63 बार मैं कार्तिक/नवम्बर के मास से गुजर चुकी हूँ।
कितना कुछ बदल गया है, ना अब वह पथ है और ना ही वह पथिक है। जिन तंग गलियों में
पहली बार आँखें खोली, वे कब की बिसरा दी गयी। जिसे खुले मैदान में बचपन दौड़ा, अब
वह भी दूर हो चला है।http://sahityakar.com/wordpress/
श्रीमती अजित गुप्ता प्रकाशित पुस्तकें - शब्द जो मकरंद बने, सांझ की झंकार (कविता संग्रह), अहम् से वयम् तक (निबन्ध संग्रह) सैलाबी तटबन्ध (उपन्यास), अरण्य में सूरज (उपन्यास) हम गुलेलची (व्यंग्य संग्रह), बौर तो आए (निबन्ध संग्रह), सोने का पिंजर---अमेरिका और मैं (संस्मरणात्मक यात्रा वृतान्त), प्रेम का पाठ (लघु कथा संग्रह) आदि।
Sunday, November 9, 2014
Monday, November 3, 2014
अमेरिका को कैसे अपनाएं? भाग 2
अब आते हैं अपने दिन और रात पर। केलिफोर्निया के सेनोजे
शहर में सुबह जल्दी ही हो जाती थी। भारत में जून महिना भरपूर गर्मी भरा रहता है लेकिन
यहाँ मौसम बेहतर था। सुबह की भोर ठण्डक लिए होती थी तो जैसे-जैसे दिन चढ़ता था,
धूप में तेजी आती जाती थी। लेकिन रात होते ही गर्मी फिर से अपनी कोठरी में जा
दुबकती थी और ठण्डक अपने पैर पसारने लगती थी। सुबह छ: बजे से रात को नौ बजे तक
दिन बना रहता था। पोस्ट को सम्पूर्ण पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें - http://sahityakar.com/wordpress/wp-admin/post.php?post=498&action=edit&message=1
Tuesday, October 28, 2014
अमेरिका को कैसे अपनाएं?
आपने किसी से प्रेम किया था? या आपके मन में आपके जीवनसाथी
की एक विशिष्ट कल्पना थी? इसके विपरीत आपका प्रेम या आपकी कल्पना साकार रूप ना ले
सकी हो तब ऐसे में आपने क्या किया? कल्पना कीजिए कि आपकी मनमर्जी के विरूद्ध
सगाई कर दी गयी हो और फिर कहा गया हो कि अब आप अपना मन मिलाने के लिए साथ-साथ
घूमते-फिरते रहिए। सम्पूर्ण पोस्ट पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें - http://sahityakar.com/wordpress/%E0%A4%85%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A5%8B-%E0%A4%95%E0%A5%88%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%85%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%8F%E0%A4%82/
Thursday, September 11, 2014
अमेरिका में भारतीयों का खानपान
भारत के प्रत्येक शहर में एक ऐसा चौक या गली जरूर
होगी जहाँ चाट खाते हुए लोग मिल जाएंगे। अभी तो प्लेटों का जमाना आ गया है लेकिन
अभी कुछ दिन पूर्व तक पत्ते पर चटपटी चाट खाने का आनन्द ही कुछ और था, उस पर लगी
चटनी को अंगुलियों से चाटने का या फिर पत्ते को जीभ से चाटने का स्वर्गीय आनन्द
ही कुछ और रहा है।
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Saturday, August 30, 2014
अमेरिका के बाजार : ग्राहक जाए बारबार
अमेरिका में शॉपिंग का अपना ही मजा है, आप 8 बाय 10
की दुकान से निकलकर सीधे ही आकाश के तारामण्डल में पहुँच जाते हैं। चारों तरफ एक
से बढ़कर एक सुन्दर और अपरिचित सामान बिखरा पड़ा है। किसी काउण्टर पर वियतनामियों
की भीड़ है तो कहीं चाइनीज है, कहीं यूरोपियन्स तो कहीं अमेरिकी और कहीं भारतीय।
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Saturday, August 9, 2014
कुछ प्यार दे आए और कुछ प्यार ले आए
हम बगीचा भूल गए, बगीचे के फूल भूल गए, फूलों की
सुगंध भूल गए, बस स्मरण रहा कि मकरंद कैसे बनता है। हम सभी इसी मकरंद की तलाश में
लगे रहे, कुछ बच्चों ने बनाया, कुछ हमने बनाया और बस प्याला भर लाए।
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Thursday, June 19, 2014
ज्रीरो जीव रो बेरी रे तू मत खाय परण्यो जीरो
जीरो जीव रो बेरी रे तू मत खाये परणा जीरो , यह कहावत बचपन से आज तक सुनते आए हैं, लेकिन जीरे से इतना परहेज रखने को क्यों कहा गया समझ नहीं आया। कुछ तो ऐसा है जीरे में जिसकी जांच पडताल भारत से सात समुद्र पार अमेरिका में भी हो रही है। भारत से आप जब चलते हैं तब आप सबकी अटेची खाने-पीने के सामान से भरी होती है। हमें पता नहीं यह क्यों लगता है कि अमेरिका में यह नहीं मिलेगा या वह नहीं मिलेगा।
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Tuesday, March 18, 2014
कहीं हम भी सठिया तो नहीं रहे हैं?
