Tuesday, January 30, 2018

#TED याने टेकनोलोजी, एन्टरटेंटमेंट और डिजाइन

कल रिमोट को आगे-पीछे करते एक श्रेष्ठ कार्यक्रम पर आकर तलाश रूक गयी, देखा एक सम्भ्रान्त महिला अपने मन को दर्शकों के सामने अभिव्यक्त कर रही थी, पेशे से चिकित्सक थी और 71 वर्ष की आयु में भी दुनिया भर में अपनी सेवाएं दे रही थी, उनकी अन्तिम पंक्ति थी की मैं कभी रिटायर्ड नहीं होऊंगी। उनका बोलना नयी प्रेरणा दे रहा था लेकिन शायद समय सीमा से वे बंधी थी और जब उनकी बात समाप्त हुई तब सारे ही दर्शक उनके सम्मान में खड़े हो गये। मैंने उनके बारे में पहले कभी नहीं सुना था। इसके बाद आए जावेद अख्तर, उन्होंने शब्दों के रचना संसार की बात की। उन्होंने कहा कि मनुष्य और पशु-पक्षियों में एक ही अन्तर है और वह है शब्दों की दुनिया। मनुष्य शब्दों के माध्यम से अपनी विगत धरोहर को हम तक पहुंचाता है और हम स्वयं को जान पाते हैं कि हमारी विरासत क्या है। इसी प्रकार कुछ वैज्ञानिक, कुछ समाज शास्त्री कुछ कलाकारों ने अपनी बात कही। मैं अभिभूत थी, दिल में तीव्रता से उतरने वाला कार्यक्रम था। अभी गूगल सर्च में जाकर पता किया कि क्या है कार्यक्रम का उद्देश्य।
TED याने टेकनोलोजी, एन्टरटेंटमेंट और डिजाइन। इस क्षेत्र में कार्य करने वाले लोगों का प्लेटफार्म। रविवार को शाम 7 बजे स्टार प्लस पर आता है। कल शाहरूख खान होस्ट कर रहे थे। हो सके तो इसे अवश्य देखें। कार्यक्रम में जितने भी लोगों ने अपनी बात रखी उनमें से अधिकतर गुमनाम थे, वे दुनिया को ऐसा कुछ दे रहे हैं जो आज के पहले हमने कभी जाना नहीं। कितनी अजीब बात है कि हम फिल्मी कलाकारों को, खिलाड़ियों को जानते हैं लेकिन जो लोग हमारे जीवन को विज्ञान से आत्मसात कराते हैं उनके बारे में नहीं जानते, जो कला के माध्यम से स्वयं को अभिव्यक्त होना सिखाते हैं, उनको हम नहीं जानते और जो नयी दुनिया बना देते हैं हम उन्हें नहीं जानते। दुनिया में इन क्षेत्रों में कितना कार्य हो रहा है, हम इन सबसे अनजान है बस खेल के मैदान पर कब मैच हार गये और कब जीत गये उसी का गम और खुशी मनाते रहते हैं या कौन सी फिल्म में किसने क्या रोल किया है, उसी पर सारा ध्यान केन्द्रित रखते हैं लेकिन दुनिया में कितना कुछ हो रहा है उसपर चर्चा भी नहीं करते। यदि हम बड़े कामों पर ध्यान केन्द्रित करेंगे तब फिल्म और खेल हमारे लिये चिन्ता का विषय नहीं होंगे और ना ही किसी ने क्या कह दिया और मीडिया किस पर हल्ला मचा रहा है यह हमारे लिये मायने नहीं रखेगा।
जब हम एक साधारण व्यक्ति की उड़ान देखते हैं और साधारण तरीके से उसने समाज को क्या दे डाला है तब हम प्रेरित होते हैं कि हम भी कुछ कर सकते हैं, लेकिन आज जो मीडिया द्वारा रचित विवाद हैं उसमें हम भी केवल विवाद करने वाले बनकर रह गये हैं। रचना का संसार हमसे पीछे छूट गया है और हम सब खरपतवार सरीखे बन गये हैं, जिसकी जरूरत किसे भी नहीं है। हम यहाँ शब्दों को गढ़ने वाले लोग हैं, शब्दों का विशाल संसार हमारे पास होना चाहिये जिससे हम अपनी बात कह सकें साथ में दृष्टि भी होनी चाहिये कि हमें दुनिया को क्या नया देना है। दुनिया में जो है उसी को हमने परोस दिया तो वह सृजन नहीं है, वह तो नकल है। इसलिये शब्दों के भण्डार का भी विस्तार करे और अपनी दृष्टि का भी। कोशिश करें कि जो हम देख रहे हैं, वह नया हो, उसकी अभिव्यक्ति भी नयी हो, तब हमारे लेखन का भी औचित्य होगा नहीं तो नकल की राह पर हम चल पड़ेंगे। आप आगामी रविवार को कार्यक्रम देखें, हो सकता है आपको भी प्रेरित कर जाए। मेरा तो दिल से आभार।
www.sahityakar.com

