Wednesday, August 28, 2013

बिना अभिव्‍यक्ति, व्‍यक्ति बौना

 मन मन की संतुष्टि के लिए अभिव्‍यक्ति आवश्‍यक है। समाज में सौहार्द के लिए मन की संतुष्टि आवश्‍यक है। अभी भी देर नहीं हुई है, बस टटोलिए अपने मन को और उसे अभिव्‍यक्‍त करने के अवसर तलाशिए। अभिव्‍यक्ति में ही परम शान्ति है।http://sahityakar.com/wordpress/%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%BE-%E0%A4%85%E0%A4%AD%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%AF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF-%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%AF%E0%A4%95%E0%A5%8D/

Wednesday, August 7, 2013

मृत्‍यु का सैलाब और अपनों के हाथ में तराजू

भाई नहीं रहा ! यह सूचना है या फिर काल जलधि की हलचल। मन के अनन्‍त में एक लहर सी उठती है, एक शून्‍य बन जाता है। मन का एक कोना टूटकर बिखर जाता है। मन हाहाकार कर उठता है। टूटे हुए कोने को जोड़ने में लग जाता है मन। अपने सगे सम्‍बन्धियों की बाहों में लिपटकर बह जाना चाहता है पीड़ा का सैलाब और भर लेना चाहता है कुछ बूंद प्रेम-रस की।
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