आप लोग न जाने किस किस से डरते होंगे लेकिन मुझे तो
अब स्वयं से ही डर लगने लगा है। हँसिये मत और ना ही आश्चर्य प्रकट कीजिए,
बड़े-बूढ़ों ने कहावत ऐसे ही नहीं बनायी थी - साठ साल में सठिया गया है बुढ्ढा। साठ
साल पूरा होते ही मन बेचैन रहने लगा है, अपनी हर बात पर शंका होने लगी है कि ये सठियाने
के लक्षण तो नहीं है?
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Tuesday, March 11, 2014
अण्डमान का सुन्दर द्वीप हेवलोक
एक और दर्शनीय और पर्यटकीय महत्व का द्वीप है – हेवलोक। प्रत्येक पर्यटक की मंजिल होती है हेवलोक। यहाँ समुद्र तट नाम के साथ नम्बरों में भी विभाजित हैं। राधानगर बीच अर्थात 7 नम्बर बीच सर्वाधिक खूबसूरत है। इसे एशिया का सातवें नम्बर का सर्वाधिक खूबसूरत बीच माना गया है।
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Monday, March 3, 2014
हनुमान द्वीप से अण्डमान द्वीप - प्रकृति का अद्भुत खजाना
अंग्रजों
के क्रूर अत्याचार को दर्शाता सेलुलर जेल
वीर सावरकर सदृश्य हजारों स्वातंत्र्य वीरों की तपस्थली
- अण्डमान निकोबार की सेलुलर जेल। ध्वनी और प्रकाश का कार्यक्रम प्रसारित हो रहा
था। उद्घोषक ने प्रारम्भ किया - रामायण काल में जब राम-रावण का युद्ध चल रहा था
तब हनुमान संजीवनी बूटी की तलाश में इसी मार्ग से गुजरे थे और उन्होंने इसी द्वीप
पर विश्राम किया था।पोस्ट को सम्पूर्ण पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें - http://sahityakar.com/wordpress/
Friday, February 7, 2014
क्या यहाँ तुम्हारी नाल गड़ी है?
या वाकयी में जहाँ नाल गड़ी होती है, उस जगह का आकर्षण हमेशा बना रहता है? अपना शहर, जहाँ हमने जीवन प्राप्त किया हो, वह हमेशा क्यों अपना सा लगता है? उस जमीन से क्या रिश्ता बन जाता है?
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Friday, January 17, 2014
पिछोला झील में नाव उतारी - अब कचरा नहीं बचेगा
पिछोला झील में नाव उतारी - अब कचरा नहीं बचेगा
रात को कुछ मनचले भी यहाँ चले आते हैं, मदहोश होने का इंतजाम भी साथ लाते हैं और मदहोशी में भूल जाते हैं बोतलें, प्लास्टिक की थैलियां और भी ना जाने क्या क्या। ये सब हमारी झीलों में लाश की तरह तैरता दिखायी देने लगता है। राह चलते लोग भी अपनी आदत से मजबूर, इन झीलों में कचरा डाल देते हैं।
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रात को कुछ मनचले भी यहाँ चले आते हैं, मदहोश होने का इंतजाम भी साथ लाते हैं और मदहोशी में भूल जाते हैं बोतलें, प्लास्टिक की थैलियां और भी ना जाने क्या क्या। ये सब हमारी झीलों में लाश की तरह तैरता दिखायी देने लगता है। राह चलते लोग भी अपनी आदत से मजबूर, इन झीलों में कचरा डाल देते हैं।
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Thursday, January 2, 2014
कोहरा छाया है, सूरज भैया रजाई में हैं
बस हम जैसे खिटपिटये रजाई से निकल गए हैं और अपने शब्दों
को जाँचने में लगे हैं कि वे जमे तो नहीं हैं। खिड़की से कोहरे का आनन्द लेते हुए
शब्द धीरे-धीरे सकुचाते हुए बाहर आ रहे हैं।
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