Wednesday, August 31, 2016

प्रेम की सूई दिखायी देती नहीं

हर व्यक्ति के पास इतना ज्ञान आ गया है कि वह ज्ञान देने के लिये लोग ढूंढ रहा है, बस जैसे ही अपने लोग मिले कि ज्ञान की पोटली खुलने लगती है और बचपन मासूम सा बनकर कोने में जा खड़ा होता है।
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Wednesday, August 24, 2016

हम से अब पराया केक खाया नहीं जाएगा

अपने गाँव-देहात में कभी रसोइये के हाथ में 500 रूपये धरती तो कभी मेहतरानी के हाथ में पचास रूपये धर कर खुश हो लेती और दान के भाव को बनाकर अपने स्वाभिमान को सहेजकर रख लेती घर की दादी अब उलझन में झूलने लगी। क्या-क्या बिसरा दूँ?
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Tuesday, August 16, 2016

क्या सच में गाँव बदल रहे हैं?

इन लड़कियों की अल्हड़ता क्या ऐसी ही बनी रहेगी? इन लड़कों का नृत्य क्या ऐसे ही देश प्रेम को सार्थक करता रहेगा? क्या इन नन्हें बच्चों में से कोई गाँव की कमान सम्भाल लेगा? स्वतंत्रता दिवस की यह साफ-सफाई क्य़ा हमेशा ही गाँव को स्वच्छ बना देगी? क्या महिलायें पूरी शक्ति के साथ ऐसे ही घर-परिवार और देश के झण्डे को लहराती रहेंगी?
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Friday, August 5, 2016

उदयपुर का सौन्दर्य – उभयेश्वरजी के पर्वत

इस प्रकृति की अनुपम देन को जितना देखो उतना ही अपनी ओर आकर्षित करती है लेकिन दिन तेजी से ढल रहा था और अब जंगल कह रहे थे कि हमें एकांत चाहिये। किसी शहंशाह की तरह जंगल ने भी कहा एकान्त! और हम वापस चले आये, उस खूबसूरती को आँखों में संजोये, फिर आने की उम्मीद के साथ।