हमारे पिताजी लिफाफे के सख्त खिलाफ थे। आप पूछेंगे की लिफाफे ने क्या बिगाड़ दिया? लिफाफे का तात्पर्य होता है गोपनीयता या छिपाकर कुछ करना। हम शादी में शगुन देते थे, सभी पंचों के समक्ष देते थे, लिखे भी जाते थे कि किसने क्या दिया? समाज जो नियम बनाता था उसी के अनुसार शगुन दिया जाता था, लेकिन फिर आया लिफाफे का चलन। लिफाफे में क्या है, पता ही नहीं! गुपचुप तरीके से समाज के नियम को तोड़ा गया। पिताजी तो शादी के निमंत्रण-पत्र को भी लिफाफे में नहीं रखने देते थे। मेरी शादी का कार्ड छपा, लेकिन लिफाफा नहीं, अब बड़ी शर्म लगे कि बिना लिफाफे के कार्ड अपने इष्ट-मित्रों को कैसे दें? सबसे बड़ी दुविधा तो थी कि अपने गुरुजनों को और सहकर्मियों को कैसे दें? अब रास्ता खोजा गया जैसे आज नोट-बदली में खोजा जा रहा है – पिताजी से कहा कि कार्ड तो दूसरे शहर भेजने हैं, लिफाफा तो लगेगा ही। इस बात को उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया और हमने लिफाफा लगा ही दिया।
नोट-बदली की जब बात आ रही है तब महिलाओं द्वारा छिपाये धन की भी बात आ रही है। प्रधानमंत्री जी के पास भी यह बात गयी और उन्होंने हमारे पिताजी ने जैसे लिफाफे में छूट दी थी वैसे ही महिलाओं को मोदीजी ने छूट दे दी। लेकिन छिपाकर धन रखने की बात घर में तो बाहर आ गयी और पता लग गया कि महिलाएं धन छिपाती हैं। मेरे जैसी महिला जो पिताजी के नियमों से बंधी थी तो छिपाने की बात तो सपने में भी नहीं सोची जा सकती थी इसलिये मेरे पास कोई छिपा धन था ही नहीं। हमने बड़े गर्व से कहा कि नो लिफाफा बाजी। लेकिन महिलाएं तो बदनाम हो गयीं पर पुरुषों का क्या? कल पतिदेव एक गड्डी लेकर आये कि यह बैंक में जमा करा देना। मैं आश्चर्य चकित की कहाँ से आया यह रूपया! वे बोले कि एक व्यक्ति को जरूरत थी तो लेकर गया था आज वापस दे गया। एक तरफ तो हरीश चन्द्र बने घूम रहे हैं पुरुष लोग कि हम तो सारा पैसा पत्नी को दे देते हैं और एक तरफ बड़ी-बड़ी रकम भी छिपाकर दे दी जाती है! भाइयों और बहिनों केवल महिलाओं को ही बदनाम मत करो, पुरुषों से भी पूछो कि कितना कहाँ छिपाया था? मुन्नी तो बदनाम हो गयी लेकिन मुन्ना भाई भी तो नकली MBBS बने घूम रहे हैं। कहीं डूब गयो हैं और कहीं पुराने वसूल रहे हैं।
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