Thursday, March 8, 2018

गमले में सिमटी माँ बौन्जाई बनाती है, वटवृक्ष नहीं


आपने कभी वटवृक्ष देखा है, कितना विशाल होता है! उसे जितनी धरती का आँचल मिलता है, वह उतना ही विशाल होता जाता है। लेकिन कुछ आधुनिक लोग आजकल वटवृक्ष को भी गमलों में रोपने लगे हैं और आपने देखा होगा कि उनका आकार सीमित हो जाता है, वे लगते तो वटवृक्ष ही हैं लेकिन उनकी विशालता सीमित हो जाती है। धरती ही उन्हें विशाल बनाती है और धरती ही उन्हें बौना बना देती है। धरती का जितना आकार होता है उतना ही वटवृक्ष का विस्तार होता है, ऐसे ही महिला भी है जो धरती समान है और पुरुष बीज समान है। महिला की सोच जितनी विशाल होती जाती है उतनी ही व्यापकता से वह पुरुष का व्यकित्व बनाती है, यदि वटवृक्ष को गमले में सीमित किया गया है तो वह बौना बन जाएगा और उसे यदि प्रचुर धरती दी है तो वह कभी ना रुकने वाला वटवृक्ष बन जाएगा। महिला हर आयु में माँ स्वरूप रहती है, वह हमेशा पुरुष को विकसित करने का काम करती है, कभी वह गर्भ में धारण कर उस बीज को पौधे का आकार देती है तो कभी पत्नी बनकर उसे पुष्पित-पल्लवित करती है, बहन के रूप में प्रेम रूपी रक्त का संचार करती है तो पुत्री बनकर पुरुष को भी ममता से ओतप्रोत करती है। वह जब भी पुरुष के समक्ष होती है, हर रूप में स्निग्धता भरती है। इसलिये पुरुष को वटवृक्ष के समान विशाल बनना है तो महिला के व्यक्तित्व को व्यापक बनाना ही होगा, यदि महिला को हमने संकुचित सोच में ढाल दिया तब वह गमला बन जाएगी और पुरुष को भी बौन्जाई बना देगी।
हमारे जमाने में बालिका को जन्म के साथ ही दीक्षित किया जाता था, उसे माँ बनने के लिये प्रति पल शिक्षित किया जाता था। पुरुष महिला के साये में पलता था और बड़ा होता था, उसे कभी संकट का सामना नहीं करना पड़ता था, एक स्वाभाविक प्रक्रिया थी, धरती बीज को धारण करती थी और वही धरती बीज को वृक्ष में बदल देती थी लेकिन आजकल परिवर्तन होने लगे हैं। महिला ने स्वयं को गमले तक सीमित कर लिया है और वह पुरुष को भी बौना बना रही है। महिला ने उस बीज को खुला आसमान देना बन्द कर दिया है, उस के स्थान पर गमले को कमरे की चारदीवारी में कैद कर दिया है। घर-घर में गमलों का चलन बढ़ गया है, न जाने कितने बौन्जाई गमलों में बन रहे हैं और अपने सीमित आकार में गमले की शोभा बढ़ा रहे हैं। आज महिला दिवस है, हम अपनी व्यापकता के बारे में विचार करे, हम में कितनी संभावनाएं है, उन्हें टटोलें, हम पुरुष को कितना विशाल व्यक्तित्व बना सकते हैं, इस पर विचार करें। जब भी कोई महिला माँ बन रही हो, तब उसे ध्यान में रहे कि अपनी पुत्री को गमले में परिवर्तित नहीं करना है अपितु उसकी सोच का दायरा उस खेत के समान करना है जहाँ विशाल वटवृक्ष की सम्भावना बन सके। जब भी हम गमलों में परिवर्तित होंगे तब पुरुष अपने आपको विस्तार देने के लिये गमलों की चारदीवारी को तोड़ने का प्रयास करता रहेगा, इसलिये उसे विस्तार देने में स्वयं की व्यापकता निर्धारित करें। अपने मातृ-स्वरूप को पहचाने और वह पुरुष की विशालता के लिये खुद को विशाल  बनाए। याद रखिये कि राम जब धरती पर अवतार लेते हैं उससे पहले कौशल्या मातृ-स्वरूप में उपस्थित होती है, कृष्ण के लिये देविका का आगमन होता है, शिवाजी के लिये जीजा बाई होती है। हर विशाल व्यक्तित्व के पीछे एक माँ खड़ी होती है, उसका विशाल आँचल होता है। किसी भी गमले में सिमटी माँ ने कभी  भी विशाल व्यक्तित्व को जन्म नहीं दिया है, इसलिये महिला की विशालता में ही पुरुष की विशालता निहित है। महिला दिवस पर सभी माताओं और सभी पुत्रों को बधाई।
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4 comments:

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन अरे हुजूर वाह ताज बोलिए : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

Vivek said...

bahut hi achchi post hai. aapke likhne ka tareeka kabil-e-tareef hai

अजित गुप्ता का कोना said...

सेंगर जी आभार।

अजित गुप्ता का कोना said...

विवेक जी आभारी हूँ।