फिल्म 102 नॉट ऑउट का एक डायलॉग – चन्द्रिका को
तो एलजाइमर था इसलिये वह सारे परिवार को भूल गयी लेकिन उसका बेटा अमोल बिना अलजाइमर
के ही सभी को भूल गया!
मोदी को अलजाइमर नहीं है, वे अपने नाम के साथ
अपने पिता का नाम भी लगाते हैं, राजीव गांधी को भी अलजाइमर नहीं था, फिर वे अपने
पिता का नाम अपने साथ क्यों नहीं लगाते थे? राहुल गाँधी अपनी दादी का नाम खूब
भुनाते हैं लेकिन दादा का नाम कभी भूले से भी नहीं लेते!
यह देश लोकतंत्र की ओर जैसे ही बढ़ने लगता है, वैसे
ही इसे राजतंत्र की ओर मोड़ने का प्रयास किया जाता है। बाप-दादों के नाम का हवाला
दिया जाता है, देख मेरे बाप का नाम यह था, बता तेरे बाप का नाम क्या था? ऐसे
प्रश्न किये जाते हैं। लेकिन प्रश्न करने वाले कभी खुद ही उलझ जाते हैं, बाप का
नाम तो है, नाम प्रसिद्ध भी है लेकिन लेने पर खानदान की पोल खुलती है तो नहीं
लेते। कहावत है ना कि दूसरों की तरफ एक अंगुली करने पर चार अपनी तरफ ही उठ जाती
हैं। तुम्हारा नामधारी बाप भी तुम्हें चुप रहने पर मजबूर करता है और किसी का
अनजाना सा बाप का नाम भी गौरव बढ़ा देता है कि देखो इस बाप ने कैसे संस्कार दिये
कि बेटा कहाँ से कहाँ पहुंच गया! जिस बेटे को अपने बाप का नाम बताने में डर सताने
लगे, जिसे उधार का उपनाम लेना पड़े, समझो वह लोगों की आँखों में धूल झोंक रहा है।
जिस दिन इस खानदान का मकसद पूरा होगा, उस दिन ये सारे ही खानदान के नामों और
उपनामों के साथ खड़े होंगे।
इन्दिराजी ने आपातकाल में एक काल-पात्र जमीन में
गाड़ा था, मंशा यह थी कि जब कभी इतिहास को जमीन के नीचे से खोदा जाएगा तब हमारे खानदान
को स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा। लेकिन उनकी यह मंशा पूरी नहीं हुई और कालपात्र
को जमीन से निकाल लिया गया। ऐसे ही इस खानदान की यह मंशा भी पूरी नहीं होगी कि आज
तो नाम राहुल गाँधी है लेकिन जब हिन्दुस्थान को पाकिस्तान में तब्दील करने में सफल
होंगे तब नाम कुछ और हो जाएगा। तब गाँधी नहीं रहेगा, तब राहुल भी नहीं रहेगा। तब
इन्दिरा का परिवर्तित नाम फिरोज खान के साथ शान से लिया जाएगा।
यह बाप के नाम का खेल एक सम्प्रदाय विशेष को
बताने के लिये ही है कि हमारा नेता तुम्हारे खानदान से ही है, इसलिये हम कैसा भी
स्वांग भरेंगे लेकिन वास्तव में हम तुम्हीं में से हैं, यह भूलना नहीं। हमें कभी
भी एलजाइमर नहीं होगा। हम उसी बेटे की तरह हैं जो अपने स्वार्थ के लिये बिना
एलजाइमर के भी पूरे परिवार को भूल जाता है लेकिन अपना स्वार्थ नहीं भूलता है। इसलिये
उस फिल्म की तरह ही अपने बेटों को सिखाओ की जो अपने खानदान को भूल जाए, उसे लात
मारना ही अच्छा है, ऐसी आशा से निराशा ही अच्छी है। वे खुद को खानदानी बताना चाह
रहे हैं और दूसरों को बे-खानदानी। इसी खानदान में वे अपना भविष्य ढूंढ रहे हैं।
सावधान रहना देश वालों, ये हमारे ही लोगों के हाथों में खानदान की तलवार देकर हमें
ही मारना चाहते हैं। देश लोकतंत्र को मजबूत करने में लगा है और ये राजतंत्र का पाठ
पढ़ा रहे हैं, इनकी बातों के रहस्य को समझ लेना और अपने देश के लोकतंत्र की रक्षा
करना। इन्दिरा जी का कालपात्र तो जनता सरकार ने खोदकर बाहर फेंक दिया था लेकिन
इनके खानदानी कालपात्र को भी नेस्तनाबूद करने का समय है।
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4 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (27-11-2018) को "जिन्दगी जिन्दगी पे भारी है" (चर्चा अंक-3168) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 28 नवंबर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन हिन्दी में हालावाद के प्रणेता को श्रद्धांजलि अर्पित करती ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
पम्मी जी और सेंगर जी का आभार।
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