हमारे राजस्थान का बाड़मेर क्षेत्र बेटियों के
लिये संवेदनशील नहीं रहा था, यहाँ रेगिस्तान में अनेक कहानियों ने जन्म लिया था।
बेटियों को पैदा होते ही मार दिया गया, या फिर ढोर-डंगर की तरह ही पाला गया। जैसे-तैसे
बड़े हो जाओ और शादी करके चूल्हे-चौके में घुस जाओ। ना कोई शिक्षा और ना ही कोई
ज्ञान। रेगिस्तान का जीवन दुरूह था तो नाजुक जीवों के लिये संघर्ष कठिन था, इसलिये
ये घर की चारदीवारी में ही रहीं और पुरुष बाहर संघर्ष करता रहा। लेकिन आज परिस्थिति
बदल गयी है। महिला ने संघर्ष करना सीख लिया है और वे भी शान से अपना वजूद लिये
खड़ी हैं। एक ऐसी ही महिला की कहानी अभी केबीसी में देखने को मिली – रूमा देवी की
कहानी। चार जमात पढ़कर, 17 साल की उम्र में विवाह करके बाड़मेर में घूंघट की आड़
में जीवन काट रही थी लेकिन उसके आत्मविश्वास ने कहा कि मुझे कुछ करना है और आज
फैशन जगत का चमकदार सितारा बनकर खड़ी है और अपने साथ 22 हजार महिलाओं के जीवन को
भी रोशन कर दिया है।
20 सितम्बर को केबीसी में जो हुआ उसे दुनिया ने
देखा। रूमा देवी कम पढ़ी-लिखी थी, उसके जीवन में ज्ञान नहीं था। रेगिस्तान में
बेटियां जैसे बड़ी होती हैं, वैसे ही वह भी बड़ी हुई थी अर्थात शिक्षा और अल्प
ज्ञान के साथ। बस दादी का सिखाया हुनर हाथ में था – कसीदाकारी। कसीदाकारी को आधार
बनाकर उसने कार्यक्षेत्र में प्रवेश किया और संघर्षों के बाद सफलता अर्जित की।
केबीसी में जाने का अवसर मिला लेकिन आवश्यक ज्ञान नहीं था। केबीसी ने उनके सहयोग
के लिये एक सेलिब्रिटी को चुना जो ज्ञानवान भी हो। लेकिन बस यहीं पोल खुल गयी,
हमारे फिल्मी सेलिब्रिटी की। खूब आलोचना हुई की रामायण के सम्बन्धित सरल सा प्रश्न
भी उसे नहीं आया! प्रश्न यह नहीं है कि उत्तर क्यों नहीं आया, प्रश्न यह है कि
रूमा देवी और सोनाक्षी सिन्हा में अन्तर क्या है? एक के पास हुनर था, शिक्षा नहीं
थी और ज्ञान भी नहीं था लेकिन कठिन
परिस्थितियों में भी जीवन की राह
बना ली, मतलब बुद्धिमत्ता के कारण यह सम्भव हुआ।
सोनाक्षी सिन्हा को शिक्षा भी मिली, ज्ञान भी
मिला और दुनिया को देखने समझने का व्यावहारिक अवसर भी मिला। आम जनता ने और यहाँ तक
की सोनी टीवी ने भी उन्हे ज्ञानवान मानकर रूमा देवी का सहयोगी बना दिया। लेकिन
पहले प्रश्न से लेकर अन्तिम प्रश्न तक सोनाक्षी बगलें ही झांकती रही। ज्ञान-शून्य
सोनाक्षी। केवल पिता के नाम के सहारे से फिल्म जगत में नाम बनाने वाली सोनाक्षी
क्या रूमा देवी की पासंग भी हैं? रूमा देवी को भी रामायण से सम्बन्धित प्रश्न आना
ही चाहिये था लेकिन जैसे मैंने कहा कि बाड़मेर जैसे रेगिस्तानी ईलाकों में बेटियों
को भी ढोर-डंगर की तरह ही पाला जाता था। रूमा देवी सुन नहीं पायी रामायण और ना ही
दुनिया का ज्ञान ले पायी। सोनाक्षी ने तो दुनिया देखी है फिर इतनी ज्ञान-शून्यता?
देश बदल रहा है, कल तक जो मापदण्ड थे वे भरभरा कर
बिखर गये हैं। 5 साल पहले मोदी जी अमेरिका जाते हैं, टीवी एंकर जनता से पूछ रहे
हैं कि आप मोदी को कैसे देखते हैं? क्या वे शाहरूख से भी ज्यादा लोकप्रिय हैं? जनता
एंकर की मट्टी पलीद कर देती है। आज भी मोदी अमेरिका में हैं और उनकी सभा में
ट्रम्प तक बैठे रहेंगे। यह है परिवर्तन! देश में अभिनेताओं को, खिलाड़ियों को
भगवान बना दिया गया था! वे ज्ञान शून्य थे लेकिन सुनहरी पर्दे पर दिखने के कारण वे सर्वस्व बने हुए थे।
चुनावों में तो यह स्थिति थी कि किसी भी टुच्चे से अभिनेता या खिलाड़ी को खड़ा कर
दो, सामने कितना ही विद्वान राजनेता हो, जनता उसे हरा देगी! लेकिन अब स्थिति बदल
गयी है। इस बार भी चुनाव में कई अभिनेता
और कई खिलाड़ी जीते हैं लेकिन उनका महिमा मंडन अब नहीं हो रहा है। वे चुपचाप संसद
आते हैं और काम करते हैं। धीरे-धीरे चुनाव जीतना उनकी योग्यता पर निर्भर करेगा।
इसलिये बात इतनी सी है कि ये ग्लेमर के मारे लोग
केवल कागजी फूल हैं, इनमें खुशबू मत ढूंढिये। इनकी योग्यता को देखकर ही इनकी मूल्यांकन
कीजिये। कल की घटना से सोनी टीवी और अन्य टीवी भी समझ गये होंगे कि इनकी बुद्धि का पैमाना क्या है और
इनकों कितना सम्मान देना है! हम भी इस बात
को समझे कि इनकी चकाचौंध से खुद को बचाएं और वास्तविक ज्ञान को महत्व दें। काश रूमा देवी का सहयोगी किसी शिक्षिका को
ही बना दिया होता! ऐसी फजीहत तो नहीं होती! लेकिन जो हुआ अच्छा ही हुआ, देश को पता
लगा कि ये सेलिब्रिटी कितने ज्ञान शून्य होते हैं।
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