एक लघु कथा याद आ
रही है, आपको भी सुनाए देती हूँ – एक महारानी थी, उसे देश के विद्वानों का सम्मान करने और उन्हें भोजन पर आमंत्रित
करने का शौक था। उनके राज्य में एक दिन अपने ही मायके के एक विद्वान आए, उन्होंने अपनी आदत के अनुसार उन्हें भोजन पर आमंत्रित किया और सुस्वादु
भोजन के रूप में खीर परोसी। खीर में बड़ी मात्रा में सूखे मेवे पड़े थे और मलाई के
साथ मिलकर उनकी एक मोटी परता खीर पर जम गयी थी। विद्वान ने सबसे पहले मेवे युक्त
मलाई की परत को हाथ से निकाला और बाहर रख दिया। फिर तेजी से हाथ की अंगुली को खीर
के अन्दर डाला और एक लाल चावल उसमें से निकाला और रानी को दिखाया! रानी हतप्रभ थी, उसने हाथ जोड़कर पूछा की प्रभु! आपका परिचय क्या है? उत्तर आया कि मैं प्रसिद्ध
आलोचक हूँ।
आलोचक स्वयं को
सिद्ध करने के लिये अपने अहंकार को पुष्ट करता है, चाहे
वह राजनीति में हो या साहित्य में। जबकि राजनेता या लेखक समाज की अनुभूति के साथ
खड़ा रहता है, वह समाज की नब्ज देखकर ही कार्य करता है या
लिखता है। आज राजनीति की ही बात कर लें क्योंकि दो-तीन दिन से अलग प्रकार की
राजनीति देखने में आ रही है, कोई अपनी ही नेता
के खिलाफ अपशब्दों का प्रयोग कर रहा है तो कोई ताल ठोक कर विरोध में नया दल बना बैठा है। मैं राजनीति शून्य हूँ, मेरा कोई अनुभव भी नहीं हैं लेकिन लेखक होने के नाते समाजनीति का
पूरा अनुभव है। लेखक हूँ तो आलोचक नहीं हूँ, आलोचक नहीं हूँ तो
स्वयं के अहंकार को पुष्ट करने का प्रयास नहीं करती। बस जो समाज चाहता है, उसे ही पढ़ने का प्रयास रात-दिन रहता है। मुझे आज लग रहा है कि एक
रानी जो विद्वान का सम्मान कर रही है, लेकिन विद्वान लाल
चावल का दाना निकालकर उसकी कमियां निकाल रहे हैं। यदि आप समाज के मध्य जाते तो
अच्छे राजनेता या लेखक बनते लेकिन स्वयं के अहंकार में डूबकर आप केवल कमियां
ढूंढने वाले आलोचक बन गये हैं। जब-जब भी किसी व्यक्ति के अहंकार ने ताल ठोकी है वह
औंधे मुँह गिरा है क्योंकि समाज कभी भी निरर्थक आलोचना पसन्द नहीं करता, वह काम चाहता है। कोई भी व्यक्ति या संगठन केवल कमियाँ ही निकालता
रहेगा तो समाज का दिल नहीं जीत सकता, उसे समाज के साथ कंधे
से कंधा मिलाकर काम करना ही पड़ेगा। उदाहरण देखिये – अन्ना हजारे का सम्मान समाज
करता था लेकिन वे कमियाँ निकालने चल पड़े और लोगों ने उन्हें नकार दिया। देश की
वर्तमान राजनीति में ऐसे कई नाम हैं जो खुद को बड़े पद पर आसीन करना चाहते हैं
लेकिन आलोचना के अतिरिक्त कुछ करते नहीं, समाज उनकी बातों का
आनन्द तो लेता है, उन्हें उकसा भी देता है लेकिन पसन्द नहीं करता।
मोदी में और अन्य
नेताओं में क्या अन्तर है? मोदी काम करता है, देश के
विकास को अपनी कलम से लिखता है। इसलिये वह लेखक की भूमिका में हैं और जो स्वयं के
अहंकार को पुष्ट करने के लिये उनकी आलोचना करते हैं, वे
केवल आलोचक बनकर रह गये हैं। आप कितनी नकारात्मक शक्तियों को एकत्र कर सकते हैं, इससे राजनीति चल ही नहीं सकती, हाँ आप विध्वंश जरूर
कर सकते हैं। यह देश स्वार्थपरक राजनिति के कारण सदियों से विध्वंश का शिकार होता
आया है और पुन: भी हो जाएगा, इससे ना आलोचकों को
कुछ प्राप्त होगा और ना ही सृजन करने वालों को, बस विनाश ही
निश्चित है। भारतीय इतिहास के जितने भी पृष्ठ खोलेंगे अधिकतर पृष्ठ ऐसे नकारात्मक –
अहंकारी व्यक्तियों से भरे होंगे और यही कारण है कि आज भारत रात-दिन के संघर्ष में
घिरा हुआ है। आप लोगों को यदि राजनीति की समझ है तो राजनीति कीजिए लेकिन समझ नहीं
हैं तो अपने अहंकार को पुष्ट करने के लिये ही केवल आलोचक मत बनिये। एक तरफ ऐसी कौम
है जो अपने सम्प्रदाय के लिये खुद को बारूद से बांधकर उड़ा दे रही है और दूसरी तरफ
हम है जो अपने अहंकार के नीचे दबे होकर अपने समाज के लिये थोड़ा सा त्याग नहीं कर
सकते। यदि आपके साथ अन्याय हुआ है तो आप पर्दे के पीछे जाकर समाज का काम करें
लेकिन विध्वंश की राजनीति करने से विनाश के अतिरिक्त कुछ हासिल नहीं होगा। अपनी
विद्वता सिद्ध करने के लिये रानी की खीर से लाल चावल निकालते रहिये और समाज को
बताते रहिये कि विद्वानों का सत्कार करने पर ऐसी ही आलोचना का शिकार होना पड़ेगा।
www.sahityakar.com
5 comments:
जो काम करेगा उसे बोलने वाले, सुनाने वाले बहुत मिल जाते हैं, लेकिन जो कुछ करेगा ही नहीं उसे कौन पूछता है, यही देखना चाहिए
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (27-06-2018) को "मन को करो विरक्त" ( चर्चा अंक 3014) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन आपातकाल की याद में ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
कविता जी आभार।
राधा तिवारी जी और सेंगर जी आप दोनों का आभार।
Post a Comment