Tuesday, December 17, 2013

आ गया है नया ठेकेदार - अपने-अपने काम करालो

लोकतंत्र के चुनावी दंगल का एक चरण पूरा हुआ। राजस्‍थान में ठेका बदल गया और नया ठेकेदार आ गया। अब पाँच साल सारे ही काम नए ठेकेदार की मंशा से होंगे और पुराना ठेकेदार आराम करेगा। चाहे तो बीच-बीच में शोर-शराबा कर सकता है कि नया ठेकेदार काम सही नहीं कर रहा है। जैसे ही नया ठेकेदार आता है लोग फूल और फूलमालाएं लेकर दौड़ पड़ते हैं, चारों तरफ यह दौड़ दिखायी पड़ती है।
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Saturday, November 30, 2013

सम्‍मान – प्रेम को नष्‍ट और द्वेष को आकृष्‍ट करता है

इन दिनों अन्‍य शहरों में आवागमन बना रहा, इसकारण दिमाग के विचारों का आवागमन बाधित हो गया। नए-पुराने लोगों से मिलना और उनकी समस्‍याएं, उनकी खुशियों के बीच आपके चिंतन की खिड़की दिमाग बन्‍द कर देता है। जब बादल विचरण करते हैं तब वे सूरज के प्रकाश को भी छिपा लेते हैं, ऐसा ही हाल हमारे विचरण का भी होता है कि दिमाग रोशनी नहीं दे पाता। लेकिन अनुभव ढेर सारे दे देता है यह विचरण।
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Sunday, November 17, 2013