Saturday, January 27, 2018

यही अन्तर है पूरब और पश्चिम का

कभी-कभी ऐसा भी होता है जब आपके पास कहने को या लिखने को कुछ होता है लेकिन आप लिख ही नहीं पाते हैं! बस यही सोचकर रह जाते हैं कि पहले नकारात्मक पक्ष लिखा जाए या पहले सकारात्मक पक्ष, और इसी उधेड़बुन में गाड़ी छूट जाती है। खैर आज सोच ही लिया की अब और नहीं। कभी आप सभी ने अपने बचपन को टटोला है और यदि यह टटोलना भी अपनो के बीच हो तो आनन्द दोगुना हो जाता है। हमारी पीढ़ी का बचपन भी क्या था! आज जो साधन दिखते हैं, उसमें से एक भी तब नहीं था, इसलिये समय सभी के पास था। साधनों की चकाचौंध में खोए हुए हैं आज हम और उसमें डूबते जा रहे हैं, अब किसी की जरूरत नहीं! बतियाने की भी जरूरत नहीं और किसी की सहायता की भी जरूरत नहीं। मैं मेरे एक आत्मीय परिवार के साथ याद कर रही थी कि कैसे हम सब एक दूसरे के काम आते थे, एक घर में फोन हुआ करता था और सारे ही मौहल्ले को आवाज देकर फोन आया है, बुलाया जाता था। सारे ही मौहल्ले को दो कारों की सोवाएं प्राप्त थी। सारी ही अच्छी बातें हम कर रहे थे, लेकिन उन अच्छी बातों में भी जो बात निकलकर आयी वह मेरे लिये लिखने का कारण बन गयी। एक युवा ने कहा कि यदि हम आज करोड़ों रूपया भी खर्च कर दें तो वैसा जीवन लौटाकर नहीं ला सकते। उस पुराने जीवन की लिये ललक, जहाँ समृद्धि नहीं थी, माता-पिता का कठोर अनुशासन था, उस ललक को देखकर दिल में ठण्डक सी पड़ गयी। लेकिन तभी कई दूसरे युवक सामने आ खड़े हुए। अन्तर दिखने लगा एक पीढ़ी का, नजरिये का। 
अमेरिका जब भी जाना हुआ, युवाओं से सामना होता रहा। मन तरस जाता था यह सुनने के लिये कि हमें वो जमाना याद आता है। लेकिन जब एक दिन एक युवा से सुना- अब भारत जाने का मन नहीं करता, मैं तो माता-पिता से कहता हूँ कि जब मिलने का मन हो तब आप ही चले आना। यह शब्द तीर की तरह चुभ गए और अभी तक मन में रिस रहे हैं। फिर सुनायी दिया कि भारत में अव्यवस्थाएं बहुत हैं इसलिये जाने का मन ही नहीं करता। कैसा है यह मन! जो अपने अतीत से पीछा छुड़ाना चाहता है! हमें तो अतीत को सहलाने में ही स्वर्ग सा आनन्द आता है। जहाँ समृद्धि नहीं थी, फिर भी उसमें हम खुद को खोज रहे हैं, जहाँ अनुशासन की दीवार इतनी सशक्त थी कि प्रेम कहीं खो जाता था, उसमें भी हम प्रेम खोजकर आनन्दित हो लेते हैं और विदेश के मोह में फंसी पीढ़ी जो समृद्धि के दौर में पैदा हुई है, उसके लिये बचपन का परिसर महत्व ही नहीं रखता! हम पड़ोस के किए सहयोग को याद करके उनका अहसान मान रहे थे और विदेश में बसी पीढ़ी अपनों का भी अहसान नहीं मानती। वह कहती है कि देखो मैंने कितनी उन्नति की है, मैं कहाँ और तुम कहाँ। मुझे बचपन का सबकुछ याद है, यहाँ के युवाओं को याद है, वे सभी कुछ तो गिना रहे थे लेकिन उन्हें कुछ याद नहीं। मन तो कभी थपेड़े मारता ही होगा, वे तब क्या कहते होंगे मन को! जब मैं परिवार के बीच बैठकर पुराने बीते हुए कल में जी लेती हूँ तब लगता है कि यह समय यहीं थम जाए और जब पुराने को बिसराने की होड़ लगी होती है तब लगता है कि समय दौड़ जाए और मैं वहीं पुराने समय में चली जाऊं। एक कहता है कि करोड़ो रूपये में भी वह माहौल नहीं मिल सकता और अब सुन रही हूँ कि उस माहौल में जिया नहीं जाता। बस यही अन्तर है पूरब और पश्चिम का। सारी चकाचौंध के बीच अपनापन कहीं नहीं है, सभी साधनों को भोग रहे हैं, बस मशीन बन गये हैं। एक मशीन से उतरते हैं और दूसरी की ओर दौड़ पड़ते हैं। दौड़ रहे हैं, हाँफ रहे हैं लेकिन सुकून नहीं तलाश पा रहे। हम यहाँ ठहरे हुए हैं लेकिन कभी अतीत में खो जाते हैं तो कभी अपनों में खो जाते हैं और अतीत व अपनों के इस जीवन से मकरंद निकाल लाते हैं। हम खुश हैं कि हमारे पास हमारा अतीत है, अतीत के उस परिसर को हम छू सकते हैं, देख सकते हैं और पल दो पल उसके साथ होने का सुख बंटोर सकते हैं। बस तुम्हारे पास सुख के साधन हैं लेकिन खुशी के वे पल नहीं हैं। सुखी तो हर कोई हो सकता है लेकिन खुश कितने हो पाते हैं! हमारे पास खुश रहने और हँसने का कारण है और इस हँसी-खुशी को हम आपस में मिलकर दोहराते रहते हैं। हम समृद्धि से अधिक अपनों का साथ चाहते हैं और उनके योगदान को अपनी थाती मानते हैं। काश आज फिर मिल जाए, वही माहौल!

