Wednesday, August 31, 2016

प्रेम की सूई दिखायी देती नहीं

हर व्यक्ति के पास इतना ज्ञान आ गया है कि वह ज्ञान देने के लिये लोग ढूंढ रहा है, बस जैसे ही अपने लोग मिले कि ज्ञान की पोटली खुलने लगती है और बचपन मासूम सा बनकर कोने में जा खड़ा होता है।
पोस्ट को पढ़ने के लिये इस लिंक  पर क्लिक करें - http://sahityakar.com/wordpress/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%AE-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%88-%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%96%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A5%80-%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%A4%E0%A5%80-%E0%A4%A8/ 

2 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (01-09-2016) को "अनुशासन के अनुशीलन" (चर्चा अंक-2452) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

अजित गुप्ता का कोना said...

आभार।