Thursday, April 12, 2018

दे थप्पड़ और दे थप्पड़



राष्ट्रमण्डल खेलों का जुनून सर चढ़कर बोल रहा है और लिखने के लिये समय नहीं निकाल पा रही हूँ, लगता है बस खेलों की यह चाँदनी चार दिन की है तो जी लो, फिर तो उसी अकेली अँधेरी रात की तरह जिन्दगी है। कल शूटिंग के मुकाबले चल रहे थे, महिला शूटिंग में श्रेयसी सिंह ने स्वर्ण पदक जीता। स्वर्ण पदक मिलता इससे पहले ही खेल बराबरी पर थम गया और अब बारी आयी शूट-ऑफ की। इस समय किसी भी खिलाड़ी के दिल की धड़कने बढ़ ही जाती है लेकिन कौन अपने दीमाग को संतुलित रख पाता है, बस वही जीतता है। आखिर श्रेयसी अपने आप को संतुलित रखने में सफल हो गयी और स्वर्ण पदक पर कब्जा कर लिया। दूसरा गेम पुरुषों के बीच था, भारत के दो खिलाड़ी आगे चल रहे थे लेकिन जैसे-जैसे वे पदक के नजदीक आ रहे थे उनका धैर्य चुकता जा रहा था और मित्तल तो आखिरी क्षणों में संतुलन ही खो बैठे और कांस्य से समझौता करना पड़ा। अधिकतर खेलों में दीमाग का संतुलन रखने में महिला खिलाड़ी पुरुषों से अधिक सफल रहीं।
आम जीवन में हम सुनते आये  हैं कि महिला जल्दी धैर्य खो देती हैं जबकि पुरुष हिम्मत बनाए रखता है। लेकिन इन खेलों को देखकर तो ऐसा नहीं लग रहा है। महिला ज्यादा सशक्त दिखायी दे रही हैं। जैसै-जैसे महिलाएं दुनिया के समक्ष आता जाएंगी, उनके बारे में बनायी धारणाएं बालू के ढेर की तरह बिखरती जाएंगी। यहाँ भी तुम्हें धैर्य नहीं खोना है, आधी दुनिया तुमने पार कर ली है बस अब बाकी की आधी दुनिया शीघ्र ही तुम पार कर लोगी फिर यह दुनिया वास्तविक दुनिया बनेगी।
मेरे कार्यस्थल के एक साथी थे, गुटका खा रहे थे तो मैंने टोका, वे बोले की पुरुष हूँ तो कोई ना कोई नशा तो करूंगा ही। कोई गुटका खा रहा है, कोई सिगरेट, कोई शराब तो कोई भांग और अब तो जहरीले नशे भी उपलब्ध हैं। नशा नहीं भी है तो गालियों का सहारा लेते हैं या हिंसा का। तुर्रा यह कि पुरुष  हैं। लेकिन सारे ही नशे आपकी मानसिक स्थिति के परिचायक हैं। दुनिया में प्रतिशत देख लो, महिलाएं नशे के लिये कितना नशा करती हैं और पुरुष कितना? एक हास्य कलाकार हैं – अमित टंडन, वे किस्सा सुना रहे थे कि लड़का केवल पैदा होता है, घर वाले भी कहते हैं कि बस तू तो पैदा हो जा, इतना ही बहुत है। लेकिन लड़की को सिखाते हैं कि यह सीख ले और वह सीख ले नहीं तो पता नहीं सामने वाला कैसा मिलेगा! लड़के को कहते है कि देख कहना मान ले नहीं तो काला कुत्ता आ जाएगा। जब लड़का समझने लायक होता है और 7-8 साल का हो जाता है तब काले कुत्ते को देखता है और कहता है कि यह काला कुत्ता था, जिससे मुझे डराया जाता था कि काला कुत्ता आ जाएगा और दे थप्पड़ और दे थप्पड़, कुत्ते को मार देता है। जब लड़की की शादी होती है और 6 महिने निकल जाते हैं तो कहती  है यह था वो सामने वाला कि यह सीख ले और वह सीख ले! फिर दे थप्पड़ और दे थप्पड़। दुनिया आँखे खोलो, नशे से  बाहर आओ, महिलाओं के साथ रहना सीखो और इस दुनिया को सुन्दर बनाने में अपनी ऊर्जा लगाओ। जीवन को खेल की तरह लो और अपना संतुलन बनाए रखो।

4 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (13-04-2017) को बैशाखी- "नाच रहा इंसान" (चर्चा अंक-2939) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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बैशाखी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

PD said...

वैसे एक सवाल.. क्या महिला खिलाड़ी ने पुरुष खिलाड़ी के खिलाफ अपना मानसिक संतुलन एवं धैर्य बनाये रखा अथवा महिला खिलाड़ी के ही विरुद्ध? बिलकुल यही सवाल क्या पुरुष खिलाड़ी ने महिला खिलाड़ी के खिलाफ अपना मानसिक संतुलन एवं धैर्य बनाये रखा अथवा पुरुष खिलाड़ी के ही विरुद्ध?

सो इस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए आपका तर्क ठीक नहीं. कुछ और डाटा चाहिए इस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए.

विकास नैनवाल 'अंजान' said...

सार्थक पोस्ट... दुनिया आँखे खोलो, नशे से बाहर आओ, महिलाओं के साथ रहना सीखो और इस दुनिया को सुन्दर बनाने में अपनी ऊर्जा लगाओ। जीवन को खेल की तरह लो और अपना संतुलन बनाए रखो।
इसी में पूरा सार है...
आपकी बात भी सच है कि महिलाएं संतुलन बनाने में ज्यादा कारगर होती हैं..ऐसा इसलिए भी कह रहा हूँ कि क्राइम्स ऑफ़ पैशन यानी वक्ती जूनून के हवाले होकर किए गए अपराधों की संख्या में पुरुष काफी आगे हैं....महिलाएं भी ऐसे अपराध करती हैं लेकिन काफी कम संख्या में.....

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

समय-समय और व्यक्ति-व्यक्ति की बात होती है ! वैसे मित्तल के सामने भी तो पुरुष ही था !