Thursday, August 24, 2017

अब महिला के पक्ष में वोट बैंक आएगा

#हिन्दी_ब्लागिंग
एक प्रसंग जो कभी भूलता नहीं और बार-बार उदाहरण बनकर कलम की पकड़ में आ जाता है। मेरी मित्र #sushmakumawat ने कामकाजी महिलाओं की एक कार्यशाला की, उसमें मुझे आमंत्रित किया। कार्यशाला में 100 मुस्लिम महिलाएं थी। मुझे वहाँ कुछ बोलना था, मैं समझ नहीं पा रही थी कि मैं क्या विषय लूं जो इन्हें समझ आ जाये! फिर मैंने कहा कि आज हम केवल बातचीत करते हैं और आपके जो प्रश्न हो उनको हल करने का प्रयास करते हैं। दो प्रश्न आए – पहला – तलाक-तलाक-तलाक कब तक और दूसरा बुर्का कब तक। वहाँ 100 महिलाओं में हर उम्र की महिला थी, अधिकांश पीड़ित थीं, तलाकशुदा थीं। हम उनका दर्द जानने का प्रयास कर ही रहे थे कि नीचे शोर मचा। तब मुझे बताया गया कि किसी महिला के कमरे में मौलवी घुसकर जबरदस्ती कर रहा है और महिला चिल्ला रही है लेकिन बचाने की हिम्मत किसी में नहीं है। तब मैंने इस बात को कई बार दोहराया कि मुस्लिम समाज में अवश्य क्रांति आएगी और महिलाओं के द्वारा ही आएगी। आज पहले प्रश्न का समाधान आ गया है बस दूसरा उसके सहारे ही हल हो जाएगा।
साहित्यिक महिलाओं की एक विचार गोष्ठी किसी परिवार में आयोजित थी, वहाँ महिला अधिकारों की बात हो रही थी। मुस्लिम बहन कह रही थी कि हमें कोई अधिकार नहीं हैं, हमारे नाम मकान नहीं है, कोई सम्पत्ती नहीं है। ताज्जुब तब हुआ जब हिन्दू बहने भी उसी रो में बहती दिखीं। मैंने कहा कि हमारे यहाँ तो ऐसा नहीं है, मेरे नाम मकान है और पूरा घर मेरा है। मुस्लिमों की इस समस्या को हिन्दुओं की क्यों बनाते हो। महिला मुक्ति आंदोलन में यही स्थिति बनी। यूरोप में महिलाओं ने चर्च के खिलाफ मोर्चा खोला तो आग हमारे यहाँ भी लगी, जबकि भारत में ऐसा नहीं था। दोनों बातें सामने आयीं, एक ईसाई महिला पादरियों का शिकार हो रही थीं और दूसरा मुस्लिम महिला मौलवियों का शिकार बन रही थी। लेकिन लपेटे में हिन्दू समाज भी आ रहा था। हिन्दू समाज के सन्तों ने भी स्वयं को भगवान का दर्जा दिया और महिलाओं का शोषण करने का प्रयास प्रारम्भ किया। मुस्लिम समाज में भी जहाँ एक तरफ तीन तलाक का बोलबाला था तो हिन्दू समाज के पुरुष भी महिला को अपनी अनुगामिनी मानने लगे और सभी जगह अपना वर्चस्व स्थापित करने में लग गये।
इसलिये कल का दिन इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज हो गया है जब स्त्रियों को आजादी मिली है। प्रत्यक्ष आजादी मुस्लिम महिला को मिली है लेकिन अप्रत्यक्ष आजादी सभी को मिली है। जो अपराध समाज में बढ़ता जा रहा था और उसके छींटे सारे समाजों पर पड़ रहे थे, उससे समाज और देश को मुक्ति मिली है। हलाला को नाम पर यौन उत्पीड़न का दौर शुरू हुआ था जो हवस बनकर विस्तार ले रहा था। सारा महिला समाज असुरक्षित हो गया था, नन्हीं बच्चियां तक असुरक्षित हो गयी थीं। जब किसी एक वर्ग की तानाशाही समाप्त होती है तो बहुत सारे अपराध और जुल्म भी समाप्त होते हैं। यह विभेद बहुत पहले ही समाप्त हो जाता यदि शाहबानो के केस में राजीव गांधी महिलाओं के पक्ष में खड़े होते। आज मोदी जी का लाख-लाख धन्यवाद है कि वे महिलाओं के पक्ष में खड़े हुए और उन्हें न्याय मिलने के मार्ग में बाधक नहीं बने। हमारा उनको नमन। यह सृष्टि जितनी पुरुषों की है उतनी ही महिलाओं की है, किसी एक को इसे अपनी मन मर्जी से चलाने का हक नहीं है। अब महिला ने खड़ा होना सीख लिया है, वे अपने अधिकार लेकर ही रहेगी। धर्म के नाम पर महिलाएं कल यूरोप में पादरियों से मुक्त हुई थीं और आज भारत में मौलवियों से। अब महिला का स्वाभिमान लौटेगा और उसका यथोचित सम्मान समाज को देना ही पड़ेगा। जिन महिलाओं ने भी इस आंदोलन को लड़ा है उन्हें भी प्रणाम। इस आंदोलन से देश बदलेगा और सारे ही समीकरण बदलेंगे। अब वोट बैंक के लिये महिला का अधिकार नहीं छीना जाएगा। अब महिला के पक्ष में वोट बैंक आएगा।
www.sahityakar.com

2 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (25-08-2017) को "पुनः नया अध्याय" (चर्चा अंक 2707) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’क्रांतिकारी महिला बीना दास जी को नमन - ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...