Wednesday, January 18, 2012

अतीत हमें वर्तमान में जीने नहीं देता



जिस किसी भी व्‍यक्ति के पास या देश के पास अपना अतीत नहीं होता वह वर्तमान में ही जीता है और भविष्‍य की कल्‍पना करता है लेकिन जिसके पास अतीत होता है वह अतीत में ही डूबा रहता है। वह वर्तमान में भी नहीं जी पाता और ना ही अपना भविष्‍य बना पाता है। एक बच्‍चे के पास उसका अतीत नहीं होता, वह वर्तमान को पूरी तरह से जीना चाहता है। प्रत्‍येक नयी वस्‍तु को पाना चाहता है। उसे पता नहीं होता कि अतीत क्‍या होता है? लेकिन इसके विपरीत एक प्रौढ़ व्‍यक्ति के पास उसका अतीत होता है इसी कारण वह अतीत में ही डूबा रहता है। अतीत के अनुभव उसे भविष्‍य की कल्‍पना भी नहीं करने देते। बच्‍चे के सामने एक नयी चमचमाती कार है, वह उसे पाने की कोशिश करता है। उसे पता नहीं कार के पहले भी कुछ था क्‍या। लेकिन इसके विपरीत उसके पिता ने कार के पहले का जीवन भी देखा है, कार से होने वाली दुर्घटनाएं भी देखी हैं तो वह अपने अतीत में चले जाता है और किशोरवय पुत्र को कार से दूर रहने को कहता है। किशोर अवस्‍था से युवावस्‍था में कदम ही रखा होता है कि विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण पैदा हो जाता है। बस उसे आकर्षण का मालूम है उसका इतिहास मालूम नहीं। लेकिन उसके माता-पिता को मालूम है। वह अतीत का भय उसे दिखाते हैं। सोच समझकर कदम रखने की सलाह देते हैं। ऐसे ही कितने उदाहरण है। इसी अतीत के कारण नए और पुराने का द्वंद्व बना रहता है।
ऐसा ही देशों के साथ भी होता है। सम्‍प्रदायों के साथ भी होता है। भारत देश का स्‍वर्णिम अतीत रहा है इसलिए यहाँ के लोग केवल अतीत में ही जीते हैं। वे वर्तमान को भी उसी तराजू में तौलते हैं और भविष्‍य की कल्‍पना में भी अतीत को ही ले आते हैं। इसके विपरीत जिन देशों का अतीत नहीं है वे केवल वर्तमान में जीते हैं और भविष्‍य को कैसे सुखी रखे बस इसकी कल्‍पना करते हैं। लेकिन अतीत हमेशा हानिकारक ही नहीं होता। अतीत से अनुभव आता है और हमें सही मार्ग चुनने का रास्‍ता मिलता है। इसलिए दोनों पीढियां एक दूसरे का सम्‍मान करते हुए अपना मार्ग तय करें तो शायद हम सभी का भविष्‍य ज्‍यादा सुरक्षित रह सकता है। भारत भी यदि दूसरे देशों से वर्तमान में जीना सीख लें तो भारत का भविष्‍य भी ज्‍यादा सुखी हो सकता है। इस विषय के अनेक पहलु हैं, जब आप पढ़ेंगे तो लगेगा कि बहुत कुछ छूट गया है। मैंने चलाकर ही छोड़ा है, जिससे आप सभी अपने अनुभवों से इसे पूरा कर सकें।
( विशेष बहुत दिनों से कोई पोस्‍ट नहीं लिखी थी, इसलिए यह संक्षिप्‍त सी पोस्‍ट प्रेषित कर रही हूँ ) 

53 comments:

zoya rubina usmani said...

bahut sahi baat kahi aapne...ateet hmen achha bhi sikhhata hai aur bura bhi, to use hmen apni takat banani chahiye, na ki kamzori!!

shikha varshney said...

यह संक्षिप्त है ??? नहीं अजीत जी इसमें तो सारा सागर समा जाए..बहुत ही सार्थक बात कही है आपने.

kshama said...

Kisee bhee desh ke liye ek ateet hona badee baat hai....wahee uska itihaas hai,jisse deshwasiyon ko seekhna hota hai!

शूरवीर रावत said...

संक्षिप्त अवश्य किन्तु सार्थक. आभार ! ..... गौरवमयी अतीत होते हुए भी हम आज पिछड़ नहीं गए क्या ?...... ऐसा तो नहीं कि हम अतीत को लेकर ही डूबे रहते हैं ? इस पर मनन करना होगा अजीत जी.