चुनाव का दंगल लेकर आए हैं - बने रहिए हमारे साथ

चुनाव का दंगल लेकर आए हैं - बने रहिए हमारे साथ

चुनावी दंगल चल रहे हैं, सारे ही पहलवान ताल ठोककर मैदान में हैं। मीडिया बारी बारी से सभी को उकसाने का श्रम कर रहा है। जैसे ही कोई पहलवान कमजोर पड़ता है, मीडिया उसके पक्ष में खड़ी हो जाती है, और वह फूल कर कुप्‍पा हो जाता है। मीडिया के स्‍वर तेज होते जाते हैं - भाई साहब आइए देखिए, ऐसा अद्भुत नजारा आपने पहले नहीं देखा होगा, बहिनजी आप भी आइए, रसोई में क्‍या रखा है? हम आपको यहाँ सारी ही चटपटी खबरे दिखाएंगे। डोडियाखेड़ा को पीपली लाइव बनाने वाली मीडिया का ध्‍यान अब सोने की खुदाई से हट गया है। अब वह महात्‍माओं के चक्‍कर में नहीं फंसेगी। बस उसके पास एक ही महात्‍मा की खबर है, उसके सारे ही खानदान को लपेट लिया है। रिपोर्टरों से कह दिया गया है कि सावधान! कोई खबर नहीं छूटनी चाहिए। अभी बाजार गर्म है, इसलिए रिपोर्टरों की भर्ती तेजी से की जा रही है, युद्धस्‍तर पर कार्य चल रहा है। इसलिए सभी की छुट्टियां भी रद्द कर दी गयी हैं। पैनल डिस्‍कशन में भी नए-नए चेहरे दिखाई पड़ने लगे हैं। सभी को टीवी पर आने का अवसर मिलने लगा है, शायद यही लोकतंत्र की जीत है। लेकिन कुछ जमे हुए विवेचनकारी है, उनके बिना चैनलों का विरेचन पूरा नहीं होता। वे आपको हर मर्ज की दवा देते दिखाई देंगे। पहलवानों के बीच दंगल तो गाँव-गाँव और शहर-शहर में हो रहा है लेकिन टीवी पर भी मेंडे लड़ाने का खेल बदस्‍तूर जारी है। राजनैतिक दलों के शागिर्दों को टीवी पर जगह दी जाती है, सारे ही दल उपस्थित रहते हैं। टीवी एंकर के हाथ में चाबुक रहता है, वह घड़ी-घड़ी चाबुक फटकारता है और एक मेंडे को लाल कपड़ा दिखाकर दूसरे मेंड़े से भिड़ जाने को उकसाता है। दोनों जब लहुलुहान हो जाते हैं तब मदारीनुमा एंकर तीसरे मेंडे को मैदान में उतारता है। एंकर का ध्‍यान इस बात की ओर बराबर रहता है कि कोई भी मेंडा जीतने ना पाए, जैसे ही एक मेंडा अपने दावपेच लगाकर सींग को मारने की तैयारी करता है, मदारी झट से चाबुक फटकार देता है और फिर लाल कपड़ा दिखा देता है। अन्‍त तक सारे मेंडे फुफकारते ही रहते हैं लेकिन कोई किसी को पस्‍त नहीं कर पाता, क्‍योंकि एंकरनुमा मदारी उसे ऐसा करने नहीं देता।
ये ही मदारी कुश्‍ती का लाइव प्रसारण भी करते हैं, उसमें भी यही प्रक्रिया जारी रहती है। किसी भी पहलवान को ना जीतने दो और ना हारने दो। वे कहते हैं कि भला हम कौन है दूध का दूध और पानी का पानी करने वाले? जनता न्‍याय करेगी, वह देखे और चुनाव करे। हमने भ्रम की स्थिति बना दी है, अच्‍छे को बुंरा और बुरे को अच्‍छा बता दिया है, अर्थात सारे ही पहलवान एक से गुणवाले हैं यह हमने सिद्ध कर दिया है। बस अब तो जनता को इस कोहरे में से असली पहलवान को छांटना है। पहलवान को भी समझ आ गया है कि इस एंकर ने मुझे कोहरे में छिपाकर संदेह का लाभ दे दिया है। अब वह भुजाओं में तैल लगाकर जनता के बीच उतरता है, किसी को भुजा दिखाता है, किसी के आगे हाथ जोड़ लेता है और किसी को चुपके से बख्‍शीश दे देता है। जनता भी खुश है कि आज तो आया ऊँट पहाड़ के नीचे। बस वह एक दिन के पहाड़ के नीचे आने से ही खुश हो जाती है। साड़ी, कम्‍बल, दारू आदि बख्‍शीश पाकर और भी धन्‍य हो जाती है और पहलवान को चुन लेती है। लेकिन मदारी यहां भी अपनी नाक घुसेड़ देता है, वह सूंघता हुआ आ ही जाता है कि किसको कितनी बख्‍शीश मिली? मदारी डमरू बजाने लगता है कि साबजान, कद्रदान, देखिए फलां पहलवान बख्‍शीश से खेल को प्रभावित कर रहा है। वह जब तक डमरू बजाता है जब तक की महाबख्‍शीश उसे नहीं मिल जाती।
हम जैसे आम दर्शक सारा दिन रिमोट के सेल खतम करते रहते हैं, बार-बार बकरी के कान मरोड़ने जैसा ही काम करते हैं, लेकिन बकरी को दूध आधा छंटाक ही देना है, चाहे आप कितना ही कान मरोड़ लो। एकबार कान मरोड़ा, तो हैवीवेट पहलवान का दंगल दिखाया गया, दूसरी बार कान मरोड़ा तो मिडिलवेट पहलवान का दंगल था। दंगल नहीं था तो मेंडे लड़ाए जा रहे थे। बस टीवी पर चारो तरफ दंगल ही दंगल था। एकाध जगह हैवीवेट पहलवान का जीरोवेट पहलवान से दंगल भी चल रहा था, मजेदार बात यह थी कि यहां पर ही सबसे ज्‍यादा दर्शक जमे हुए थे। बयानबाज भी यही अपनी राय ज्‍यादा से ज्‍यादा रख रहे थे। छोटा पहलवान बाहे चढ़ाकर आता और बड़े पहलवान के पैरों को जकड़ लेता, बड़ा पहलवान पैरों को जोर से झटकता और छोटा चारों खाने चित्त। छोटे के शागिर्द लपकते और उसे चारों तरफ से घेर लेते। ग्‍लूकोज वगैरह पिलाया जाता, फिर नए दांवपेच सिखाए जाते और फिर उतार देते मैदान पर।

