अपने गाँव-देहात में कभी रसोइये के हाथ में 500 रूपये धरती तो कभी मेहतरानी के
हाथ में पचास रूपये धर कर खुश हो लेती और दान के भाव को बनाकर अपने स्वाभिमान को
सहेजकर रख लेती घर की दादी अब उलझन में झूलने लगी। क्या-क्या बिसरा दूँ?
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