Thursday, September 5, 2019

छिपे रुस्तम हो गुरु आप!


अहा! ये कॉपी-पेस्ट करने की छूट भी कितनों को ज्ञानी बना देती है! बिना शिक्षक के ही हम ज्ञानवान बनते जाते हैं, नहीं-नहीं, ज्ञानवान नहीं बनते अपितु दिखते ज्ञानवान जैसे ही हैं। लोग भ्रम में जीते हैं कि जो हम पढ़ रहे हैं, वह इसी ने लिखा है! विश्वास नहीं होता लेकिन रोज-रोज के ज्ञान से विश्वास होने लगता है। लेकिन कभी-कभी ऐसी मूर्खता उजागर हो जाती है कि हमारा विश्वास डोल जाता है, शक होने लगता है कि क्या यह विद्वान प्राणी वास्तव में विद्वान है! शीघ्र ही पोल खुलने लगती है लेकिन जब तक पोल खुले तब तक वह व्यक्ति कॉपी-पेस्ट में माहिर हो जाता है। उसे ब्रह्म ज्ञान  हो जाता है, नशा सा सवार हो जाता है और दोनों कानों में रूई ठूसकर निकल  पड़ता है कॉपी-पेस्ट करने। कई बार हम जैसे दुष्ट प्रवृत्ति के लोग टोक देते हैं कि क्या कर रहे हो, तो हमें अपने मार्ग से हटाते हुऐ उनका काम बदस्तूर जारी रहता है। धन्य है ये सोशल मीडिया, जो नये-नये ज्ञानी पैदा कर रही है!
विगत में लोगों ने बहुत लिखा, अपना-अपना ज्ञान लिपिबद्ध किया और फिर कोई ऐसा विद्वान आया कि उसने सारे लिखे को एक पुस्तक का रूप दे दिया। जिसे वेद कहा गया। न जाने कितने लोगों ने लिखा, कितने विषयों पर लिखा, सभी को एकत्रित कर विषयों के आधार  पर पुस्तकों में संकलित कर दिया। आज दुनिया के लिये ये ज्ञान अनमोल विरासत है। वर्तमान में भी कुछ ऐसे ही  प्रयोग हो  रहे हैं, कौन लिख रहा है, कौन उसे कॉपी कर रहा है,  फिर कौन उसे पेस्ट कर रहा है, कुछ  पता नहीं। ज्ञान को अज्ञान भी बनाया जा रहा है, अर्थ का अनर्थ भी किया जा रहा है, लेकिन सब चल रहा है। होड़ मची है, कॉपी-पेस्ट करने की। पुरुष महिला की खिल्ली उड़ा रहा है, महिला भी समझ नहीं पा रही, वह भी तुरन्त कॉपी करके पेस्ट कर रही है। अपनी खिल्ली खुद ही उड़ा रही है। पुरुष भी ऐसा ही कर रहा है। कई साल पहले सरदारों पर चुटकुले आते थे, सरदार भी सुनाते थे। लोग कहते हैं कि देखो कितने  बड़े दिल का आदमी है! ये  बड़े दिल के लोग नहीं हैं, मूर्ख हैं और विद्वान बनने की चाह रखते हैं। कुछ भी फोकट का मिल जाए, हम उसे उड़ा लेंगे और अपने खिलाफ ही प्रयोग कर डालेंगे, फिर कहेंगे की हमें मूर्ख कैसे कहा!
एक कहानी पढ़ी थी, एक बैंक के सामने एक सफाई कर्मचारी सफाई करते समय बोल देता है कि क्या बैंक दिवालिया हो गया है, जो अलग से सफाई कर्मचारी लगाए हैं! बात ही बात में बात बढ़ती जाती है और खबर शहर में पहुँच जाती है कि बैंक दिवालिया हो गया है। फिर क्या था, बैंक के बाहर लम्बी कतारें लग जाती हैं, पैसा निकालने वालों की और शाम तक वास्तव में बैंक दिवालिया हो जाता है। खबरों का कॉपी-पेस्ट होना ऐसा ही है। चुटकुला का भी ऐसा ही है और कहानियों का भी। कुछ शातिर लोग झूठा-सच्चा कुछ भी परोस रहे हैं और लोग दौड़ पड़ते हैं कॉपी-पेस्ट करने के लिये, बिना यह देखे कि यह कितना उचित है और कितना अनुचित! लेकिन लोगों को उचित और अनुचित का ज्ञान  हो जाए तो फिर दुनिया स्यानी ना बन जाए! फिर ढोंगी बाबा, पीर-फकीर के पास लम्बी कतारों में जाने से गुरेज ना करें हम! दुनिया ऐसे ही चलेगी, ज्ञान की दुकानें ऐसे  ही चलेंगी। लेकिन सच यह है कि हम ज्ञानी बनने के चक्कर में मुर्ख सिद्ध होने लगते हैं क्योंकि उधारी का ज्ञान हमें कभी भी ज्ञानी नहीं बना सकता। शिक्षक दिवस पर ऐसे ज्ञानियों को भी नमन, जो अज्ञान की तूती  बजा रहे हैं और खुश हो रहे हैं। चलो किसी बहाने से ही सही, खुशी का इण्डेक्स तो भारत में  बढ़ने की सम्भावना बढ़ ही रही है। आप सभी का वन्दन और जो आज नाराज या गुस्सा हो रहे हैं, मेरी पोस्ट को पढ़कर उससे क्षमा भी मांग लेगे जी,  हमारी क्षमावणी भी आने ही वाली है। हम तो फिर कहेंगे कि अजी आप तो छुपे रुस्तम हैं जी!

3 comments:

Pammi singh'tripti' said...
This comment has been removed by the author.
Pammi singh'tripti' said...


जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना 11 सितंबर 2019 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

अजित गुप्ता का कोना said...

पम्मी सिंह जी आभार।