फतेहसागर की पाल पर खड़े होकर आकाश में विचरते पक्षियों का कलरव सुनने का आनन्द अनूठा है, झुण्ड के झुण्ड पक्षी आते हैं और रात्रि विश्राम के स्थान पर चले जाते हैं। कल मैंने ध्यान से देखा, तोते ही तोते थे, हजारों की संख्या में तोते स्वतंत्र होकर उड़ रहे थे। हम तो सुनते आए थे कि तोता स्वतंत्र नहीं है! शायद अभी चुनाव के चलते तोते स्वतंत्र हो गये हैं। खैर गाड़ी उठायी और अपन भी चल दिये घर की ओर। रास्ते में पुलिसियाँ तोतों का झुण्ड, सड़क घेरकर खड़ा था। सघन तलाशी ली जा रही थी। मैंने पूछ लिया कि माजरा क्या है? पता लगा कि चुनाव है। चुनाव है तो तोते स्वतंत्र हैं, अपनी मर्जी और अपनी ताकत दिखा रहे हैं। अब तोतों की मर्जी चलेगी, गाडी की डिक्की खोलो, हुकम आया। कहीं नोटों की गड्डियाँ तो इधर-उधर नहीं हो रही है! मन ही मन विचार आया कि यदि देश में इतने तोते हैं तो यह जाते कहाँ हैं! रोज तो दिखायी नहीं देते, चुनाव के समय कैसे झुण्ड के झुण्ड दिखायी दे रहे हैं! आकाश में भी हजारों दौड़ रहे हैं और धरती पर भी! घर के नजदीक आ गये, वहाँ भी देखा तोतों ने पकड़-धकड़ मचायी हुई है। शायद यही मौका है, पैसा कमाने का। आदमी को स्वतंत्र छोड़ दो, पैसा कमा ही लेगा, पक्षी को भी स्वतंत्र छोड़ दो, पेट भर ही लेगा।
चुनाव भी क्या अजीब खेल है! भगवान को एक तरफ बिठा दिया जाता है, बस सारे मंत्री और संतरी ही न्याय करते हैं। भगवानों की ऐसी की तैसी करने के लिये चुनाव कारगर सिद्ध होते हैं। कल तक यस सर कहने वाला नौकरशाह, सर को उठाकर कोठरी में बन्द कर देता है, जैसे ही चुनाव खत्म, फिर से यस सर! चुनाव नहीं हुए मानो पतझड़ आ गयी, सारे पत्ते झड़कर ही दम लेंगे, सबको कचरे में जाना ही है। कल तक जो पेड़ पर राज करते थे आज जमीन पर पड़े हुए धूल खा रहे होते हैं। तोते भी पेड़ों से चुन-चुनकर इन पत्तों को नीचे धकेलते रहते हैं। मैंने आकाश में उड़ते तोते से पूछ लिया कि भाई लोगों कल तक कहाँ थे? आज अचानक ही कहाँ से अवतरित हो गए? उन्होंने अपनी गोल-गोल आँखे मटकायी और कहाँ कि बताएं क्या कि कहाँ थे? तुम्हें भी वहीं सीखचों के पीछे धकेल दें? तोबा-तोबा, नहीं पूछना जी। तुम्हारा खेल दो महिने का है फिर तुम्हें पिंजरे में ही रहना है, दिखा दो अपनी ताकत। लेकिन अभी तो आकाश में दौड़ लगाते, अपना वजूद तलाशते तोते आजादी से घूम रहे हैं, अच्छा लग रहा है।
धरती के भगवान नेतागण भी घूम-घूमकर अपनी प्रजा को घेरे में ले रहे हैं, कहीँ कोई दूसरे पाले में नहीं चले जाएं! देव और असुरों का संग्राम जारी है, बस यही बात समझ नहीं आ रही है कि देव कौन हैं और असुर कौन हैं? चारों तरफ से बाण ही बाण चल रहे हैं। कुछ लोग काम तो असुरों जैसा करते हैं लेकिन चुनाव की इस घड़ी में खुद को देवता बताते हैं। कल तक खुलकर गौ-माता को सरेआम काटकर खा रहे थे, आज तिलक लगाकर मन्दिरों में ढोक लगा रहे हैं! मतलब कि कोई भी असुर दिखना नहीं चाहता है! कभी-कभी लगता है कि चित्तौड़ में लाखों लोगों का कत्ल करने वाला अकबर तिलक लगाकर प्रजा के सम्मुख हाथ जोड़कर खड़ा है। हम सब जय-जयकार