Wednesday, January 24, 2018

अद्भुत रिटर्न पॉलिसी

अभी अमेरिका में सर्दी का मौसम था, जबकि जून-जुलाई में भी हल्की सर्दी रहती ही है, लेकिन तब वहाँ कोई स्वेटर नहीं पहनता है। हम जैसे लोग स्वेटर पहनेंगे भी तो चाहकर भी नये स्वेटर खरीदे नहीं जाते क्योंकि बाजार में उपलब्ध ही नहीं है। लेकिन इस बार हमारी यात्रा में सर्दी थी और सारी ही दुकानें गर्म कपड़ों से भरी थीं, ऊपर से क्रिसमस के कारण सेल लगी थी तो खरीददारी का कोई ठिकाना ही नहीं था। हर दुकान पर भीड़, दीवाली पर हमारे यहाँ भी भीड़ होती है लेकिन हम ग्राहक की मर्जी का ख्याल नहीं रखते। एक बार खऱीद लिया तो खरीद लिया, परिचित दुकान होगी तो वापस होने की सम्भावना है नहीं तो मस्त रहो। लेकिन ग्राहक का मतलब क्या होता है, यह अमेरिका में पता लगता है। आपने कैसा भी सामान खरीद लिया है, आपको एक निश्चित अवधि में वापस करने की पूरी छूट रहती है, आपको पूरा पैसा वापस मिल जाएगा। जब सेल लगी हो तो हर कोई यह कहता है कि जितना सामान उठाना है उठा लो, घर जाकर पसन्द कर लो और जो पसन्द ना आए उसे वापस कर दो। हमें कुछ जर्किन खऱीदनी थी, तीन-चार खरीद ली और जब देखा कि यह पसन्द नहीं है तो वापस कर दी। ग्राहक को कभी नाराज मत करो, वहाँ का यही सिद्धान्त है। वापस करने के लिये भी मगजमारी नहीं है, आपने जैसे कोस्को से सामान लिया है तो आप किसी भी कोस्को की दुकान पर वापस कर सकते हैं। अब तो बिल की भी मारामारी नहीं है, आपने कार्ड से भुगतान किया है तो कम्यूटर में एन्ट्री देखी और सामान वापस। इसलिये वहाँ जनवरी मास वापसी का महीना ही कहलाता है। पूरा दिसम्बर खरीददारी और फिर जनवरी में तसल्ली से वापसी। 
हमारे यहाँ एक बार सामान खऱीद लिया तो समझो आपके गले ही पड़ गया, कुछ नहीं कर सकते हैं। कुछ लोग इस व्यवस्था का लाभ भी उठाते हैं और चीज काम लेकर वापस कर देते हैं लेकिन व्यापार में यह चलता है। मैं और बिटिया एक मॉल में गये, हमने कुछ स्वेटर खऱीदे थे और उनमें कितनी छूट थी यह हमें समझ नहीं आ रहा था। हमने अपनी पसन्द के स्वेटर ले लिये, जब बिलिंग के लिये गये तो एकाध स्वेटर में दाम अधिक लगाए गये, हमने कहा कि जिस लाइन में ये लगे थे, वहाँ इतनी कीमत थी। वह हमसे बाते करती रही और उसने यह जान लिया कि हम विजिटर