Thursday, June 3, 2010

चेरी पीकिंग – cherry picking अमेरिका में चेरियों के खेत में चेरियां तोड़ों और जी भरकर खाओ


चेरियां आप सभी ने खायी होगी। लेकिन लाल सुर्ख दिल के आकार की बड़ी-बड़ी चेरी, भारत में हम जैसे राजस्थाभनियों को बहुत कम देखने को मिलती हैं। भारत में या तो शादी के शाही भोज के पुलाव में दिखायी दे जाती है या फिर कभी-कभार दिल्लीो जैसे शहर में। वो भी इतनी छोटी की लगता है बेर खा रहे हैं। 2007 में विश्वभ हिन्दील सम्मे लन में भाग लेने न्यूगयार्क आना हुआ था। भोजन व्य वस्थाे कुछ रास नहीं आयी थी। होटल और सम्मेंलन स्थवल के मध्य एक फलों की दुकान दिख गयी थी और वहां चेरी सहित कई फल थे। बस उन्हेंि ही खाकर तृप्ति मिली थी और फिर तो पूरे अमेरिका के प्रवास में खूब चेरियां खायी गयी। वो जुलाई और अगस्त का महिना था जब चेरी अपने जाने के दिन गिन रही होती हैं लेकिन इस बार मैं अमेरिका जब आयी हूं तब चेरियों के आगमन का सर्वत्र स्वागगत हो रहा है। मुझे मालूम पड़ा कि यहां चेरी-पीकिंग की व्य्वस्था रहती है। इसका प्रारम्भन बस इसी शनिवार को हुआ था। आप नहीं समझ पा रहे हैं ना कि मैं क्याी कहना चाह रही हूं। असल में यहां चेरियों के बड़े-बड़े खेत हैं और उन सभी खेतों पर जाकर आप पेट और मन भरकर चेरियां फोकट में खा सकते हैं। है ना भारतीयों के लिए मजेदार बात। बस खेत पर जाइए और जी भरकर चेरियां खाइए। साथ में लानी हो तो स्व यं ही तोडि़यें और खरीदकर ले आइए। तो हम भी सोमवार को जा पहुंचे ऐसे ही एक खेत में, जहां ढेर सारी चेरियां थी, खूब छक कर खायी गयी और साथ में लायी भी गयी। कई खेतों में चेरियों के अलावा आड़ू, आलूबुखारा आदि भी थे। हम सबने इतनी चेरियां खायी कि लग रहा है अब पूरे सीजन मन नहीं करेगा।

अमेरिका आने के बाद यह मेरी पहली पोस्टन है, मजेदार और लाजवाब चेरियों से ही शुरू करती हूं अपनी बात। जिस खेत में हम गए थे वहां चेरियों के अलावा आडू, आलूबुखारा आदि भी थे, लेकिन हम शायद देरी से पहुं चे थे इसलिए वहां कच्चे ही शेष बचे थे। खेतों में एशियन्सर की भरमार थी, जिधर भी सर घुमाओ या तो भारतीय थे या फिर चाइनीज। लग रहा था कि फोकट की चीज हमें ही ज्या दा रास आती है। अमेरिकन्सज का नजरिया भी ज्याजदा कुछ समझ नहीं आया, शायद मजदूरी महंगी है इसकारण ही सब के लिए खोल रखे हैं खेत। नहीं तो अपने खेत को ऐसे सार्वजनिक कैसे कोई करेगा। चेरी का पेड़ सात-आठ फीट का होता है, आप आसानी से चेरियां तोड़ सकते हैं। लेकिन यदि आपको पेड़ के उपरी हिस्सेख की चेरियां तोड़नी हैं तब आपके लिए सीडि़यों की व्यतवस्था भी है। केलिफोर्निया के बे-एरिया में खेतों की भरमार हैं। इतने बड़े-बड़े खेत हैं कि गंगानगर या पंजाब की याद आ जाती है। सड़क किनारे ही खेत हैं, सारे ही फलों के पेड़ एकदम कतारबद्ध, एक इंच भी ना इधर ना उधर। अभी चेरी पीकिंग का समय है इसलिए कुछ लोग फलों को बेचते हुए दिख जाएंगे नहीं तो खेतों में कोई मनुष्यक दिखायी नहीं देता। मुझे याद आ रहा है भारत, वहां आप किसी के खेत में घुस जाइए, पहले तो लगेगा कि यहां कोई नहीं है लेकिन जैसे ही आपका हाथ आम तोड़ने को बढ़ता है फटाक देने से कोई व्य क्ति आ धमकता है। लेकिन यहां ऐसे नहीं है। हमने तो जी भरकर चेरियां खायी हैं और आपके लिए बस फोटो ही लगा पा रहे हैं।