कर रहे हैं। अकबर महान है का जयघोष कर रहे हैं। कश्मीर में कंकर फेंकने की पवित्र रस्म जारी है और इस कंकर से घायल हुए फौजी को खदेड़ने की मुहिम भी जारी है। हम वहाँ भी जय-जयकार कर रहे हैं। लेकिन देव भी डटे हुए हैं, वे सतयुग की कल्पना को रूप देने में जुटे हैं। बस देखते रहिये कि देव जीतते हैं या असुर। तोतों का राजपाट भी देख लेते हैं, इनकी आकाश में उड़ान भी देख लेते हैं। तोतों का तो यह हाल है कि लोग कहने लगे हैं कि बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी! लेकिन अभी तो तोते की आजादी आनन्द दे रही है।
चुनाव भी क्या अजीब खेल है! भगवान को एक तरफ बिठा दिया जाता है, बस सारे मंत्री और संतरी ही न्याय करते हैं। भगवानों की ऐसी की तैसी करने के लिये चुनाव कारगर सिद्ध होते हैं। कल तक यस सर कहने वाला नौकरशाह, सर को उठाकर कोठरी में बन्द कर देता है, जैसे ही चुनाव खत्म, फिर से यस सर! चुनाव नहीं हुए मानो पतझड़ आ गयी, सारे पत्ते झड़कर ही दम लेंगे, सबको कचरे में जाना ही है। कल तक जो पेड़ पर राज करते थे आज जमीन पर पड़े हुए धूल खा रहे होते हैं। तोते भी पेड़ों से चुन-चुनकर इन पत्तों को नीचे धकेलते रहते हैं। मैंने आकाश में उड़ते तोते से पूछ लिया कि भाई लोगों कल तक कहाँ थे? आज अचानक ही कहाँ से अवतरित हो गए? उन्होंने अपनी गोल-गोल आँखे मटकायी और कहाँ कि बताएं क्या कि कहाँ थे? तुम्हें भी वहीं सीखचों के पीछे धकेल दें? तोबा-तोबा, नहीं पूछना जी। तुम्हारा खेल दो महिने का है फिर तुम्हें पिंजरे में ही रहना है, दिखा दो अपनी ताकत। लेकिन अभी तो आकाश में दौड़ लगाते, अपना वजूद तलाशते तोते आजादी से घूम रहे हैं, अच्छा लग रहा है।
धरती के भगवान नेतागण भी घूम-घूमकर अपनी प्रजा को घेरे में ले रहे हैं, कहीँ कोई दूसरे पाले में नहीं चले जाएं! देव और असुरों का संग्राम जारी है, बस यही बात समझ नहीं आ रही है कि देव कौन हैं और असुर कौन हैं? चारों तरफ से बाण ही बाण चल रहे हैं। कुछ लोग काम तो असुरों जैसा करते हैं लेकिन चुनाव की इस घड़ी में खुद को देवता बताते हैं। कल तक खुलकर गौ-माता को सरेआम काटकर खा रहे थे, आज तिलक लगाकर मन्दिरों में ढोक लगा रहे हैं! मतलब कि कोई भी असुर दिखना नहीं चाहता है! कभी-कभी लगता है कि चित्तौड़ में लाखों लोगों का कत्ल करने वाला अकबर तिलक लगाकर प्रजा के सम्मुख हाथ जोड़कर खड़ा है। हम सब जय-जयकार कर रहे हैं। अकबर महान है का जयघोष कर रहे हैं। कश्मीर में कंकर फेंकने की पवित्र रस्म जारी है और इस कंकर से घायल हुए फौजी को खदेड़ने की मुहिम भी जारी है। हम वहाँ भी जय-जयकार कर रहे हैं। लेकिन देव भी डटे हुए हैं, वे सतयुग की कल्पना को रूप देने में जुटे हैं। बस देखते रहिये कि देव जीतते हैं या असुर। तोतों का राजपाट भी देख लेते हैं, इनकी आकाश में उड़ान भी देख लेते हैं। तोतों का तो यह हाल है कि लोग कहने लगे हैं कि बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी! लेकिन अभी तो तोते की आजादी आनन्द दे रही है।
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