Wednesday, June 17, 2015

लोहे के पेड़ हरे होंगे, तू गीत प्रेम के गाता चल

मुझे लगता है जब आप एक स्‍थान पर हैं और वहाँ से आप अपने ध्‍येय की पूर्ति करने में सक्षम नहीं हो पाते तब उस स्‍थान को जितनी जल्‍दी हो छोड़ ही देना चाहिए। जिन्‍दगी ना मिलेगी दोबारा। पोस्‍ट को पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें - http://sahityakar.com/wordpress/%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A5%87-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%AA%E0%A5%87%E0%A5%9C-%E0%A4%B9%E0%A4%B0%E0%A5%87-%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%87-%E0%A4%A4%E0%A5%82-%E0%A4%97%E0%A5%80/

Monday, June 15, 2015

यह दो मिनट का लेखन और पठन धीमा जहर ही है

मुझे लग रहा है कि फेसबुक से दूर हो जाना चाहिए। या फिर उन लोगों से तो अवश्‍य ही दूरी बना लेनी चाहिए जो असभ्‍य और अमर्यादित भाषा का प्रयोग कर रहे हैं। ब्‍लाग लेखन में इतनी अमर्यादा नहीं है, यहाँ कुछ भाषा के प्रति सभ्‍यता शेष है। पोस्‍ट को पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें - http://sahityakar.com/wordpress/%E0%A4%AF%E0%A4%B9-%E0%A4%A6%E0%A5%8B-%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%9F-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%96%E0%A4%A8-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%AA%E0%A4%A0%E0%A4%A8-%E0%A4%A7%E0%A5%80/