है। वह बोली की मैं आपको 15 प्रतिशत डिस्काउण्ट दे दूंगी, जो कि हमारे यहाँ विजिटर को देते हैं। उसने बिना कुछ कहे हमें डिस्काउण्ट दे दिया था क्योंकि यदि कोई ग्राहक कीमत के लिये कुछ भी शंका करता है तो वह उसे निराश नहीं करते। ऐसे ही खरीददारी करते हुए हमारे पास चिल्लर एकत्र हो गये, जब हमें छोटे नोटों की आवश्यकता पड़ी तो हमने सारी चिल्लर सामने रख दी, क्योंकि हमें पता ही नहीं था कि किस का क्या दाम है! उसने अपने आप गिनी और शेष लौटा दी।
आपने अनुभव किया होगा कि आप यात्रा पर निकले हैं और रास्ते में खाना खाने के लिये किसी ढाबे पर रुके हैं, आपके पास साथ में खाना भी है लेकिन आप वहाँ बैठकर अपने साथ का खाना नहीं खा सकते लेकिन मुझे बड़ा ताजुब्ब हुआ एक रेस्ट्रा में यह देखकर कि वहाँ काफी मात्रा में टेबल-कुर्सी लगी थी और एक टेबल पर माइक्रोवेव, पानी, प्लेट्स, चम्मच आदि सारा ही सामान भी रखा था। आप आइए, बैठिये, अपना खाना निकालिये और गर्म करके खा लीजिये। ना, इसके लिये कोई शुल्क नहीं था। यह बस व्यवसाय करने का उत्तम तरीका था। किसी ने आपके लिये इतनी पुख्ता व्यवस्था की है तो आपका भी फर्ज बनता है कि आप वहाँ से कुछ तो खरीदेंगे ही। इसी को ही कहते हैं उत्तम व्यवसाय।
रास्ते में किसी भी दुकान पर रुककर आप टॉयलेट काम में ले सकते हैं, हमारे यहाँ केवल ऐसी व्यवस्था पेट्रोल पम्प पर मिलती है। कई बार तो पेट्रोल पम्प पर भी टॉयलेट ताले में बन्द होते हैं। लेकिन थोड़ा खुश आप भी हों ले, क्योंकि हम भी एक जगह पेट्रोल पम्प पर ही रुके और वहाँ टॉयलेट ताले में बन्द थे। हमने पास के दुकानदार से चाबी ली और प्रयोग किया। कहीं भी कोई भी टॉयलेट गन्दा नहीं मिलेगा, बस टॉयलेट पेपर जरूर बिखरे हुए मिल जाएंगे, इसके अतिरिक्त कोई गन्दगी नहीं और ना ही कोई बदबू। सभी को टॉयलेट का प्रयोग आता है। हमारे यहाँ करोड़ो देशवासियों ने तो टॉयलेट देखे भी नहीं हैं तो भला काम में लेना कैसे आएगा! चलो अब मोदीजी की कृपा से घर-घर में टॉयलेट तो बन गए हैं, देर-सबेर काम में लेना भी आ ही जाएगा फिर यात्रा के समय गन्दे टॉयलेट का सामना नहीं करना पड़ेगा। बहुत ही सभ्य तरीके से व्यापार होता है वहाँ, बस देखना यह है कि कहीं अराजक ताकतें इस व्यवस्था को चौपाट ना कर दें। 