तो भाइयों और बहनों, कुश्‍ती का मौसम है, सर्दी भी गुलाबी सी रंगत लिए आपके समक्ष दस्‍तक दे रही है। मूंगफली की फसल खूब हुई है, अपनी जेब में भरिए और दंगलों का मजा लीजिए। चना-जोर-गरम के दिन गए, क्‍योंकि उसमें प्‍याज-टमाटर पड़ता है तो उसे भूल जाइए। वैसे भी यह गर्मी में अच्‍छा लगता है बस अब तो मूंगफली खाइए और दंगल देखिए। टीवी ने आपके लिए एक नहीं बीसियों न्‍यूज चैनल खोल दिए हैं, आपके सीरियल कम पड़ सकते हैं लेकिन न्‍यूज चैनल आपको कभी निराश नहीं करेंगे। बस लगे रहिए, कुछ दिन और। अभी जोन  लेवल का दंगल है कुछ दिन बाद राष्‍ट्रीय स्‍तर का दंगल लेकर आएंगे तब त्तक आप कहीं मत जाइए, बने रहिए हमारे साथ। 

Friday, November 15, 2013

चुनाव का दंगल लेकर आए हैं - बने रहिए हमारे साथ

चुनावी दंगल चल रहे हैं, सारे ही पहलवान ताल ठोककर मैदान में हैं। मीडिया बारी बारी से सभी को उकसाने का श्रम कर रहा है। जैसे ही कोई पहलवान कमजोर पड़ता है, मीडिया उसके पक्ष में खड़ी हो जाती है, और वह फूल कर कुप्‍पा हो जाता है। मीडिया के स्‍वर तेज होते जाते हैं - भाई साहब आइए देखिए, ऐसा अद्भुत नजारा आपने पहले नहीं देखा होगा, बहिनजी आप भी आइए, रसोई में क्‍या रखा है? 
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Friday, November 8, 2013

हम और आप सभी किसी न किसी क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं

हमारे यहाँ तो अध्‍यात्‍म का मूल ही है कि स्‍वयं को खोजो। और यह स्‍वयं की खोज बचपन से ही प्रारम्‍भ हो जानी चाहिए। जब हम अपनी योग्‍यताओं को खोज लेते हैं तब अपने लिए सफलता का मार्ग भी तलाश लेते हैं। पोस्‍ट को पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें -
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Thursday, October 31, 2013

कहां गयी वो गरमा-गरम बहसें?

कहां गयी वो गरमा-गरम बहसें?
कभी नारीवाद के नाम पर, कभी राष्‍ट्रवाद के नाम पर, कभी सत्ता की नजदीकियों के कारण, कभी अन्‍ना हजारे और रामदेव आन्‍दोलन के कारण ऐसे ही न जाने कितनी बहसें हम ब्‍लाग पर करते आए थे। लेकिन आज सभी खामोश हैं। क्‍या बहस चुक गयी या फिर उसे निरर्थक मान लिया गया?

Wednesday, October 23, 2013

पृथकता और सत्ता की चाहत

प्रत्‍येक व्‍यक्ति पृथक होकर स्‍वतंत्र होना चाहता है क्‍यों? शायद वह स्‍वयं की सत्ता चाहता है। किसी का प्रतिबंध नहीं, किसी का अनुशासन नहीं, किसी की दखलंदाजी नहीं, बस स्‍वयं की सत्ता। देश से लेकर समाज और समाज से लेकर परिवारों में स्‍वतंत्रता और सत्ता की चाहत दिखायी देती है।
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Thursday, October 17, 2013

आपके जीवन में मैं हूँ

आपके जीवन में मैं हूँ
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Tuesday, September 17, 2013

