ऐसी कई कहावतें हैं जिनके प्रयोग पर मुझे हमेशा
से आपत्ति रही है, उनमें से एक है – निन्दक नियरे राखिये, आंगन कुटी छवाय। बिन
पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय। विद्वान कहने लगे हैं कि अपने निन्दक को अपने
पास रखो, उसके लिये आंगन में कुटी बना दो। लेकिन मैं कहती हूँ कि अपने निन्दक को
नहीं जो अपने दुश्मन की निंदा कर सके, उसे अपने पास रखो। एक गाँव में एक संन्यासी
बहुत अच्छा काम कर रहा था, उस गाँव के जमींदार का बड़ा नुक्सान हो रहा था। उसे समझ
नहीं आ रहा था कि इस संन्यासी का तोड़ क्या निकालूं, तभी उसे यह कहावत याद आयी और
उसने तत्काल गाँव के सबसे खतरनाक निन्दक को बुलाया। निन्दक ने एक उपाय बताया और
दूसरे दिन ही आश्चर्य हो गया, गाँव वाले संन्यासी पर पत्थर फेंक रहे थे। निन्दक ने
कुछ नहीं किया बस रात को एक महिला को संन्यासी की कुटिया के पास से निकाल दिया और
गाँव वालों को चतुरता से दिखा दिया। चुनाव हो रहे हैं, अब निन्दक की भरपूर मांग
रहेगी, सारे ही सज्ज हो जाओ। ताश के बावन पत्ते से तो नेताजी खेल खेलेंगे लेकिन
आपको पपलू से विरोधी को मात देनी है।
कांग्रेसी इस कहावत को समझे बैठे हैं लेकिन अभी
तक गदाधारी भीम रूपी भाजपा को यह थ्योरी समझ नहीं आती है, हमारे उदयपुर में गुलाब
जी भाईसाहब सीधी कार्यवाही में विश्वास रखते हैं जबकि गिरिजा जी की तरफ से निन्दा
के बाण पहले दिन ही चल गये। अब तो सीपी जोशी ने भी खुद को केन्द्र का प्रतिनिधि
मानते हुए केन्द्र पर बाण छोड़ दिया है। गिरिजा जी मानसिक चिकित्सा की सलाह दे रही
हैं तो सीपी जोशी छोटी जात और बड़ी जात का प्रश्न उठाकर खुद को सर्वोच्च जाति का
बताने में देर नहीं कर रहे हैं। इन दोनों के बाण कहाँ जाकर लगें हैं इसका अभी पता
नहीं चला है लेकिन दूसरी तरफ से उछल-कूद हो रही है कि हम शिकायत करेंगे। कह रहे थे
कि निन्दक को पास रखो, तब तो सुनी नहीं, अब शिकायत से क्या होगा? हम तो अब भी कह
रहे हैं कि देर नहीं हुई है, अपने लोगों को ही मना लो। ये अभी तक तुम्हारी ही
लपेटने में लगे थे, कुछ अण्टी ढीली करो और उन्हें अपने आंगन में जगह दे दो। कई
अचूक बाणबाज हैं तुम्हारे आसपास भी, उन्हें जरा सम्मान दो और फिर देखों उनके तरकस
से कैसे तीर निकलते हैं? हम भी आप लोगों की मदद कर सकते थे लेकिन हम तो फेसबुक के
आंगन में कुटिया छानकर बैठ गये हैं। संजय की भूमिका में आ गये हैं।
तुम देखते रहियो, गिरिजाजी मुख्यमंत्री बनेंगी,
आखिर इतने दिन उदयपुर की जगह दिल्ली में डेरा डाले ऐसे ही पड़ी थीं! तुम लोग
महिलाओं को हमेशा कम आंकते हो, तुमने प्रतिभा पाटिल को भी कम आंका था। राजस्थान की
राज्यपाल थी और तुम उनकी परवाह नहीं करते थे, वे एक ही झटके में राष्ट्रपति बन
गयी। लो कर लो बात। देखना गिरिजा जी भी मुख्यमंत्री बनेंगी। जोशीजी की उच्च जाति
का बयान उन्हें ही घेर लेगा, गहलोत को तो पायलेट ने चक्करघन्नी पहले ही बना रखा
है। पायलेट को तो बाहरी आसानी से बता देंगे, मैदान गिरिजाजी के लिये खाली है ना!
चेत जाओ, गुलाबजी! कहीं ऐसा ना हो कि बूढ़ी शेरनी आपको मात दे जाए? आपके लोगों को
आगाह करो कि निकलो अपनी मांद से और अपनी मुख्यमंत्री को नहीं दूसरे दल की
मुख्यमंत्री के लिये शब्द-बाण चलाएं। अपनी को तो बाद में भी देख लेना, अभी तो दूसरी
का मामला है। सावधान पार्थ! सर संधान करो।
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2 comments:
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 23/11/2018 की बुलेटिन, " टूथपेस्ट, गैस सिलेंडर और हम भारतीय “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
शिवम् मिश्रा जी और शास्त्रीजी का आभार।
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