी हमारे खून में बसती है। हमारे देश में कौन राजा होगा और कौन उसका सेवक बनेगा, यह भी हमारे खून में ही बहता रहता है। हमने राजवंशों को कितना ही दरकिनार किया हो लेकिन आज भी प्रजा उन्हें अपना मालिक मानती ही है। उनके दोष नहीं देखे जाते अपितु वे अनिवार्य सत्य होते हैं। इस देश में जिसने भी कहा कि मैं राजा हूँ, तुम्हारा शासक हूँ और उसी के अनुरूप अपना वैभव दिखाया बस प्रजा ने उसे ही अपना राजा मान लिया, लेकिन जिसने भी त्याग किया उसे सम्मान तो पूरा मिला लेकिन राजवंश के अधिकारी वे नहीं हुए। गांधी, पटेल, गोखले, राजेन्द्र प्रसाद आदि सैकड़ों नाम हैं। लेकिन नेहरू खानदान ने अपना वैभव कायम रखा और उन्हें राजवंशों की श्रेणी में रख लिया गया। हर ओर से यही आवाज आती रही कि हुकूमत इनके खून में बहती है। आपातकाल लगाना, सिक्खों का कत्लेआम करना, भ्रष्टाचार से अपनी तिजौरियाँ भर लेना जैसे अनगिनत काम करने पर भी उनपर अंगुली तक नहीं उठाना, उनके राजवंशी होने का प्रमाण है। जनता बस एक ही बात मानती है कि हुकूमत किसके खून में बहती है। अब तो साहित्यकार और इतिहासकार तक इसी सत्य को स्थापित करने में जुट गये हैं।
हम सबने इतिहास में यही पढ़ा था कि चन्द्रगुप्त मौर्य बचपन में एक गड़रिया था, उसकी विलक्षण बुद्धि को देखकर उसे चाणक्य ने अपना शिष्य बनाया और फिर मगध का राजा बनाया। लेकिन विगत कुछ सालों से टीवी पर यह सिद्ध करने का सफल प्रयास चल रहा है कि चन्द्रगुप्त गड़रिया नहीं था अपितु वह राजपुत्र था। कहने का तात्पर्य है कि हुकूमत इनके खून में बहती है, इसी बात को स्थापित किया जा रहा है। जिनके खून में हुकूमत है बस वही हुकूमत करने योग्य हैं। हमारे देश ने लोकतंत्र जब अपनाया तब चन्द्रगुप्त को आदर्श माना कि एक गड़रिये में भी राजा बनने के सारे गुण होते हैं। लेकिन जब इतिहास को ही बदलने का प्रयास किया जा रहा हो तब वर्तमान तो स्थापित स्वत: ही हो जाएगा। इसलिये तो बड़ी ही विद्रूपता से साथ कहा जाता है कि चायवाला हमारे देश का प्रधानमंत्री कैसे हो सकता है? यह तुम्हारा प्रधानमंत्री है, हमारा नहीं। यह सूट पहनता है तो चोर है, विदेश जाता है तो फरेबी है। हमारे खून में हुकूमत है, हम प्रधानमंत्री तक को संसद में भी चोर बोल देते हैं और हम पर कोई अंगुली भी नहीं उठा पाता!  
लेकिन देश की मानसिकता में फिर बदलाव आ गया, राजवंश के राजकुमार की हरकते राजवंशीय नहीं दिखायी दी और जनता मजबूरन उनके साथ खड़े रहने पर बाध्य होने लगी। भला राजा मंचों पर गाली देता हुआ, झूठ बोलता हुआ, चिल्लाता हुआ शोभा देता है! नहीं, कदापि नहीं, यह राजवंश के लक्षण ही नहीं हैं, लोकप्रियता में गिरावट आ गयी। अब फिर से राजवंशी तौर तरीके की तलाश शुरू की गयी और एक चेहरा मिल गया। चेहरा-मोहरा, हाव-भाव, सभी कुछ राजवंशी लगने लगा और जनता के सामने लाकर खड़ा कर दिया की यह लो, हमारा राजवंशी चेहरा, हुकूमत इनके खून में बहती है। हमने अपनी ओर देखा और कह उठे कि गुलामी हमारे खून में बसती है। इतिहास बदल दिया और सिद्ध कर दिया कि कोई भी सामान्य व्यक्ति हुकूमत के काबिल नहीं होता, बस राजवंशीय व्यक्ति ही हुकूमत के काबिल होता है। तुम चन्द्रगुप्त का उदाहरण दोंगे और हम इतिहास ही बदल देंगे। जिस कौम के पास अपने इतिहास को सुरक्षित रखने का भी माद्दा नहीं हो, वह कौम कैसे जीवित रह सकती है? वह तो गुलाम रहने योग्य ही होती है और उसके समक्ष तो किसी ने किसी राजवंशीय को ही लाकर खड़ा किया जाता रहेगा। जनता तुम्हारो कार्य से प्रभावित तो होगी लेकिन सर तो राजवंशीय के समक्ष ही झुकेगा। जनता को सिद्ध करना है कि वे लोकतंत्र में जी रहे हैं या फिर अभी भी राजवंश की गुलामी को ओढ़कर जी रहे हैं? हुकूमत इनके खून में बहती है इसे ही मान्यता मिलेगी या हमारे खून में गुलामी नहीं बहती, यह हम सिद्ध कर पाएंगे!

5 comments:

HARSHVARDHAN said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन राष्ट्रीय मतदाता दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

'एकलव्य' said...

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अजित गुप्ता का कोना said...

शास्त्री जी आभार।

अजित गुप्ता का कोना said...

हर्षवर्धन आभार।

Vocal Baba said...

जी बिल्कुल सही बात है। जनता यही मानती है और जनता को यही बताया या समझाया जाता है कि हुकूमत इनके ख़ून में बहती है।