गाँव के झोपड़े सभी ने देखे होंगे,
उनमें खिड़की नहीं होती है और ना ही वातायन। मुझे लगता था कि धुआँ घर में भर जाता
होगा लेकिन अमेरिका आकर समझ आया कि नहीं वे झोपड़े सारी गन्दी हवा छत पर लगे केलुओ
के माध्यम से बाहर निकाल देते हैं और घर शुद्ध हवा से भर जाता है। हमारे यहाँ घरों
में हम एसी चलाते हैं और कुछ देर बाद घुटन सी होने लगती है, मन करता है कि बाहर की
हवा अन्दर आने दें, लेकिन अमेरिका में ऐसा नहीं है। पूरा घर पेक है, कहीं से भी
हवा आने की गुंजाइश नहीं है लेकिन घर में हमेशा अशुद्ध हवा बाहर निकलती रहती है और
अन्दर शुद्ध हवा बनी रहती है। हर घर की छत पर चिमनी है जो घर को शुद्ध रखती है,
जबकी हमारे यहाँ खिड़की है लेकिन वातायन की प्रथा बन्द होती जा रही है, इसकारण
कमरे में कार्बन डाय ऑक्साइड बनी रहती है। वातायन हैं भी तो पूरी तरह से अशुद्ध
हवा बाहर नहीं निकलती है।
घर बनाने में भी लकड़ी का प्रयोग
ज्यादा होता है और दीवारों को इस प्रकार बनाया जाता है कि घर सर्दी और गर्मी से
बचाव करते हैं। इसलिये यहाँ घर का तापमान समतापी बना रहता है। वैसे कूलिंग और
हीटिंग की व्यवस्था तो रहती ही है। यहाँ का तापमान अमूमन न्यूनतम 6 डिग्री बना हुआ
है लेकिन घर के अन्दर एक स्वेटर से काम चल जाता है। जबकि भारत में हम कुड़कते ही
रहते हैं। यहाँ जिस दिन बारिश होती है उस दिन सूरज देवता पूरा दिन ही नदारत रहते
हैं, बाहर कड़ाके की ठण्ड रहती है लेकिन घर के अन्दर गलन नहीं होती। लेकिन जिस दिन
सूरज देवता की कृपा होती है, उस दिन पूरी होती है। आराम से धूप खाओ, विटामीन डी का
संचय करो और मस्त रहो।
यहाँ पैदल घूमने वालों के लिये बहुत
आराम है, खूब ट्रेल बनी हुई हैं, जितना चाहो घूमो, मस्त। मैंने भी एक ट्रेल खोज ली
है, पहाड़ी पर है, चढ़ाई और उतार दोनों है। शान्ति से घूमने का आनन्द ले रही हूँ।
बामुश्किल दो-चार लोग मिलते हैं, चारों तरफ शान्ति बिखरी रहती है। अभी सर्दी का
मौसम है तो पेड़ों पर भी पत्तों ने रंग बदल लिये हैं। कुछ तो सदाबहारी है जो हमेशा
हरे बने रहते हैं जैसे हमारे यहाँ नीम, पीपल आदि लेकिन कुछ के पत्ते लाल, पीले हो
जाते हैं जो सुन्दर दृश्य बनाते हैं। जैसे हमारे गाँवों में जब पलाश और अमलताश
खिलता है तब चारों तरफ पलाश के लाल फूल खिल उठते हैं या अमलताश के पीले फूल।
उन्हें देखने का अपना आनन्द है, ऐसे ही यहाँ रंग बदलते पत्तों के देखने का आनन्द
है। बस झड़ते पत्तों के कारण सड़क से लगी पगडण्डी अटी पड़ी रहती हैं और सफाई
कर्मचारियों की मेहनत बढ़ जाती हैं। जब पत्ते बिखरे रहते हैं तो एकबारगी भारत की
याद दिला देते हैं। वहाँ हमें बुहारना पड़ता है और यहाँ सोसायटी के बन्दे बुहारते
रहते हैं। पतझड़ सूखी नहीं है अपितु रंगीन बन गयी है। इसे देखने के लिये लोग घर से
दूर निकल जाते हैं जहाँ रंग ज्यादा बिखरे हों।
2 comments:
अमरीका में मौजूद ट्रेल्स के विषय में मैंने काफी सुना है। अगर मुमकिन हो तो ट्रेल्स की फोटो जरूर लगाइयेगा। चिमनी का चलन अब भारत में भी बढ़ने लगा है। आपकी ये शृंखला काफी अच्छी जा रही है। आभार।
आभार विकास जी।
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