Thursday, January 18, 2018

रोटियाँ बनाम टोटियाँ

मक्की की रोटी यदि आपको नए कलेवर के साथ मिले तो आप आश्चर्य में पड़ जाएंगे और पूछ ही लेंगे कि यह क्या है? बताया गया कि यह टोटियाँ हैं। हमने कहा कि रोटियां हैं और मेक्सीकन ने कहा कि टोटियाँ हैं। इतिहास के पन्ने पल्टेंगे तो पाएंगे कि भारतीयों ने मेक्सिको तक व्यापार किया था और मेक्सिको का खान-पान इस बात की गवाही देगा। हम टाहो गये थे, शाम को भोजन की तलाश में निकले, बेटे ने कहा कि फला रेस्ट्रा में ही चलेंगे, वहाँ मेक्सीकन फूड बड़ा अच्छा मिलता है। लेकिन वहाँ कम से कम डेड घण्टे की लाइन थी, खैर हमने बुकिंक करा दी और तब तक बाहर बैठकर अलाव तपते रहे। हमें भोजन के मामले में कुछ नहीं पता था कि क्या खाया जाएगा लेकिन कुछ तो ऐसा होगा ही जो हमें पसन्द आ जाएगा। बेटे ने खाना आर्डर कर दिया और जब खाना सामने था तब आश्चर्य हुआ। एक रोटी में बीन्स, पनीर, हरी सब्जियां आदि भरकर रोटी को लपेटकर अच्छी तरह से पेक कर दिया गया था। दूसरी डिश थी – मक्की की पतली रोटी और उसमें भी इसी प्रकार के खाद्य पदार्थ भरकर बस फोल्ड कर दिया गया था। बताया गया कि ये टोटियाँ हैं। मक्की की इतनी पतली रोटी को देखकर आश्चर्य हुआ और घर आकर सबसे पहले यू-ट्यूब में टोटियाँ बनाने की विधि देखी। फिर आश्चर्य का सामना करना पड़ा, जैसे हम मक्की की रोटी बनाते हैं वैसे ही रोटी थी, बस अन्तर यह था कि रोटी पूड़ी या पापड़ी बनाने वाली मशीन से बनायी गयी थी। फटाफट टोटियाँ बन रहे थे। एक दूसरा प्रकार भी था, जिसमें मक्की को 24 घण्टे पानी में भिगोकर, उसके छिलके निकालकर पीसकर फिर टोटियाँ बनाया गया था। 
सारी दुनिया में रोटी खायी जाती है, लेकिन उसके न जाने कितने प्रकार हैं, हमारी तरह थाली और कटोरी नहीं है, बस रोटी पर ही सबकुछ रखकर खाया जाता है। एक नया भारतीय पिज्जा सेन्टर खुला था, हम वहाँ पर भी गये। थाली के आकार का बड़ा सा पिज्जा, उसपर समोसे का मसाला, चाट का मसाला आदि कई प्रकार के चटपटे मसाले से पिज्जा बनाया गया था, साथ में दही से बनी चटनी थी, दूसरे रेस्ट्रा में तो बूंदी का रायता पिज्जा के साथ मिलता है। एक और डिश थी – फलाफल, रोटी की परत के बीच में बीन्स, पनीर आदि भर दिया गया था। कहने का मतलब यह है कि आधार तो रोटी ही है, बस कभी उसमें लपेट दिया गया है, कभी बीच में भर दिया गया है। हमारे यहाँ की तरह अलग-अलग स्वाद की व्यवस्था नहीं है, सब कुछ रोटी के अन्दर एक साथ परोसा गया है, जिसे आप रास्ते चलते भी खा सकते हो। रोटी के तो कई प्रकार दिखायी देते हैं लेकिन पूरी और बाटी का कोई प्रकार नहीं है। वहाँ कढ़ाई में तलने की व्यवस्था नहीं है बस तवे पर ही फ्राई करते हैं, इसलिये पूरी नहीं बनती। मक्की बहुत खायी जाती है लेकिन बाजरा, जौ की रोटी के बारे में जानकारी नहीं मिली। ब्रेड मैदा से ही बनती है लेकिन अब गैंहू के आटे से भी बनी ब्रेड का प्रचलन बहुत हो रहा है, साथ ही मल्टी-ग्रेन से बनी ब्रेड भी चलन में है। आप भी यहाँ टोटियाँ बनाकर बच्चों को खुश कर सकते हैं, क्योंकि वैसे तो वे मक्की की रोटी खाते नहीं लेकिन टोटियाँ बनाकर बरिटो या केसेडिया बना देंगे तो खुशी-खुशी खा लेंगे। हमारे घर में भी यही होता था, रोटी नहीं खानी लेकिन रोटी में बीन्स और चीज भरकर दे दी तो शौक से खा ली जाती थी। हम तो यही कहेंगे कि जलवा तो सब दूर रोटी का ही है, बस कहीं रोटियाँ हैं तो कही टोटियाँ है।

