जिस के फटी ना पैर बिवाई, वो क्या जाने पीर
परायी। पुरुष-युवा मन की यौन कुण्ठा क्या है? भला मैं महिला होकर कैसे जान सकती हूँ? क्या यह प्यास से भी भयंकर
है? क्या यह भूख से भी अधिक मारक है? प्यास और भूख में तड़पता इंसान धीरे-धीरे
शक्तिहीन होता जाता है लेकिन यौन पीड़ा से तड़पता पुरुष मारक होता जाता है। वह
वहशी बनता जाता है और अपनी भूख समाप्त करने के लिये कुछ भी कर गुजरता है। ऐसा ही
कुछ अभी उदयपुर में हुआ। 22 साल का लड़का यौन-कुण्ठा में इतना वहशी हो गया कि दो
बच्चों की माँ को बेरहमी से खत्म कर दिया।
जैसे ही यौवन फूटने लगता है, मन के जज्बात
निकलने के लिये कितने ही मार्ग तलाश लेते हैं। कभी माँ का सहलाना काम आ जाता है तो
कभी घर की भाभी, चाची या अन्य रिश्तेदार का स्पर्श उसे राहत दे देता है। लेकिन जब
परिवार में कोई ना हो, पढ़ाई की दीवार चारों तरफ खेंच दी गयी हो तब लावा एकत्र
होने लगता है और कोई ना कोई विस्फोटक घटना को जन्म देता है। युवा या किशोर मन
अक्सर आसान शिकार की खोज करता है, वह घर की या आसपास की उस महिला को चुनता है जहाँ
महिला पर आरोप लगाना सरल हो। सामूहिक
परिवारों में यह समस्या रोज सामने रहती है, युवा मन की यौन कुण्ठा को निकलने का
कोई ना कोई मार्ग मिल ही जाता है लेकिन एकल परिवारों में पढ़ाई के बोझ
तले युवा कुण्ठा का शिकार हो जाते हैं।
उदयपुर की एक अघिवक्ता जो दो बच्चों की माँ थी,
अपने कॉम्पलेक्स में पति के साथ रह रही
थी, थोड़ी अनबन दोनों के मध्य थी। उसी कॉम्प्लेक्स में रहने वाला 22 वर्षीय युवक अपनी यौन कुण्ठा को लेकर
सुबह 9.30 पर ही महिला के घर जा पहुँचा। वहाँ उसने महिला की चोटी पकड़कर दीवार पर
सर पटक-पटक कर उसे मार दिया। इतनी भयंकर यौन कुण्ठा एक युवा को वहशी बना गयी और
पूरे समाज पर एक प्रश्नचिह्न लगा गयी कि हम किस दिशा में अपने बच्चों को ले जा रहे
हैं! अपने परिवार के युवाओं पर विचार कीजिये और उनकी यौन कुण्ठा निकालने के लिये
परिवार में सहज वातावरण बनाइये। स्वाभाविक प्रेम यौन कुण्ठा को पीछे धकलेता है,
खेलकूद शरीर की ऊर्जा को बाहर निकालता है। इसलिये युवक को घर घुस्सू मत बनाइये
अपितु उसे अपनी बात निकालने का मौका दीजिये। घर में जितना हो सके बाते कीजिये,
खुलकर हँसने की परम्परा बनाइये। चुप रहने से कुण्ठा का जन्म होता है और बोलने से
कुण्ठा पनप नहीं पाती।
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