27 comments:

मीनाक्षी said...

हम चित्र देख कर ही तृप्ति पाने की कोशिश कर रहे हैं...

shikha varshney said...

खाइए खाइए खूब चेरी खाइए हाँ स्ट्रोबेरी भी खाइयेगा क्रीम डाल कर ..यमी ..........:)

Udan Tashtari said...

हमारे घर के चेरी के पेड़ बस पकने की कागार पर ही हैं. यहाँ चले आईये..एक बार फ्री पीकिंग के लिए :)


अच्छा लगा देखकर. खाईये खूब!!

दीपक 'मशाल' said...

लेकिन जब तक कोई चौकीदार या बाग़ का माली डंडा ले के ना दौड़ाये तब तक क्या आम, अमरुद या बेर में मिठास आती है क्या?? खैर ये तो चेरी हैं.. हमें क्या.. :)
आप वापस कब आ रही हैं.. मैं मार्गदर्शन के लिए तरस रहा हूँ.. वर्ना यू.एस. का नं. ही दे दीजियेगा

Kavita Vachaknavee said...

जर्मनी में स्ट्राबरी के खेतों में भी ऐसा ही होता है। हम लोग सपरिवार जाकर खेत में ही पिकनिक करते और दिन भर स्ट्राबरीज़ खाते। लौटते समय एक बाल्टी भर के खरीद लाते जिनसे आगामी कई दिन तक स्ट्राबरीक्रीम बनाई जाती और स्ट्राबरी का मुरब्बा-सा बना कर रखा जाता।
किन्तु उस ज़माने में ऐसा कभी नहीं था कि केवल एशियन्ज़ जाते हों। अधिकतर जर्मन परिवार ही होते थे। वैसे तब जर्मनी(जब वह पश्चिमी जर्मनी हुआ करता था) में भारतीय थे भी गिने चुने।

आप तो बस आनन्द लीजिए और बच्चों के लिए मुरब्बे बनाइये।

वैसे अभी हमने यहाँ घर में मार्च में चेरी के दो नए पेड़ लगाए हैं। यहाँ लन्दन में चेरी के पेड़ हर तरफ़ खुले में सरकार ने भी लगा रखे हैं। खुले पेड़ों को तो कोई छूता भी नहीं, वर्जित है ना यहाँ सार्वजनिक या किसी अन्य की हरियाली को छूना/तोड़ना / पिकिंग ....
:)

स्वप्न मञ्जूषा said...

bahut badhiya...
accha laga padhna..ham to bhool hi jaate hain ki is par bhi post likh sakte the...
ha ha ha ha ...
bahut accha laga ...chale aaiye..hamare yahan bhi...
:)

आचार्य उदय said...

आईये जाने .... प्रतिभाएं ही ईश्वर हैं !

आचार्य जी

Sadhana Vaid said...

बहुत खूब ! आपका संस्मरण बहुत रोचक लगा ! अगले सप्ताह मैं भी सनोज़े (अमेरिका) आ रही हूँ ! इस पिकनिक का लुत्फ़ एक बार उठाना तो मैं भी अवश्य चाहूँगी ! वैसे अमेरिकन्स बड़े दिल वाले होते हैं इसीलिये फलों के बगीचे लगा कर आम जनता के लिए सार्वजनिक कर देते हैं ! दिलचस्प पोस्ट के लिए आभार !

अजित गुप्ता का कोना said...

साधनाजी, मैं भी अभी सेनोजे में ही हूं। आने पर मिलते हैं।

Manish said...