Sunday, January 14, 2018

सेल्यूट अमेरिका को

अमेरिका में एक दिन बेटा डाक देख रहा था, अचानक उसके माथे पर चिन्ता की लकीरे खिंच गयी, मैंने पूछा कि क्या खबर है? उसने बताया कि सरकारी चिठ्ठी है, अब तो मेरा भी दिल धड़कने लगा कि यहाँ अमेरिका में सरकारी चिठ्ठी का मतलब क्या है? लेकिन जब उसने बताया तो देश क्या होता है और उसके प्रति नागरिकों का कर्तव्य क्या होता है, जानकर खुशी भी हुई। न्यायालय की ओर से पत्र आया था – पुत्रवधु के नाम। उसे जूरी की ड्यूटी देनी होगी। आप लोगों ने अभी हाल ही आयी अक्षय कुमार की फिल्म – रूस्तम देखी होगी या फिर एक बहुत पुरानी फिल्म थी – एक रुका हुआ फैसला, इन दोनों ही फिल्मों में जूरी-प्रथा थी। न्याय जनता की राय के आधार पर होता था, इसके लिये 12 लोगों की कमेटी बनाकर उनके समक्ष केस की पूरी प्रक्रिया चलती थी और फिर उन्हें न्याय देना होता था। लेकिन अब जनता की भागीदारी हटा ली गयी है। लेकिन अमेरिका में अभी भी न्याय जनता की भागीदारी से ही होता है और इसके लिये आम आदमी को अपनी नि:शुल्क सेवाएं देनी होती हैं। सरकार वहाँ के नागरिकों को सेवा के लिये बुलाती है और यह उनका कर्तव्य होता है कि वे सेवा दें। कोई भी सेवा देने से मुकर नहीं सकता। यदि आपने सेवा नहीं दी है तो बड़ा हर्जाना और जेल दोनों होती है। बेटे की चिन्ता की बात यह थी कि अभी पुत्रवधु को प्रसव हुए एक माह ही हुआ था और छोटे बच्चे को इतनी देर और कई दिनों तक नहीं छोड़ा जा सकता था। खैर छूट के प्रावधान देखे और सबसे पहला प्रावधान ही माँ बनना था। पत्र लिख दिया गया और वहाँ से एक साल की छूट मिल गयी। मतलब ड्यूटी तो देनी ही है। आपका कोई भी धंधा हो, उसमें कितना भी नुक्सान होता हो लेकिन यह ड्यूटी आपको देनी ही है, इसके लिये आपको कोई राशि भी नहीं मिलेगी। 
अमेरिका ने अपने नागरिकों के लिये कर्तव्य निर्धारित किये हैं लेकिन हमारे देश में शायद ही कोई ऐसा कर्तव्य हो जो नि:शुल्क हो। चुनाव ड्यूटी में भी अलग से भत्ता मिलता है और ड्यूटी भी सरकारी कर्मचारी की लगती है। देश के प्रति नागरिकों के कर्तव्य को जानकर मुझे बेहद खुशी हुई। वहाँ का प्रत्येक व्यक्ति देश के कानून का पालन करना अपना कर्तव्य ही नहीं धर्म समझता है तभी अमेरिका सभ्यता के पायदान में अव्वल है। न्याय व्यवस्था में आम आदमी की भागीदारी न्याय में पारदर्शिता को बढ़ाती है, जैसा की हमने रूस्तम और एक रुका हुआ फैसला में देखा था। काश हमारे देश में भी ऐसा ही कुछ होता! जूरी के लिये किसी भी वयक्ति का चुनाव हो सकता है, इसके लिये शिक्षा का आधार जरूरी नहीं है। बस एक साक्षात्कार होता है, यदि आपको उसमें चुन लिया गया है तब आपको वह ड्यूटी अनिवार्य रूप से देनी ही होगी। कोर्ट की कार्यवाही कितने दिन चलेगी और कितने दिन तक आपको ड्यूटी करनी है, इसमें कोई छूट नहीं है। जूरी प्रथा से यह बात भी सबके समक्ष आती है कि न्याय देना किसी बुद्धीजीवी का अधिकार नहीं है, वह कोई भी आम आदमी हो सकता है। हमारी नैनी ने बताया कि उनके पति जो ड्राइवर है, दो बार ड्यूटी कर चुके हैं। सेल्यूट अमेरिका को।

Thursday, January 11, 2018

सभ्य बने या बने खरपतवार?