Tuesday, September 10, 2013

कुछ गर्द उड़ी कुछ सीलन थी

 जिन अध्‍यायों को मन बिसरा बैठा था, वे एक-एक कर निकल आए। कहीं गर्द थी और कही सीलन थी। कहीं प्रकाश था तो कहीं उल्‍लास भी था। लेकिन अब रेत हाथ से फिसलने लगी है, संचय का अर्थ दिखायी नहीं देता।
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Friday, September 6, 2013

छोटे कस्‍बे का बड़ा संघर्ष - श्रीमती संतोष अरोड़ा

छोटे कस्‍बे का बड़ा संघर्ष - श्रीमती संतोष अरोड़ा
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Wednesday, August 28, 2013

बिना अभिव्‍यक्ति, व्‍यक्ति बौना

 मन मन की संतुष्टि के लिए अभिव्‍यक्ति आवश्‍यक है। समाज में सौहार्द के लिए मन की संतुष्टि आवश्‍यक है। अभी भी देर नहीं हुई है, बस टटोलिए अपने मन को और उसे अभिव्‍यक्‍त करने के अवसर तलाशिए। अभिव्‍यक्ति में ही परम शान्ति है।http://sahityakar.com/wordpress/%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%BE-%E0%A4%85%E0%A4%AD%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%AF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF-%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%AF%E0%A4%95%E0%A5%8D/

Wednesday, August 7, 2013

मृत्‍यु का सैलाब और अपनों के हाथ में तराजू

भाई नहीं रहा ! यह सूचना है या फिर काल जलधि की हलचल। मन के अनन्‍त में एक लहर सी उठती है, एक शून्‍य बन जाता है। मन का एक कोना टूटकर बिखर जाता है। मन हाहाकार कर उठता है। टूटे हुए कोने को जोड़ने में लग जाता है मन। अपने सगे सम्‍बन्धियों की बाहों में लिपटकर बह जाना चाहता है पीड़ा का सैलाब और भर लेना चाहता है कुछ बूंद प्रेम-रस की।
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Wednesday, July 31, 2013

कलाकार और सम्‍मान

यदि आज ये कलाकार नहीं होते तो हमारा जीवन कैसा होता? हम प्रकृति के समक्ष खड़े होते, निहत्‍थे बनकर। लेकिन मनुष्‍य ने प्रकृति को संवार दिया, उसे सुसंस्‍कारित कर दिया। आज सृष्टि का जो स्‍वरूप हमें दिखायी देता है, वह स्‍वरूप इन कलाकरों के कारण ही है। इनके लिए जितने भी शब्‍द लिखे जाएं, वे कम हैं। 

Friday, July 26, 2013

Monday, July 8, 2013

थाईलैण्‍ड से कम्‍बोडिया की ओर

पटाया में हमें एक स्‍थान और दिखाया गया और वह था - ज्‍वेल्‍स फेक्‍ट्ररी। किस प्रकार से हीरे जवाहरात धरती से निकलते हैं, फिल्‍म शो के माध्‍यम से दिखाया गया और फिर कीमती जवाहरात से लदी पड़ी फेक्‍ट्री को दिखाया गया। हीरे-जवाहरात से इतनी सुन्‍दर कलाकृतियां बना रखी थी और उनका मूल्‍य लाखों में था। फोटो खींचने की सख्‍त मनाही थी। किसी को भी यदि वहाँ खरीददारी करनी हो तो जेब भारी-भरकम होनी चाहिए। सभी प्रकार के पत्‍थर वहाँ मौजूद थे। हीरा, पन्‍ना, माणक, वैदूर्य और न जाने क्‍या क्‍या। फटी आँखों से देखने के अलावा हमारे पास और कोई विकल्‍प नहीं था। एक और स्‍थान था पटाया-पार्क, जहाँ जंपिंग टॉवर था। समयाभाव के कारण वहाँ भी टॉवर के ऊपर हम नहीं जा पाए, बस नीचे से ही देखते रहे। बहुत विशाल और ऊँचाई पर स्थित था टॉवर। वहीं नीचे घूमते रहे और एक पेड़ पर नजर ठहर गयी। पेड़ फलों से लदा था लेकिन हमारे लिए अन्‍जान था। बाद में गाइड ने बताया कि यह सारा फ्रूट है।

