Saturday, April 27, 2013

लेखन और पठन का अपना ही मिजाज होता है

लेखन का भी जैसे एक मिजाज होता है वैसे ही पढ़ने का भी अपना ही मिजाज होता है। हमारी सुबह तय करती है कि आज क्‍या लिखा जाएगा या क्‍या हमारा मन पढ़ने को करेगा। इंटरनेट खोलने पर अनेक लेख, कविता, कहानी आदि हमारे सामने आकर बिखर जाते हैं लेकिन हमारा मन बस कभी कहीं पर अटकता है तो कभी कहीं पर।
पोस्‍ट को पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें - http://sahityakar.com/wordpress/%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%96%E0%A4%A8-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%AA%E0%A4%A0%E0%A4%A8-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%85%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A4%BE-%E0%A4%B9%E0%A5%80-%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A4%BE/

2 comments:

अजित गुप्ता का कोना said...

धन्‍यवाद अरुण शर्मा जी।

Ramakant Singh said...

चार लाइन में सब कुछ कह देने के लिए आमिर खुसरो जी, रहीम, तुलसी, कबीर सक्षम रहे ये सर्वकालिक हैं आज भी चार शब्दों में सब कुछ कहने वाले हैं बस उनसे मुलाकात जाये यही कठिन हो जाता है