आपने कभी खेती की है? नहीं की होगी लेकिन बगीचे में कुछ ना कुछ उगाया जरूर होगा, चाहे गमले में ही फूल लगाया हो। जैसे ही हम बीज या पौधा लगाते हैं, साथ में खरपतवार भी निकल आती हैं और हम उन्हें चुन-चुनकर निकालने लगते हैं, खरपतवार खत्म होने पर ही फल या फूल बड़े हो पाते हैं और यदि खरपतवार नहीं निकाली तो खरपतवार फल और फूल दोनों को बढ़ने नहीं देती। अब जरा दुनिया को भी देखें, मनुष्यों में कौन सृष्टि के लिये उपयोगी है और कौन केवल खरपतवार है? सभ्य मनुष्य दुनिया को सुंदर और उपयोगी बनाता है जबकि खरपतवार सरीखे मनुष्य दुनिया को बदरंग कर देते हैं। केवल मनुष्य होना जरूरी नहीं है, अपितु मनुष्यत्व होना भी जरूरी है। दुनिया के ताकतवर लोग अपनी खेती करने हमेशा से निकले रहते हैं, कभी यूरोप के लोग अमेरिका गये थे और उन्हें लगा कि यहाँ जो लोग हैं, वे खुद को सुरक्षित रखना नहीं जानते, अपनी जमीन की कीमत नहीं पहचानते और इतनी दूर से चलकर आये मुठ्ठी भर अंग्रेजों के समक्ष धराशायी हो गये तो ऐसे कमजोर लोगों को जीने का अधिकार नहीं है और उन्होंने बड़ी मात्रा में कत्लेआम किया और जो अपनी सुरक्षा के प्रति जागरूक था केवल उसे ही रहने का अधिकार दिया। आज अमेरिका में यूरोपियन्स राज करते हैं, पूरे देश को सभ्य देश बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते और उनके लिये सबसे प्रथम उनकी सुरक्षा है। वे खरपतवार को स्थान नहीं देते।
उसके विपरीत भारत में खरपतवार तेजी से बढ़ रही है, इस देश का आम नागरिक अपनी सुरक्षा और सभ्यता के लिये जागरूक नहीं है। कभी यहाँ के लोगों को मुगल काट देते हैं और कभी अंग्रेज। वे मुठ्ठी भर आते हैं और लाखों-करोड़ो के समाज को काटकर चले जाते हैं। हमें खरपतवार समझ काटते हैं और खुद को श्रेष्ठ फल समझकर बो जाते हैं। अब उनकी खेती लहलहाने लगी है और उनकी समझ में हम सब खऱपतवार बन चुके हैं। वे सभी को इस जमीन से उखाड़कर फेंक देना चाहते हैं और खुद की खेती लहलहना चाहते हैं। हमारे यहाँ का पढ़ा-लिखा तबका अपनी ही प्रजाति को खऱपतवार समझ उखाड़ने में उनका सहयोगी बना है, सच भी है कि जब हम अपनी सुरक्षा के लिये सावचेत नहीं है और ना ही अपनी सभ्यता के विकास के लिये सजग हैं तो फिर सही मायने में हम खरपतवार ही हैं और हमें यदि उखाड़कर फेंका जा रहा है तो कुछ गलत नहीं हो रहा है।
यदि हमें खऱपतवार नहीं बनना है तो सबसे पहले खुद को सभ्य बनाना होगा और उसका पहली आवश्यकता है कि समाज में अनुशासन लाना होगा। हमें सिद्ध करना होगा कि हम खऱपतवार नहीं है, अपितु श्रेष्ठ जीवन-मूल्यों वाले प्राणी हैं और यदि हमारी प्रजाति शेष नहीं रही तो यह भूमि जंगल में बदल जाएगी। क्योंकि जो हमपर अधिकार करना चाह रहे हैं वे लगातार यह सिद्ध करने में लगे हैं कि हम वाहियात नस्ल हैं और हम भी इसे सत्य मान बैठे हैं तभी तो दूसरों का कोई भी त्योहार आता है हम उसकी महानता बताकर और उसे मनाकर बावले हुए जाते हैं और जब अपनी बारी आती है तब उसकी कमियाँ निकालने में क्षणभर की भी देर नहीं करते। हम हमारी हर बात को घटिया बताकर खुद को खरपतवार सिद्ध कर रहे हैं और उन्हें गुलाब का फूल बता रहे हैं तो फिर हमें नष्ट होना ही है। अब आप तय कीजिए कि आपको सभ्य बनना है या फिर खरपतवार।
यदि हमें खऱपतवार नहीं बनना है तो सबसे पहले खुद को सभ्य बनाना होगा और उसका पहली आवश्यकता है कि समाज में अनुशासन लाना होगा। हमें सिद्ध करना होगा कि हम खऱपतवार नहीं है, अपितु श्रेष्ठ जीवन-मूल्यों वाले प्राणी हैं और यदि हमारी प्रजाति शेष नहीं रही तो यह भूमि जंगल में बदल जाएगी। क्योंकि जो हमपर अधिकार करना चाह रहे हैं वे लगातार यह सिद्ध करने में लगे हैं कि हम वाहियात नस्ल हैं और हम भी इसे सत्य मान बैठे हैं तभी तो दूसरों का कोई भी त्योहार आता है हम उसकी महानता बताकर और उसे मनाकर बावले हुए जाते हैं और जब अपनी बारी आती है तब उसकी कमियाँ निकालने में क्षणभर की भी देर नहीं करते। हम हमारी हर बात को घटिया बताकर खुद को खरपतवार सिद्ध कर रहे हैं और उन्हें गुलाब का फूल बता रहे हैं तो फिर हमें नष्ट होना ही है। अब आप तय कीजिए कि आपको सभ्य बनना है या फिर खरपतवार।
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