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Wednesday, July 3, 2013

कम्‍बोडिया हिन्‍दी सम्‍मेलन - खट्टे-मीठे अनुभव

हिन्‍दी सम्‍मेलन के संयोजक का फेसबुक पर निमंत्रण मिला। कहीं बाहर जाने का मन हो रहा था और यदि पर्यटन के साथ साहित्‍य का साथ हो जाए तो ऐसा लगता है जैसे सोने पर सुहागा। क्‍योंकि कुछ लोगों के मनोरंजन का अर्थ होता है नाचना, गाना और खाना। लेकिन हम लोगों के मनोरंजन का अर्थ होता है बौद्धिक चर्चा। जब तक मानसिक खुराक नहीं मिले लगता है कुछ नहीं मिला। फिर जानना था आज के थाईलैण्‍ड को जो कल तक भारत का श्‍याम देश था और जानना था कम्‍बोडिया को जो कल तक भारत का कम्‍बौज देश था।
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Sunday, June 9, 2013

मेवाड़ की पहाड़ियों का सौंदर्य - जिसे लील लेगा प्रसादी का औदार्य

जिन लोगों ने भी मेवाड़ के वनांचल देखें हैं, वे इनकी खूबसूरती के कायल हुए बिना नहीं रह सकते। उदयपुर के आसपास पहाड़ी क्षेत्र है और यहाँ आज भी घने जंगल हैं। पहाड़ों के बीच बल खाती नदियां जगह-जगह देखने को मिल जाती हैं। कहीं तालाब हैं तो कहीं बांध बनाकर पानी को शहरों के लिए उपलब्‍ध कराया जाता है।
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Wednesday, June 5, 2013

परखनली को तोड़ती पीढ़ी

"ये जवानी है दीवानी"। बहुत दिनों बाद किसी थियेटर में देखी गयी यह फिल्‍म। फिल्‍म का नायक - रणवीर कपूर, खुले आकाश में उड़ना चाहता है, सारी दुनिया घूमना चाहता है। किसी बंधन को स्‍वीकारने की मानसिकता नहीं है।
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Thursday, May 30, 2013

Old Age Home - वृद्धाश्रम


अभी कुछ दिन पूर्व अग्रवाल समाज के एक कार्यक्रम में नीमच जाने का अवसर मिला। युवाओं की स्‍वयंसेवी संस्था ने सुविधा युक्‍त वृद्धाश्रम का निर्माण कराया था। मुझे कार्यक्रम के साथ उस वृद्धाश्रम का अवलोकन भी कराया गया था। शहर से दूर, बहुत ही सुन्‍दर स्‍थान पर 20-22 बुजुर्गों के रहने के लिए स्‍थान बनाया गया था। पृथक कक्ष, डोरमेट्री, भोजनशाला आदि की समुचित व्‍यवस्‍था थी। पोस्‍ट को पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें - http://sahityakar.com/wordpress/old-age-home-%E0%A4%B5%E0%A5%83%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE/

Saturday, May 18, 2013

आखिर माँ लौट आयी

सूरज ढल चुका था, सारे ही पक्षी अपने बसेरों में आ चुके थे। बोगेनवेलिया से चीं-ची की आवाजें तेज होने लगी, मुझे लगा कि माँ लौट आयी है। सारा दिन बच्‍चे अकेले रहे थे। ना दाना और ना पानी। अपनी सुरक्षा भी बोगेनवेलिया के पत्तों के बीच छिपकर की थी। आज सुबह ही मेरे बगीचे में दो गौरैया के बच्‍चे अपनी माँ के साथ आए थे।
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Wednesday, May 15, 2013