आपने कभी खेती की है? नहीं की होगी लेकिन बगीचे में कुछ ना कुछ उगाया जरूर होगा, चाहे गमले में ही फूल लगाया हो। जैसे ही हम बीज या पौधा लगाते हैं, साथ में खरपतवार भी निकल आती हैं और हम उन्हें चुन-चुनकर निकालने लगते हैं, खरपतवार खत्म होने पर ही फल या फूल बड़े हो पाते हैं और यदि खरपतवार नहीं निकाली तो खरपतवार फल और फूल दोनों को बढ़ने नहीं देती। अब जरा दुनिया को भी देखें, मनुष्यों में कौन सृष्टि के लिये उपयोगी है और कौन केवल खरपतवार है? सभ्य मनुष्य दुनिया को सुंदर और उपयोगी बनाता है जबकि खरपतवार सरीखे मनुष्य दुनिया को बदरंग कर देते हैं। केवल मनुष्य होना जरूरी नहीं है, अपितु मनुष्यत्व होना भी जरूरी है। दुनिया के ताकतवर लोग अपनी खेती करने हमेशा से निकले रहते हैं, कभी यूरोप के लोग अमेरिका गये थे और उन्हें लगा कि यहाँ जो लोग हैं, वे खुद को सुरक्षित रखना नहीं जानते, अपनी जमीन की कीमत नहीं पहचानते और इतनी दूर से चलकर आये मुठ्ठी भर अंग्रेजों के समक्ष धराशायी हो गये तो ऐसे कमजोर लोगों को जीने का अधिकार नहीं है और उन्होंने बड़ी मात्रा में कत्लेआम किया और जो अपनी सुरक्षा के प्रति जागरूक था केवल उसे ही रहने का अधिकार दिया। आज अमेरिका में यूरोपियन्स राज करते हैं, पूरे देश को सभ्य देश बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते और उनके लिये सबसे प्रथम उनकी सुरक्षा है। वे खरपतवार को स्थान नहीं देते।
उसके विपरीत भारत में खरपतवार तेजी से बढ़ रही है, इस देश का आम नागरिक अपनी सुरक्षा और सभ्यता के लिये जागरूक नहीं है। कभी यहाँ के लोगों को मुगल काट देते हैं और कभी अंग्रेज। वे मुठ्ठी भर आते हैं और लाखों-करोड़ो के समाज को काटकर चले जाते हैं। हमें खरपतवार समझ काटते हैं और खुद को श्रेष्ठ फल समझकर बो जाते हैं। अब उनकी खेती लहलहाने लगी है और उनकी समझ में हम सब खऱपतवार बन चुके हैं। वे सभी को इस जमीन से उखाड़कर फेंक देना चाहते हैं और खुद की खेती लहलहना चाहते हैं। हमारे यहाँ का पढ़ा-लिखा तबका अपनी ही प्रजाति को खऱपतवार समझ उखाड़ने में उनका सहयोगी बना है, सच भी है कि जब हम अपनी सुरक्षा के लिये सावचेत नहीं है और ना ही अपनी सभ्यता के विकास के लिये सजग हैं तो फिर सही मायने में हम खरपतवार ही हैं और हमें यदि उखाड़कर फेंका जा रहा है तो कुछ गलत नहीं हो रहा है।
यदि हमें खऱपतवार नहीं बनना है तो सबसे पहले खुद को सभ्य बनाना होगा और उसका पहली आवश्यकता है कि समाज में अनुशासन लाना होगा। हमें सिद्ध करना होगा कि हम खऱपतवार नहीं है, अपितु श्रेष्ठ जीवन-मूल्यों वाले प्राणी हैं और यदि हमारी प्रजाति शेष नहीं रही तो यह भूमि जंगल में बदल जाएगी। क्योंकि जो हमपर अधिकार करना चाह रहे हैं वे लगातार यह सिद्ध करने में लगे हैं कि हम वाहियात नस्ल हैं और हम भी इसे सत्य मान बैठे हैं तभी तो दूसरों का कोई भी त्योहार आता है हम उसकी महानता बताकर और उसे मनाकर बावले हुए जाते हैं और जब अपनी बारी आती है तब उसकी कमियाँ निकालने में क्षणभर की भी देर नहीं करते। हम हमारी हर बात को घटिया बताकर खुद को खरपतवार सिद्ध कर रहे हैं और उन्हें गुलाब का फूल बता रहे हैं तो फिर हमें नष्ट होना ही है। अब आप तय कीजिए कि आपको सभ्य बनना है या फिर खरपतवार।