अरुण चन्द्र रॉय said...

संक्षिप्त किन्तु सार्थक

प्रवीण पाण्डेय said...

वर्तमान से आँख नहीं हटाना चाहिये...

दीपक बाबा said...

सहमत हैं जी

संक्षिप्त परन्तु सार्थक.

rashmi ravija said...

अतीत और वर्तमान का सही संतुलन जरूरी है...जैसे गाड़ी चलाते वक़्त रियर व्यू में भी झांकते रहना पर नज़र सामने सड़क पर रखनी पड़ती है...वही आगे ले कर जाएगी

Satish Saxena said...

सुखद वर्तमान के लिए अतीत से सबक आवश्यक है !
शुभकामनायें आपको !

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

हम अतीत पर गौरवान्वित हो सकते हैं पर उसे ढो नहीं सकते! इसलिए जीना तो वर्तमान में ही होता है भविष्य के उज्जवल समय की आस में॥

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

हम अतीत पर गौरवान्वित हो सकते हैं पर उसे ढो नहीं सकते! इसलिए जीना तो वर्तमान में ही होता है भविष्य के उज्जवल समय की आस में॥

संजय @ मो सम कौन... said...

बहुत पहले इसी विषय पर एक आलेख पढ़ा था, शायद ’प्रभाष जोशी’ का लिखा था। यह भूत, वर्तमान, भविष्य वाली मानसिकता हमारे चेतन अवचेतन मस्तिष्क पर बहुत प्रभाव डालती है। हमारी जीवन शैली पर इस बात का बहुत प्रभाव होता है। सिर्फ़ वर्तमान जीवन का महत्वपूर्ण होना ’येन-केन-प्रकारेण’ अपना मतलब पूरा करने की मानसिकता भी दिखाता है।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सार्थक आलेख!

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

मनन योग्य बहुत सुंदर सार्थक प्रस्तुति,बेहतरीन
welcome to new post...वाह रे मंहगाई

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

इतिहास की गलतियों से वर्तमान में सुधार करना ज़रुरी है ..अतीत याद तो आता है पर चलना तो आगे की ओर ही है ..वर्तमान को नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता .. और न ही अतीत में जिया जा सकता है .अतीत से सीख वर्तमान को प्रभावी बनाना चाहिए .

सत्य गौतम said...

yh bat to hai.

प्रतिभा सक्सेना said...

हाँ ,सुदूर अतीत की सुनहरी यादों का जुगाली करने की आदत पड़ गई है . उचित यह होगा कि हम अपने विगत की जिन ग़लतियों का ख़ामियाज़ा भुगत रहे हैं उन्हें सुधारने की कोशिश वर्तमान में करें तभी भविष्य उज्ज्वल हो सकता है . .

vandana gupta said...

दोनों पीढियां एक दूसरे का सम्‍मान करते हुए अपना मार्ग तय करें तो शायद हम सभी का भविष्‍य ज्‍यादा सुरक्षित रह सकता है।

अकाटय सत्य है ………………:)

Anonymous said...

bahut sahi baat uthayee hain......

Patali-The-Village said...

बहुत ही सटीक और भावपूर्ण रचना। धन्यवाद।

संजय कुमार चौरसिया said...

सार्थक बात

Pallavi saxena said...

आपकी यह पोस्ट संक्षिप्‍त ज़रूर है मागर सार्थक भी है बहुत सही और सच लिखा है आपने मैं आपकी बातों से पूर्णतः सहमत हूँ। मगर जैसा की आपने कहा "दोनों पीढियां एक दूसरे का सम्‍मान करते हुए अपना मार्ग तय करें तो शायद हम सभी का भविष्‍य ज्‍यादा सुरक्षित रह सकता है।" मगर ऐसा हो कहाँ पाता है...ना देश के मामले मे और ना ही व्यक्तिगत तौर पर क्या यह संभव है?

शारदा अरोरा said...

baat sahi hai ...ateet se seekh le kar aage badh jana chahiye ...

मन के - मनके said...

वर्तमान में जीना ही व्यवहारिक है,परंतु वर्तमान कहीं ना कहीं,हमारे भूत से ही जुडा है.
आपने सही कहा भूत हमारी पाठशाला है.

डॉ टी एस दराल said...

सब का कोई न कोई अतीत होता है . लेकिन जीना तो वर्तमान में ही चाहिए .

हालाँकि अतीत से सीखने को भी मिलता है .