नानी का घर या सैर-सपाटा

हम सभी के बचपन की यादों में नानी का घर है। जैसे ही गर्मियों की शुरुआत हुई, स्‍कूल-कॉलेज बन्‍द हुए और चल पड़े नानी के घर। एक महिना या दो महिना, बस सारी ही नानियों के घर आबाद रहते थे। मामा के बच्‍चे, मौसी के बच्‍चे सभी मिलकर एक-दो महिना जो धूमधड़ाका करते थे वह यादें किसी के भी जेहन से जाती नहीं। भरी गर्मी में ना पंखे थे और ना ही कूलर, एसी क्‍या होता है तब तक नाम भी नहीं पैदा हुआ था।
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Saturday, April 27, 2013

लेखन और पठन का अपना ही मिजाज होता है

लेखन का भी जैसे एक मिजाज होता है वैसे ही पढ़ने का भी अपना ही मिजाज होता है। हमारी सुबह तय करती है कि आज क्‍या लिखा जाएगा या क्‍या हमारा मन पढ़ने को करेगा। इंटरनेट खोलने पर अनेक लेख, कविता, कहानी आदि हमारे सामने आकर बिखर जाते हैं लेकिन हमारा मन बस कभी कहीं पर अटकता है तो कभी कहीं पर।
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Saturday, April 20, 2013

समाज भेड़िये पैदा कर रहा है और समाज के ठेकेदार जनता से सुरक्षा-कर वसूल रहे हैं

एक घना और फलदार वृक्ष था, उसमें सैंकड़ों पक्षी अपना बसेरा बनाए हुए थे। उसमें इतने फल लगते थे कि उन सभी पक्षियों का पेट भर जाता था। पास में ही एक नदी बहती थी, वृक्ष की जड़े उसी नदी से पानी लेती थी और पेड़ को हरा-भरा रखती थी। नदी जिस शहर से होकर गुजरती थी, वहाँ एक रसायन उत्‍पाद करने वाला कारखाना था। उस कारखाने का रसायन युक्‍त पानी उसी नदी में आकर मिलता था। शहर की अन्‍य सारी गन्‍दगी भी उसी नदी में समाती थी। पेड़ उसी नदी का पानी लेने को मजबूर था।
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Saturday, April 13, 2013

मधुमक्‍खी शहद बनाती हैं और मनुष्‍य जहर बनाता है

प्रकृति अपने यौवन पर है, बगीचों में जहाँ तक नजर जाती है, फूल ही फूल दिखायी देते हैं। भारतीय त्‍योहार प्रकृति पर आधारित हैं इसी कारण यह मौसम त्‍योहारों का भी रहता है। अभी होली गयी, फिर नया साल आ गया और अब गणगौर। त्‍योहारों के कारण परिवारों में प्रेम भी फल-फूल रहा है। और जब मन में केवल प्रेम ही हो, सब कुछ सकारात्‍मक हो तब लिखने की बेचैनी मन में नहीं होती है। 
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Sunday, March 31, 2013

अब तो भईया बूढ़े हो गए, रंग नहीं बस गुलाल ही मल दो

होली आकर चले गयी। इसबार हम दुनिया जहान से दूर लेकिन अपनों के बीच चले गए। ना फेसबुक और ना ही ब्‍लाग। वापस आकर देखा तो पोस्‍टों का मेला लगा है, सभी अपने तरीके से होली मना रहे हैं। इस होली पर हमने काफी पहले ही कार्यक्रम बना लिया था कि अपनी बहन के साथ या यू कहूं कि जीजाजी के साथ होली मनाएंगे लेकिन ऐन वक्‍त पर जीजाजी तो धोखा दे गए और वे अमेरिका उड़ गए। पोस्‍ट पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें - http://sahityakar.com/wordpress/%E0%A4%85%E0%A4%AC-%E0%A4%A4%E0%A5%8B-%E0%A4%AD%E0%A4%88%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%AC%E0%A5%82%E0%A4%A2%E0%A4%BC%E0%A5%87-%E0%A4%B9%E0%A5%8B-%E0%A4%97%E0%A4%8F-%E0%A4%B1%E0%A4%82%E0%A4%97-%E0%A4%A8/ 

