Tuesday, November 8, 2016

मन में रेंगते कीड़े को अनुभूत कीजिए

कल एक फिल्म कलाकार का साक्षात्कार टीवी पर आ रहा था, वे कहते हैं कि मैं जब छोटा था तब मैंने अनेक महापुरुषों की जीवनी पढ़ी और पाया कि सभी लोग दिल्ली में रहकर बड़े बने। मुझे भी दिल्ली जाने की धुन सवार हो गयी और उसी धुन के तहत दिल्ली गया, थियेटर कलाकार बना और फिर मुम्बई जा पहुँचा और आज यहाँ आपके सामने हूँ।
मेरे पिता भी एक छोटे से गाँव के वासी थे और वे भी जिद करके दिल्ली गये। हमारे परिवार का जीवन और हमारे चाचा-ताऊ के परिवार के जीवन में रात-दिन का अंतर है। मेरे पति भी गाँव छोड़कर शहर आए और आज हमारे जीवन और जो गाँव में रह गये उनके जीवन में अंतर है।
जो भी व्यक्ति कुछ नया करना चाहता है वह अपनी परिस्थितियों से समझौता नहीं करता, वह सम्भावनाओं के द्वार तलाशता है। कई बार हम अपना क्षेत्र बदलते हैं तो कई बार कार्य। लेकिन जो ऐसा करने का साहस नहीं जुटा पाते वे सृजन के नवीन द्वार नहीं खोल पाते। मेरे पति ने अपना क्षेत्र बदला था और मैंने अपना कार्य बदल लिया। वे अपने कार्य से खुश हैं और मैं अपने सृजन से।
जीवन का आनन्द सृजन में हैं। यदि हम इच्छित सृजन कर पाते हैं तो जीवन में सफलता का अनुभव करते हैं और यदि जीवन में सृजन नहीं है तो हम इस संसार से रिक्त से चले जाते हैं। अपनी दुनिया का नवीन सृजन करने वाला व्यक्ति हमेशा संतुष्ट रहता है, जो ऐसा नहीं कर पाते वे निराशा का वातावरण बनाते हैं।

लेकिन केवल सम्भावनाओं के द्वार तलाशना ही पर्याप्त नहीं होता, उससे पहले स्वयं को तलाशने की जरूरत होती है। आपके अंदर का रेशम का कीड़ा आपको तलाशना है, वो अंदर नहीं है तो आप कहीं भी चले जाइए, आप उस कीड़े के वगैर सृजन कर ही नहीं सकते। सिल्क का कपड़ा तभी बुन पाएंगे जब आपके पास रेशम का कीड़ा होगा। यदि आपके पास वह कीड़ा है तो आपको वह बैचेन कर देगा और वह बैचेनी आपको इच्छित मंजिल तक ले जाने में सहायक बन जाएगी। यही बैचेनी एक दिन जुनून में बदल जाएगी और आप सृजन के साथ खड़े होंगे। यदि यह कीड़ा आपके अंदर नहीं है तो आप भागकर अमेरिका ही क्यों ना चले जाएं लेकिन आप संतुष्ट नहीं हो सकते। इसलिये मन में रेंगते कीड़े को अनुभूत कीजिए, फिर सम्भावनाओं के द्वार तलाश कीजिए। सृजन के साथ आप संतुष्ट से खड़े दिखायी देंगे।

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