अशोक सलूजा said...

अतीत की सीख से वर्तमान सुधारा जा सकता है ...और अच्छे वर्तमान से अच्छे भविष्य की नींव पड़ती है ....???

Atul Shrivastava said...

अतीत से सीख लेकर वर्तमान में कर्म कर भविष्‍य बनाया जा सकता है.....पर अतीत पर ही केन्द्रित रहना किसी दृष्टि से ठीक नहीं।
सार्थक और चिंतनपरक पोस्‍ट।

संजय भास्‍कर said...

सटीक अतीत से सीखने को मिलता है

अजित गुप्ता का कोना said...

पल्‍लवी जी, मैं यही कहने की कोशिश कर रही हूं कि नयी पीढी के पास अतीत नहीं है इसलिए वह केवल वर्तमान में ही जीता है और पुरातन पीढी के पास अतीत है तो वह वर्तमान में ही जी नहीं सकता। यही विडम्‍बना है, इसी कारण मतभेद हैं। और शायद यही अंतर हर युग में बना रहता है इसी कारण जब हम बच्‍चे थे तो कुछ और थे और आज कुछ और हैं।

अभिषेक मिश्र said...

सही कहा है आपने कि अतीत के अनुभवों का इस्तेमाल वर्तमान तथा भविष्य से भय नहीं बल्कि इन्हें और बेहतर बनाने के लिए किया जाना चाहिए.

SKT said...

जैसी पोस्ट पढ़ते रहे हैं वैसा ही चिंतनशील आलेख...एक बार फिर!

Anupama Tripathi said...

आपकी किसी पोस्ट की चर्चा है नयी पुरानी हलचल पर कल शनिवार 21/1/2012 को। कृपया पधारें और अपने अनमोल विचार ज़रूर दें।

डॉ. मोनिका शर्मा said...

विचारणीय बातें ..... संक्षिप्त पर सार्थक पोस्ट

vidya said...

बेहतरीन...
बीता हमारे साथ चलता है..बीतता नहीं कभी.
सादर.

सदा said...

संक्षिप्‍त सी पोस्‍ट यूं जैसे गागर में सागर ...बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति आभार ।

प्रेम सरोवर said...

जिस किसी भी व्‍यक्ति के पास या देश के पास अपना अतीत नहीं होता वह वर्तमान में ही जीता है। पोस्ट अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद .

निर्मला कपिला said...

सार्थक आलेख। अतीत न हो तो वर्तमान के सुख दुख को कैसे समझ सकेंगे--- अतीत की सीख ही हमे आगे ले जाती है। अजित जी किसी ब्लाग पे बहुत दिन से आ नही पाई लेकिन आपको बहुत याद किया। आशा है अब रोज मुलाकात होगी। शुभकामनायें।

अजित गुप्ता का कोना said...

निर्मलाजी, अभी आपको याद ही कर रही थी कि आप की टिप्‍पणी मिल गयी। आपका स्‍वास्‍थ्‍य कैसा है?

Rohit Singh said...

बात बड़े संदर्भ में है इसलिए व्यक्तिगत जीवन से हट कर कहूं तो हमारे देश का वर्तमान और भविष्य दोनो ही बेहतर होना चाहिए था...पर है नहीं..हां ज्यादा निराशा या ज्यादा आशावादी नहीं हैं....न ही वर्तमान न ही भविष्य....हमसे मुश्किल ये हुई कि सतत आगे बढ़ते रहने को प्रेरित करने वाले अतीत को भूल चुके हैं ..औऱ केवल अतीत के गौरव को ही आज भी ढो रहे हैं...हम सनातन क्यों थे....ये भूल कर हम वर्तमान को बदलकर जीना चाहते हैं..परंतु मुश्किल ये है कि अतीत अब भी निरंतर होकर वर्तमान में नही तब्दील हो रहा बल्कि लाश के बेताल की तरह हमारे कंधों पर सवार है और सिर के टुकड़े होने के डर से हम वेताल को उतार कर उसे सनातन यानि निरंतर नूतन की तरह इस्तेमाल नहीं कर रहे....कहीं भी हमारा अतीत ये नहीं कहता था कि कर्म को छोड़कर जीवन जिओ..बस हम यही कर रहे हैं....

Naveen Mani Tripathi said...

behad prabhavshali post gupta ji ....sadar abhar.

दिगम्बर नासवा said...