Saturday, March 23, 2013

शोक संदेश का वाचन- कितना सार्थक और कितना निरर्थक

प्रत्‍येक शहर का अपना दस्‍तूर होता है, त्‍योहार से लेकर मृत्‍यु तक में ऊसका अपना रंग भरा होता है। सभी शहरों के अपने कर्मकाण्‍ड हैं। मृत्‍यु एक ऐसा पक्ष है जिसमें व्‍यक्ति की संवेदनाएं जुड़ी रहती हैं इसलिए इस समय होने वाले कर्मकाण्‍डों पर अक्‍सर कोई टीका-टिप्‍पणी नहीं करता है। भारत इतना विशाल देश हैं, यहाँ परम्‍पराएं और कर्मकाण्‍ड शायद हर पाँच कोस पर ही बदल जाते हैं वहाँ किसी एक परम्‍परा की बात करना बेमानी सा ही हो जाता है।
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Tuesday, March 12, 2013

डॉक्‍टर ने कहा - आप चुप रहिए, बस मुझे सुनिए

दुर्भाग्‍य से आपको किसी डॉक्‍टर के पास जाना पड़ जाए, तो आपकी हालत तीन दिन पुराने खिले फूल सी हो जाती है। दिल की धड़कन, भैंस के गले में बंधी घण्‍टी की तरह हो जाती है, जो अपने आप बजती ही रहती है। इस पर डॉक्‍टर आपकी बात सुनने के स्‍थान पर आप से कहे कि "आप चुप रहिए, बस मुझे सुनिए" तो आपको कैसा लगेगा?
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Friday, March 1, 2013

हम चिड़ियाघर की तरह अपने-अपने कक्ष में बैठे हैं



मन कभी-कभी विद्रोह सा कर देता है, वह नकार देता है आपके सारे ही मार्ग। आप जिन मार्गों पर प्रतिदिन चल रहे हैं, जिनके बिना जीवन अधूरा सा दिखायी देता है, उनको कभी मन नकार देता है। कहता है कि बस हो गया, अब और नहीं जाना इस मार्ग पर। एक आम बुद्धिजीवी की जिन्‍दगी क्‍या है? इस पोस्‍ट को पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें - http://sahityakar.com/wordpress/%E0%A4%B9%E0%A4%AE-%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%98%E0%A4%B0-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%B9-%E0%A4%85%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%85/

Monday, February 25, 2013

शरीर की आवश्‍यकताएं और उनका आधुनिक प्रबंधन



घटना कुछ माह पुरानी है। मैं रेलमार्ग से उदयपुर से दिल्‍ली जा रही थी। अभी गाडी चलने में पर्याप्‍त समय था और मैं अपनी बर्थ पर आसन जमा चुकी थी। डिब्‍बे में बड़ी चहल-पहल थी, एक दल उदयपुर घूमने आया था और वे अपनी शय्‍याओं का प्रबंध कर रहा था। कुछ उनके पास थी और कुछ को वे प्राप्‍त करने की जुगाड़ में थे। पोस्‍ट को पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें - http://sahityakar.com/wordpress/%E0%A4%B6%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%B0-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%86%E0%A4%B5%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%AF%E0%A4%95%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%8F%E0%A4%82-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%89%E0%A4%A8/

Sunday, February 17, 2013

तीन पीढ़ी का बचपन : कौन सही कौन गलत?

कहते हैं बचपन की कसक जीवन भर सालती है। बचपन के अभाव जिन्‍दगी की दिशा तय करते हैं। कभी अभाव मिलते हैं और कभी अभावों का भ्रम बन जाता है। कभी प्रेम नहीं मिलता तो कभी प्रेम का अतिरेक प्रेम को विकृत कर देता है। हमारी पीढ़ी के समक्ष तीन पीढ़ियां हैं। 
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Saturday, February 9, 2013

पुत्र-वधु परिवार की कुलवधु या केवल पुत्र की पत्‍नी?

