मेरा पैसा तेरे पास कैसे पहुँचे और लगातार
पहुँचता ही रहे, इस चाल को कहते हैं आर्थिक आवागमन। जैसे ही मेरा पैसा मैंने अपने
पास रोक लिया तो कहते हैं कि मंदी आ गयी,
मंदी आ गयी। जयपुर में एक बड़ा बाँध हुआ करता था – रामगढ़। सारे जयपुर की जीवनरेखा।
जब रामगढ़ भरता था तो सारा जयपुर देखने को उलटता था कि हमारी जीवनरेखा लबालब है
लेकिन कुछ साल पहले क्या हुआ कि गाँव-गाँव में एनीकट बनने लगे और गाँव का पानी
रामगढ़ तक नहीं पहुँचा, परिणाम रामगढ़ सूख गया। रामगढ़ के रास्ते में न जाने कितने
अवरोध खड़े हो गये। ऐसे ही देश में मंदी-मंदी का राग शुरू हुआ है। आर्थिक बातें तो
मेरे वैसे ही पल्ले नहीं पड़ती तो जब से आर्थिक मंदी का राग अलापा जा रहा है, मेरे
तो समझ नहीं आ रहा कि यह होता क्या है! मैं सीनियर सिटिजन हो गयी हूँ, मुझे लगता है
कि बाजार से कुछ भी खरीदने की अब जरूरत नहीं है, जो है उसे ही समाप्त कर लें तो
बड़ी बात है। मेरा बाजार जाना बन्द क्या हुआ, देश में मन्दी आगयी! मेरे गाँव में एनीकट
से पानी क्या रोक लिया कि रामगढ़ सूख गया!
मेरा पैसा बड़े साहूकारों के पास जाए तो मंदी नहीं लेकिन मेरा पैसा मेरे पास ही
रहे तो मंदी हो गयी! यह कैसा गणित है! क्या देश का पैसा कम हो गया जैसे पाकिस्तान
का हो गया है? हमारा विदेशी मुद्रा भण्डार लगातार बढ़ रहा है तो मंदी कहाँ से आ
गयी?
मैं फिर कह रही हूँ कि मुझे पैसे की बात का ज्ञान
नहीं है और मेरे जैसे करोड़ों को नहीं है लेकिन इतना जानते हैं कि हमारा पैसा कम
नहीं हुआ है और ना ही हम बाजार खरीदने की
शक्ति भी गवाँ बैठे हैं! हमारा देश मितव्ययी देश है, अनावश्यक खरीदारी नहीं करता
है। युवा पीढ़ी जब कमाने योग्य होती है तब उसे खरीदारी का चश्का लगता है लेकिन कुछ
दिन बाद वे भी मितव्ययी ही हो जाते हैं। रोज-रोज गाडियाँ बदलने का शौक हमारे देश
में नहीं है। देश अपनी रफ्तार से चल रहा है लेकिन कुछ लोग चिल्ला रहे हैं कि मंदी
से चल रहा है! आज गणेश चतुर्थी है, देखना कैसे दौड़ लगाएंगे लोग! कितने गणेश पण्डालों
में कितना दान एकत्र होता है! तब आंकना मंदी को!
त्योहार मनाने में कहीं भी कृपणता दिखायी दे तो
मानना मंदी है। बड़े दुकानदारों के पास कितनी भीड़ आयी और कितनी नहीं आयी, इससे आकलन
मत करिये। भारत में चार मास चौमासा रहता है, इस काल में लोग शान्त रहते हैं। शुभ कार्य
भी कम होते हैं। जैसे ही चौमासा गया फिर देखना बाजारों की रौनक। आज तो गणेश जी की
स्थापना हुई है, मंगल कार्य शुरू होंगे। बाजार भी भरेगा और खूब भरेगा। यह भारत का
बाजार है, विदेशी आँख से देखने की कोशिश करोंगे तो कुछ नहीं समझ सकोगे। भारत की
नजर से देखो और शान्ति से रहो। हाहाकार मचाने से मन्दी दूर नहीं होगी और ना ही कुछ
अन्तर आने वाला है। अभी धैर्य रखो, पाँच साल में न जाने कितने पापड़ बेलने पड़ेंगे
फिर भी कुछ हाथ नहीं आने वाला। तुम्हारा सामना मोदी से हुआ है, तुम मंदी का डर
दिखा दो या तेजी का कुछ असर नहीं पड़ने वाला। तुम तो आज गणेशजी का आगमन करो और फिर
दीवाली देखना, तुम्हें पता चल जाएगा कि देश कितना खुश है।
यह देश कभी भी मंदी का शिकार हो ही नहीं सकता
क्योंकि हम मितव्ययी है, जरूरत होने पर ही बाजार जाते हैं। त्यागी भी हैं, क्योंकि
एक उम्र होने के बाद हम त्याग पर ध्यान देते हैं। युवा पीढ़ी को भी हम संयम का पाठ
पढ़ाते हैं तो यह देश कभी आर्थिक तंगी या मंदी का शिकार नहीं हो सकता। हम
पाकिस्तान जैसे देश नहीं है जो किसी का विनाश करने के लिये खुद को ही कंगाल बना
डालें। हम खुद भी उन्नत होते रहते हैं और दूसरों को भी उन्नत होने की कामना ही
करते हैं। इसलिये देशवासियों खुश रहो। ये जो लोग हैं मंदी का रोना रोकर खुद की
तंगी दूर कर रहे हैं, इससे ज्यादा कुछ नहीं है। मस्त रहो, गणेश जी का वंदन करो और
ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त करो।
5 comments:
वाह बेहतरीन रचनाओं का संगम।एक से बढ़कर एक प्रस्तुति।
बेखयाली में भी तेरा ही ख्याल आये क्यूँ बिछड़ना है ज़रूरी ये सवाल आये
हर हाल में हंसी ख़ुशी से रहना जिनकी आदत में हो, वे मंदी क्या है यह बात जानकार क्या करेंगे
बहुत सही
सागर भाई आभार।
कविता जी आभार।
शास्त्रीजी आभार।
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