जरूरी नहीं है की अतीत न होने पे देश या काल के लोग नया ही सोचते हैं ... पाकिस्तान इसका उधाहरण है ... उका कोई इतिहास नहीं पर वो कुछ भी नया पुराना नहीं सोच पाते ...
अतीत का होना जरूरी है और नयी सोच को ग्रहण करना भी जरूरी है जिसके लिए खुली सोच जरूरी है जो हमारे देश में पैदा नहीं हो प रही ....

Khushdeep Sehgal said...

देवानंद साहब के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए...जिन्होंने कभी रुकना नहीं सीखा...तमाम असफलताओं के बावजूद अपनी पुरानी किसी फिल्म का रीमेक नहीं बनाया..88 साल का उम्र में भी युवकों से भी ज़्यादा जोश उनमें आने वाले कल की योजनाओं के लिए रहता था...किसी ने उनसे कहा था कि आप की फिल्में पिटती है, मुनाफा नहीं देती, आप फिर भी फिल्में क्यों बनाते रहते हैं...उनका जवाब था जब मैं मुंबई आया था तो मेरी ज़ेब में दो रुपये, आठ आने थे...और जब तक वो मेरी ज़ेब में हैं, मैं मुनाफ़े में हूं...​

​व्यस्तता के चलते ब्लागिंग में अनियमित हूं....माफ़ी चाहता हूं​​....
​​
​जय हिंद...

virendra sharma said...

भले अतीत मार्ग दर्शक बने .गर्व करें उस पर .लेकिन वतमान को सँवारे अतीत के अच्छे तत्व लेके ,भविष्य वर्तमान से ही प्रसवित होता है .जो भी है बस यही एक पल है नखलिस्तान है .आप ब्लॉग पर आईं,हमारा भी हौसला बढ़ा .

महेन्‍द्र वर्मा said...

कुछ के लिए अतीत ही वर्तमान हो जाता है।

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बहुत सार्थक सटीक अभिव्यक्ति, बेहतरीन पोस्ट....
new post...वाह रे मंहगाई...

मनोज कुमार said...

आपके इस संक्षिप्त से पोस्ट का फलक विस्तृत है।

G.N.SHAW said...

सहज और संक्षिप्त - किन्तु यथार्थ परक पोस्ट ! दिल छु गया ! इसमे एक कसक भी है !

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

.



"अतीत हमेशा हानिकारक ही नहीं होता।
अतीत से अनुभव आता है और हमें सही मार्ग चुनने का रास्‍ता मिलता है।
इसलिए दोनों पीढियां एक दूसरे का सम्‍मान करते हुए अपना मार्ग तय करें तो शायद हम सभी का भविष्‍य ज्‍यादा सुरक्षित रह सकता है।"
सच कहा आपने ।


इस विषय पर व्यापक फ़लक पर जिरह-बहस की अनेक संभावनाएं हैं । लेकिन एक बात तो तय है कि वर्तमान से संतुष्ट पाए जाने वालों की संख्या नाममात्र ही होगी…



बहरहाल,
सारगर्भित - सार्थक लघु आलेख के लिए आभार !

शुभ कामनाओं सहित…

Kailash Sharma said...

बहुत सच कहा है. सर्वांगीण विकास और सम्रद्धि के लिये अतीत और वर्तमान का उचित सामंजस्य जरूरी है. बहुत सारगर्भित आलेख ..आभार

virendra sharma said...

मेडम ये सारा सिलसिला मुस्लिम तुष्टिकरण का मिस्त्र अन क्लीन ने शुरू किया था .पहले शाहबानो फिर शैतान की आयातों पर पाबंदी फिर mandir का taalaa kholaa tabhi se yah domino prabhaav zaari hai .
कोंग्रेस का अतीत उसका पिंड नहीं छोड़ रहा है .

sm said...

very thoughtful and to the point
excellent
yes India has not learned to stay in present and look for future

कविता रावत said...

भारत भी यदि दूसरे देशों से वर्तमान में जीना सीख लें तो भारत का भविष्‍य भी ज्‍यादा सुखी हो सकता है...ekdam sahi baat kahi aapne..
saarthak chintanyukt post..

सुज्ञ said...

बहुत ही सार्थक चिंतन!!

अतीत गौरव से मात्र सीख लेते हुए चरित्र निर्माण का पुरूषार्थ होना चाहिए। अतीत गौरव को नशे की तरह जीना, और मदहोश पडे रहना दुर्भाग्य है। प्रमादियों के साथ दुर्भाग्य जुड़ा ही होता है।