मक्की की रोटी यदि आपको नए कलेवर के साथ मिले तो आप आश्चर्य में पड़ जाएंगे और पूछ ही लेंगे कि यह क्या है? बताया गया कि यह टोटियाँ हैं। हमने कहा कि रोटियां हैं और मेक्सीकन ने कहा कि टोटियाँ हैं। इतिहास के पन्ने पल्टेंगे तो पाएंगे कि भारतीयों ने मेक्सिको तक व्यापार किया था और मेक्सिको का खान-पान इस बात की गवाही देगा। हम टाहो गये थे, शाम को भोजन की तलाश में निकले, बेटे ने कहा कि फला रेस्ट्रा में ही चलेंगे, वहाँ मेक्सीकन फूड बड़ा अच्छा मिलता है। लेकिन वहाँ कम से कम डेड घण्टे की लाइन थी, खैर हमने बुकिंक करा दी और तब तक बाहर बैठकर अलाव तपते रहे। हमें भोजन के मामले में कुछ नहीं पता था कि क्या खाया जाएगा लेकिन कुछ तो ऐसा होगा ही जो हमें पसन्द आ जाएगा। बेटे ने खाना आर्डर कर दिया और जब खाना सामने था तब आश्चर्य हुआ। एक रोटी में बीन्स, पनीर, हरी सब्जियां आदि भरकर रोटी को लपेटकर अच्छी तरह से पेक कर दिया गया था। दूसरी डिश थी – मक्की की पतली रोटी और उसमें भी इसी प्रकार के खाद्य पदार्थ भरकर बस फोल्ड कर दिया गया था। बताया गया कि ये टोटियाँ हैं। मक्की की इतनी पतली रोटी को देखकर आश्चर्य हुआ और घर आकर सबसे पहले यू-ट्यूब में टोटियाँ बनाने की विधि देखी। फिर आश्चर्य का सामना करना पड़ा, जैसे हम मक्की की रोटी बनाते हैं वैसे ही रोटी थी, बस अन्तर यह था कि रोटी पूड़ी या पापड़ी बनाने वाली मशीन से बनायी गयी थी। फटाफट टोटियाँ बन रहे थे। एक दूसरा प्रकार भी था, जिसमें मक्की को 24 घण्टे पानी में भिगोकर, उसके छिलके निकालकर पीसकर फिर टोटियाँ बनाया गया था।
सारी दुनिया में रोटी खायी जाती है, लेकिन उसके न जाने कितने प्रकार हैं, हमारी तरह थाली और कटोरी नहीं है, बस रोटी पर ही सबकुछ रखकर खाया जाता है। एक नया भारतीय पिज्जा सेन्टर खुला था, हम वहाँ पर भी गये। थाली के आकार का बड़ा सा पिज्जा, उसपर समोसे का मसाला, चाट का मसाला आदि कई प्रकार के चटपटे मसाले से पिज्जा बनाया गया था, साथ में दही से बनी चटनी थी, दूसरे रेस्ट्रा में तो बूंदी का रायता पिज्जा के साथ मिलता है। एक और डिश थी – फलाफल, रोटी की परत के बीच में बीन्स, पनीर आदि भर दिया गया था। कहने का मतलब यह है कि आधार तो रोटी ही है, बस कभी उसमें लपेट दिया गया है, कभी बीच में भर दिया गया है। हमारे यहाँ की तरह अलग-अलग स्वाद की व्यवस्था नहीं है, सब कुछ रोटी के अन्दर एक साथ परोसा गया है, जिसे आप रास्ते चलते भी खा सकते हो। रोटी के तो कई प्रकार दिखायी देते हैं लेकिन पूरी और बाटी का कोई प्रकार नहीं है। वहाँ कढ़ाई में तलने की व्यवस्था नहीं है बस तवे पर ही फ्राई करते हैं, इसलिये पूरी नहीं बनती। मक्की बहुत खायी जाती है लेकिन बाजरा, जौ की रोटी के बारे में जानकारी नहीं मिली। ब्रेड मैदा से ही बनती है लेकिन अब गैंहू के आटे से भी बनी ब्रेड का प्रचलन बहुत हो रहा है, साथ ही मल्टी-ग्रेन से बनी ब्रेड भी चलन में है। आप भी यहाँ टोटियाँ बनाकर बच्चों को खुश कर सकते हैं, क्योंकि वैसे तो वे मक्की की रोटी खाते नहीं लेकिन टोटियाँ बनाकर बरिटो या केसेडिया बना देंगे तो खुशी-खुशी खा लेंगे। हमारे घर में भी यही होता था, रोटी नहीं खानी लेकिन रोटी में बीन्स और चीज भरकर दे दी तो शौक से खा ली जाती थी। हम तो यही कहेंगे कि जलवा तो सब दूर रोटी का ही है, बस कहीं रोटियाँ हैं तो कही टोटियाँ है।
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आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन अग्नि-5 की सफलता पर बधाई : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
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