Friday, March 1, 2013

हम चिड़ियाघर की तरह अपने-अपने कक्ष में बैठे हैं



मन कभी-कभी विद्रोह सा कर देता है, वह नकार देता है आपके सारे ही मार्ग। आप जिन मार्गों पर प्रतिदिन चल रहे हैं, जिनके बिना जीवन अधूरा सा दिखायी देता है, उनको कभी मन नकार देता है। कहता है कि बस हो गया, अब और नहीं जाना इस मार्ग पर। एक आम बुद्धिजीवी की जिन्‍दगी क्‍या है? इस पोस्‍ट को पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें - http://sahityakar.com/wordpress/%E0%A4%B9%E0%A4%AE-%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%98%E0%A4%B0-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%B9-%E0%A4%85%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%85/

4 comments:

Tamasha-E-Zindagi said...

वाह बहुत बढ़िया | आभार |

Tamasha-E-Zindagi
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Ramakant Singh said...

गजब का फलसफा दिया है आपने आदरणीया ... सभी अच्छे लगें ऐसा कहाँ सम्भव और बारहों महीने। बुरा न माने तो मेरे पोस्ट ** भेड़िया ** पर एक नज़र डालें शायद आपका मन हल्का हो।

Tamasha-E-Zindagi said...

सुन्दर भाव | आभार


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Tamasha-E-Zindagi
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अजित गुप्ता का कोना said...

तुषार जी आभार।