पुत्र के विवाह पर होने वाली उमंग से कौन वाकिफ नहीं होगा? घर में पुत्र-वधु के रूप में कुल-वधु के आने का प्रसंग परिवारों को रोमांचित करता रहा है। माता-पिता को अपनी वधु या बहु आने का रोमांच होता है, छोटे भाई-बहनों को अपनी भाभी का और पुत्र को अपनी पत्‍नी का।
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Saturday, February 2, 2013

Thursday, January 24, 2013

जीवन के दो मूल शब्‍द - अपमान और सम्‍मान (insult & respect)

मान शब्‍द मन के करीब लगता है, जो शब्‍द मन को क्षुद्र बनाएं वे अपमान लगते हैं और जो शब्‍द आपको समानता का अनुभव कराएं वे मन को अच्‍छे लगते हैं। दूसरों को छोटा सिद्ध करने के लिए हम दिनभर में न जाने कितने शब्‍दों का प्रयोग करते हैं। इसके विपरीत दूसरों को अपने समान मानते हुए उन्‍हें आदर सूचक शब्‍दों से पुकारते भी हैं। दुनिया में रोटी, कपड़ा और मकान के भी पूर्व कहीं इन दो शब्‍दों का जमावड़ा है। सम्‍पूर्ण पोस्‍ट पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें - http://sahityakar.com/wordpress/%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%A8-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%A6%E0%A5%8B-%E0%A4%AE%E0%A5%82%E0%A4%B2-%E0%A4%B6%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%A6-%E0%A4%85%E0%A4%AA%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8/

Saturday, January 19, 2013

बाकी है एक और बर्बरता के समाचार

अभी एक और ज्‍वलंत समस्‍या से हमें दो-हाथ होना है। अभी पुरुष बर्बरता के कारण महिलाएं संकट में पड़ी है, देश और दुनिया इनकी बर्बरता का हल ढूंढ रहे है। सारा ही देश आंदोलित है, लेकिन तर्क-वितर्क से समाधान नहीं समझ आ रहा। पुरुष की बर्बरता सभी ने स्‍वीकार की है लेकिन उसे अनुशासित करना होगा, उस पर नियन्‍त्रण रखना होगा, ऐसी आवाज कहीं से भी नहीं आ रही है। शेष पोस्‍ट को पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें - http://sahityakar.com/wordpress/%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%B9%E0%A5%88-%E0%A4%8F%E0%A4%95-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B8%E0%A4%AE/

Saturday, January 12, 2013

स्‍वामी विवेकानन्‍द के सांस्‍कृतिक नवजागरण में महिलाओं का योगदान


स्‍वामी विवेकानन्‍द की 150वीं जन्‍मशताब्‍दी वर्ष पर विशेष

स्‍वामी विवेकानन्‍द बाल्‍यकाल से ही सांस्‍कृतिक एवं आध्‍यात्मिक नवजागरण के प्रखर चिंतक रहे हैं। बाल्‍यकाल में राम-सीता के युगल रूप की आराधना करते हुए, भक्‍त प्रहलाद और नचिकेता सहित अनेक पौराणिक आदर्शों का नाट्य मंचन उनके प्रतिदिन के कार्यकलापों में निहित था।
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Sunday, January 6, 2013

आपको अभी तक याद है आपकी छत?

घर की छत, शाम होते ही पानी से सरोबार हो जाने वाली छत। सुबह के साथ ही गहमा-गहमी वाल छत। शाम होते ही पहले पानी से छिड़काव किया जाता, बड़े करीने और सलीके से उसे सुखाया जाता और फिर कितनी खुबसूरती के साथ बिस्‍तर लगाए जाते।
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Wednesday, January 2, 2013

निरर्थक सदवचनों से समाज का वीरत्‍व समाप्‍त हो गया है



कतिपय सदवाक्‍य, हमें अंधकार में धकेल रहे हैं
अभी एक सदवाक्‍य पढ़ा - don’t find fault, find a remedy.
चिकित्‍सकीय भाषा में एक बात कही जाती है - रोग का निदान हो जाए तो चिकित्‍सा हो जाती है।
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