चेरियाँ क्या होती हैं? मैं यही नहीं जानता..... खाये कैसे होंगे ?? :( :( :( ... लेकिन तस्वीर देख कर मुंह में पानी आ गया..... आप भेज दें तो हम खा लें..... या फिर निमंत्रित कीजिये... शायद आ जाएँ....जम कर खाने के लिए खाली पेट लेकर....... :)

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

बस हम तो अभी फ़ोटुओं में ही देख रहे हैं चेरी।
अपने यहां तो चेरी नहीं बेरों की ही लगती है ढेरी।

राम्र राम

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

बहुत बढ़िया, इस यात्रा का आप पूरा लुफ्त उठाये यही शुभकामनाये है हमारी ! वैसे आपने भी लेख के आखिरी में अपने देश की तुलना कर ही डाली , :)खैर !

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बढ़िया है जी....पूरा आनंद उठाइए अपने अमरीका प्रवास का....हम तो आपके लगाये फोटो से ही आनन्द उठा रहे हैं....

Sadhana Vaid said...

अरे वाह ! यह तो दोनों हाथों में लड्डू जैसी बात चरितार्थ हो रही है ! आप भी वहीं हैं तब तो क्या बात है ! आप अपना फोन न. दीजियेगा मैं वहाँ पहुँच कर आपसे अवश्य संपर्क करूँगी ! आपसे भेट करके मुझे भी हार्दिक प्रसन्नता होगी ! मैं आपको अपने बेटे का फोन न. और पता बता दूँगी जिससे हम लोग मिलने का कार्यक्रम सुनिश्चित कर सकें ! आपको बहुत बहुत धन्यवाद !

Ra said...

आपने तो चुपके से खा ली ,,,,,,,,,,,, और हमें केवल फोटो से खुश कर दिया ! गलत बात :) :) :)

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

बहोत बढ़िया चित्रमय पोस्ट पढ़कर आनंद आया ...सानोज़े शहर पर भी अवश्य लिखिएगा
स -- स्नेह
- लावण्या

अन्तर सोहिल said...

कुछ दिन पहले एक बाग से सडक पर लटक रही टहनी के आम की केरी को तोडने की सोच ही रहा था, तभी बाग के अन्दर से बन्दूक की आवाज सुनाई दी। तुरन्त इरादे बदल गये।

प्रणाम

कडुवासच said...

...मीठी पोस्ट !!!

डॉ टी एस दराल said...

समीर लाल जी के पड़ोस में भी चेरी का खेत है । लेकिन हम तो जा ही नहीं पाए ।
वैसे यह अच्छा है कि कौन तोड़े , देदो इंडियंस को ,मुफ्त में सफाई हो जाएगी ।

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

गर कहीं हिन्दुस्तान में ऎसा होने लगे तो मुश्किल से चार दिनो में ही बेचारे किसान का दिवाला निकल जाए :-)

Urmi said...

बहुत बढ़िया लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है! शानदार और मीठी पोस्ट! चेरी देखकर तो मुँह में पानी आ गया!

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

ममा ...चेरी देख कर मुँह में पानी आ गया.... यहाँ तो चने के बराबर चेरी मिलतीं हैं.... वो भी माल्स में.... १०० ग्राम के पैकेट में.... १०० रुपये में....

वाणी गीत said...

चेरी ना सही ...आम अमरुद और लीची ही सही ..
हम फोटो देखकर ही संतुष्ट हो लिए ...
रोचक ...!!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आप बहुत ही भाग्यशाली हैं!
हम तो नैनीताल में इनका स्वाद ले चुके हैं!
दस रुपये का दोना,
दोने में नीचे कागज और ऊपर 6-7 चेरी!

S.M.Masoom said...

आपका अंदाज़ की ललचाने वाला है.

अनूप शुक्ल said...

अच्छा लगा यह पोस्ट पढ़कर!

majoseph@ gmail.com said...

आपका लेख पडने के बाद मैने अपने छोटे से बगीचा मे एक चेरी का पौधा लगाया है देखे यह यहां के वातावारण में फलता फूलता है। अगर फल लगे तो आप जरूर आइये:::