कहावत है कि "डूबते को तिनके का सहारा",
जीवन का भी यही सच है। हम दुनिया जहान का काम करते हैं लेकिन जीवन में तिनका भर सहारे
से हम तिरते जाते हैं, तिरते जाते हैं। हमारे सामने यदि तिनके जितना भी सहारा नहीं
होता तो हम बिखरने लगते हैं, इसलिये डूब से बचने के लिये और जिन्दगी में सुगमता से
तैरने के लिये तिनके भर का ही सहारा चाहिये।
आप भी किसी का सहारा बनकर देखिये, बस तिनके जितना
ही। हम शाम को फतेहसागर पर घूमने जाते हैं, कई बार अकेले होते हैं, पैर बोझिल होने लगते हैं तभी सामने से कोई हाथ हमें देखकर
हिल जाता है और लगता है कि नहीं, हम अकेले नहीं हैं। पैरों में स्फूर्ति आ जाती
है, लगता है हम किसी के साथ चल रहे हैं। यह केवल मात्र तिनके का सहारा ही होता है जो
हमारा मन बदल देता है।
घर में भी यही होता है, कोई आकर पूछ लेता है कि
मैं कुछ मदद करूँ तो मन और हाथ दौड़ने लगते हैं और जब लगता है कि कोई आवाज नहीं,
कोई शब्द नहीं तो खामोशी में डूबने जैसा मन होने लगता है। जिन्दगी बोझिल सी हो
जाती है। हम चारों तरफ तिनका ढूंढने लगते हैं।
मन बहुत विचित्र है, कब खुश हो जाता है और कब
दुखी, कुछ कहा नहीं जाता। बस साथ चाहता है, तिनके भर का साथ चाहता है। तिनका भर
साथ तो खुश हो जाता है और तिनके का सहारा नहीं तो दुखी हो जाता है।
आजकल मैं भी तिनके का सहारा ढूंढ रही हूँ, बस
तिनके जितना सहारा। यह तिनका ही लिखना सिखाता है, यह तिनका ही मन को बाहर निकालता
है और यह तिनका ही कहता है कि अभी हम भी हैं। बस कोशिश करो कि घर में या बाहर
तिनका जितना सहारा बनने की शुरूआत होगी। पता नहीं हम कितने लोगों के जीवन में
खुशियाँ ला सकते हैं, बस प्रयास जरूर करें।
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