Tuesday, January 9, 2018

ताजी रोटी – बासी रोटी

यदि आपके सामने बासी रोटी रखी हो और साथ में ताजी रोटी भी हो तो आप निश्चित ही ताजी रोटी खाएंगे। बासी रोटी लाख शिकायत करे कि मैं भी कल तुम्हारे लिये सबकुछ थी लेकिन बन्दे के सामने ताजी रोटी है तो वह बासी को सूंघेगा भी नहीं। जब दो दिन पहले भारत याने अपने देश में पैर रखा तो खबर आयी की एक बेटे ने माँ को छत से फेंक दिया। सारे भारत में तहलका मच गया कि अरे कैसे कलियुगी बेटे ने यह अपराध किया लेकिन मुझे तो न जाने कितने घरों में माँ को बासी रोटी मान फेंकते हुए बेटे दिखायी देते हैं, किसी ने साक्षात फेंक दिया बस अपराध यही हो गया। लेकिन कहानी में नया मोड़ आज सुबह आ गया जब दो महिने बाद अखबार हाथ में था और ताजा खबरे पढ़ने का सुख बटोर ही रही थी कि आखिरी पन्ने पर नजरे थम गयी, सऊदी अरब में एक पत्नी ने पति को इसलिये तलाक दे दिया कि उसने माँ को छोड़ दिया था। जज साहब के सामने कहा कि जो आदमी अपनी माँ को छोड़ सकता है वह भला मुझे कब छोड़ देगा, इसका क्या पता! लो जी ताजा रोटी ने ही बासी रोटी का पक्ष ले मारा और वह भी सऊदी में! 
मुझे लगने लगा है कि माँ का यह चोंचला अब बन्द हो जाना चाहिये, भाई माना की आपने संतान को जन्म दिया है लेकिन इसका यह तो मतलब नहीं कि आपने सेवा की ठेकेदारी ले ली। आपकी संतान युवा है और आप वृद्ध, आपके लिये वानप्रस्थ आश्रम है, संन्यास आश्रम हैं, कहीं भी ठोर-ठिकाना कीजिये लेकिन युवा लोगों को सांसत में मत डालिये। बेचारे वे तो वैसे ही ताजा रोटी की गर्म भांप के मारे हैं, फूंक-फूंककर हाथ लगाते हैं, हमेशा डरते रहते हैं कि कहीं जल ना जाएं और आप हैं कि उनके सामने समस्या बनकर खड़े हो जाते हैं! मेरी मानिये, मेरे साथ आइए और बासी रोटी का संसार बसाते हैं। उन्हें भी मुक्त कीजिये और खुद भी मुक्त हो जाइए। बस एक बार मुक्त होकर देखिये, लगेगा कि दुनिया फिर से मिल गयी है। आपके पक्ष में खड़ा होने वाला कोई नहीं है, किसी एक महिला ने आपका पक्ष लिया है तो क्या लेकिन लाखों माँओं को तो रोज इसी तरह फेंका जा रहा है! कब तक फिकेंगी आप? बस एक बार मोह जाल से बाहर निकलकर आइए, दुनिया के न जाने कितने सुख आपकी राहों में बिछ जाएंगे।
सच मानिये यह चोंचला भारत में ही अधिक है, विदेशों में माँ सावचेत हैं, उसने कभी भी अपेक्षा नहीं पाली, इसलिये आज अपना संसार बसाकर रहती हैं। भारत लौटते हुए हवाई जहाज में दर्जनों माता-पिता थे, बस वे अपना कर्तव्य पूरा करने गये थे। कितनी कठिनाई के साथ सफर कर रहे थे, यह मैं ही जानती हूँ लेकिन फिर भी संतान मोह में भटक रहे थे। एक वृद्ध महिला की तो सिक्योरिटी जाँच में जामा-तलाशी ली गयी, बड़ी दया भी आयी और गुस्सा भी लेकिन क्या किया जा सकता था! उसकी जगह कोई भी हो सकता था, मैं भी। मेरी बिटया की सहेली से बात हो रही थी, वह बोली कि मुझे बहुत शर्म आने लगी है कि हम अपने मतलब के लिये माता-पिता को बुलाते हैं, वे कितना दुख देखकर आते हैं! इसलिये इस ममता को पीछे धकेलिये और खुद को खुद के लिये समर्पित कीजिए। तब लगेगा कि कल भी आप का था और आज भी आप का है और कल भी आपका ही होगा। कोई नहीं कह सकेगा कि हम बासी रोटी क्यों खाएं और इसे फेंकने के लिये तैयार हो जाएंगे। बस अपना स्वाभिमान बनाकर रखिये। अपनी लड़ाई आपको स्वयं ही लड़नी होगी।