Friday, July 6, 2018

I am in love


पहला प्यार! कितना खूबसूरत ख्वाब है! जैसे ही किसी ने कहा कि पहला प्यार, आँखे चमक उठती है, दिल धड़कने लगता है और मन कहता है कि इसे बाहों में भर लूँ। लेकिन प्यार की कसक भी अनोखी होती है, प्यार मिल जाए तो सबकुछ खत्म, लेकिन नहीं मिले तब जो घाव दे जाए वो कसक। प्यार पाना नहीं है अपितु खोना है, जो कसक दे जाए बस वही प्यार है। बचपन में जब होश सम्भाला तब प्यार का नाम ज्यादा मुखर नहीं था, चोरी-छिपे ही लिया जाता था और चोरी-छिपे ही किया जाता था। जिसने प्यार किया और कसक बनाकर मन में बसा लिया, उसके किस्से भी सुनाई देने लगे थे लेकिन जिसने प्यार किया और घर बसा लिया, उसके किस्से वहीं खत्म। 60 का दशक बीता, 70 का बीता, 80 का बीता और प्यार नामका शब्द स्थापित हो गया। सारे रिश्ते-नाते तोड़कर प्यार को केवल स्त्री-पुरुष के लिये पेटेण्ट करा लिया गया। मतलब लड़का-लड़की करे वही प्यार, माता-पिता करे वह प्यार नहीं। भाई इसका और कोई नाम दो, कन्फ्यूजन होता है। प्यार-मोहब्बत-इश्क सब लड़का-लड़की के लिये पेटेँट हो गये। लोगों ने कहा कि प्यार सभी के जीवन में होता है, हमने टटोला, हमें कहीं महसूस ही नहीं हुआ। अरे बिछोह हो तो कसक हो और कसक हो तो प्यार का नाम मिले! यह क्या कि शादी की, गृहस्थी बसायी और कहा कि पति-पत्नी में  प्यार है, खाक प्यार है! मैं नहीं मानती। प्यार तो वही होता है जिसमें कसक हो, एक तरफा हो। एक-दूसरे को पाने से अधिक एक-दूसरे की परवाह निहित हो।
लेकिन मुझे आजकल लगने लगा है कि मुझे प्यार हो गया है, चौंकिये मत, इसकी शुरुआत बहुत पहले ही हो गयी थी लेकिन कसक अब महसूस हो रही है तो प्यार अभी हुआ ना! प्यार में क्या होता है – दो जनों के रिश्ते में विश्वास होता है, एक-दूसरे का हाथ थामने का जज्बा होता है, जिन्दगी भर ख्याल रखने का भाव होता है। हम सभी महिलाओं का पहला प्यार, हमारा पहला पुत्र होता है, अब आप कहेंगे कि पुत्री क्यों नहीं! जो मिल जाए वह प्यार नहीं और जो कसक दे जाए वह प्यार है तो पुत्री कसक देती नहीं तो पहला प्यार बनती नहीं। पहले जमाने में पुत्र भी पहला प्यार नहीं बन पाता था क्योंकि वह कसक देता नहीं था, तभी तो प्यार नाम चलन में नहीं था। अब चलन में आया है लेकिन गलत संदर्भ में आ गया है। प्यार कोई बुखार नहीं है, जो पेरासिटेमॉल ली और उतर गया, प्यार तो खुशबू है जो दिल में समायी रहती है। असली प्यार तो माँ-बेटे का ही होता है, जिसमें कोई बुखार नहीं, बस एक-दूसरे के लिये मान और परवाह का भाव। तो प्यार तो मुझे पुत्र पैदा होते ही हो गया था लेकिन कसक बीते कुछ सालों से सालने लगी है तो अब कहती हूँ कि मुझे प्यार हो गया है। माँ-बेटे का रिश्ता क्या है? माँ अंगुली पकड़कर चलना सिखाती है और बुढ़ापे में सोचती है कि अब बेटा अंगुली थामेगा, बुढ़ापे में कोई कंधा मिलेगा जिसपर सर रखकर रोया जा सकेगा लेकिन नहीं मिलता। अंगुली और कंधा बहुत दूर जा बसे हैं, कोई उम्मीद शेष नहीं तो प्यार की कसक ने पूरी ठसक के साथ अपना अड्डा जमा लिया। सुबह सोकर उठो तो कसक भी जाग जाए कि काश बेटा सहारा बनता! दिन में थाली परोसो तो सोचो कि पता नहीं क्या खा रहा होगा! शाम हो तो बतियाने का सुख सामने आ जाए! रात तो काली अंधियारी बनकर खड़ी ही हो जाए! यह प्यार नहीं तो और क्या है? मेरा पहला और अन्तिम प्यार। प्यार के जितने भी पाठ अनपढ़े थे, उसने सारे ही पाठ याद करा दिये। लोग प्यार की कसक लेकर कैसे जिन्दगी में तड़पते हैं, सब पता लग गया। यही सच्चा प्यार है, माँ-बेटे का प्यार। जो कभी साक्षात मिलता नहीं और कसक भरपूर देता है। साँसों की डोर से बंधी रहती है यह कसक, अन्तिम इंतजार भी इसी कसक का रहता है, आँखें दरवाजे पर लगी रहती हैं और जब देह रीत जाती है तब भी एक इच्छा शेष रह जाती है कि अन्तिम क्रिया तो पुत्र ही करे। जो मरण तक साथ चले वही कसक सच्ची है और वही कसक प्यार  है। ऐसी कसक पुत्र से ही मिलती है, आज करोड़ो लोग इस प्यार में पागल होकर घूम रहे हैं, दिन काट रहे हैं। इसलिये मैं भी कहने लगी हूँ कि मुझे प्यार हो गया है, मेरे अन्दर भी कसक ने जन्म ले लिया है। क्या आपको भी हुआ है प्यार? प्यार को यदि अंग्रेजी में लव कहेंगे तो ज्यादा असर पड़ता है तो मैं चिल्लाकर कहती हूँ कि – I am in love.

2 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार 07-07-2018) को "उन्हें हम प्यार करते हैं" (चर्चा अंक-3025) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

अजित गुप्ता का कोना said...

आभार शास्त्रीजी