कल एक और फैसला आया लेकिन पुरुषों ने इसपर ज्यादा तूफान नहीं मचाया। क्यों नहीं मचाया? क्योंकि इन्हें लगा कि यह मामला केवल सबरीमाला मन्दिर में महिलाओं के प्रवेश का है तो हमें क्या? लेकिन यह मामला केवल मन्दिर में प्रवेश का नहीं है। यह मामला है महिला की पवित्रता का। ना जाने कब से हमने महिला को अपवित्र घोषित कर दिया था! महिला भी स्वयं को अपवित्र मानने लगी थी और उसकी अपवित्रता का कारण था मासिक धर्म। स्त्री बनने की प्रक्रिया है मासिक धर्म और माँ बनने की प्रक्रिया है प्रसव क्रिया, जैसे पुरुष बनने की प्रक्रिया है, दाढ़ी-मूंछ और शुक्र-उत्पत्ति। यह प्राकृतिक क्रियाएं हैं, इसीकारण इसे मासिक धर्म कहा गया। लेकिन हमने इसे अपवित्रता का बहुत बड़ा कारण मान लिया और ना जाने कितने मानसिक रोगों को जन्म दे दिया। हम जैसी करोड़ो महिलाओं ने इस यंत्रणा को भोगा है, जब हमें रसोई में प्रवेश नहीं मिलता था, यहाँ तक की हम एक अछूत बिमारी से ग्रस्त रोगी की तरह अछूत बना दिये जाते थे। आज भी करोड़ों महिलाएं इस यंत्रणा से गुजर रही हैं। जब घर में ही हम अछूत बना दिये गये तब मन्दिर तो सबसे अधिक पवित्र स्थान होता है, भला वहाँ कैसे महिला का प्रवेश सम्भव था! बस इसी अपवित्रता के कारण महिला को 10 वर्ष की आयु से 50 वर्ष तक के लिये प्रतिबन्धित कर दिया गया। सबरीमाला में कानूनन प्रतिबन्ध लगा इसलिये कुछ लोग कानून की शरण में गये लेकिन सम्पूर्ण समाज में अघोषित प्रतिबन्ध के कारण महिला अपवित्र बना दी गयी, उसपर विचार नहीं हुआ।
अब महिला को जागरूक होना होगा, स्वयं को अपवित्र मानकर किसी भी प्रतिबन्ध के दायरे से निकलना होगा। शरीर की स्वाभाविक प्रक्रिया को अपवित्र नहीं माना जा सकता है, यदि ऐसा है तो फिर हर व्यक्ति अपवित्र है और महिला से भी ज्यादा अपवित्र है। हम मल-मूत्र का त्याग करते हैं, हमारे शरीर में हमेशा ये रहते हैं तो हम भी अपवित्र हो गये! शास्त्रों में तो दाढ़ी-मूंछ को भी मल कहा है तो ये भी अपवित्र हो गये! शरीर से बाहर निकलने वाले हर पदार्थ को मल कहा गया है तो सारे ही मलीन हो गये फिर अकेली महिला ही अपवित्र क्यों कहलाए? जब शरीर में स्त्रीत्व और मातृत्व के कारण रक्त का प्रवाह होता है तब शरीर में कुछ वेदना भी होती है और शरीर के कोष निर्माण के लिये स्त्री को आराम की आवश्यकता होती है। उसे उन दिनों में सम्मान के साथ विश्राम की जरूरत है ना कि अपमान के साथ अछूत बनाने की। महिलाओं में जितने भी मानसित अवसाद के कारण हैं उनमें से यह अछूत का भाव प्रमुख है। इसलिये समाज परिवर्तन के लिये यदि न्यायालय आगे आता है तो उसका स्वागत करना चाहिये ना कि विरोध प्रगट करना चाहिये। मैं इस फैसले का स्वागत करती हूँ और मानती हूँ कि अब महिला को कोई भी नरक का द्वार कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाएगा। माँ बनने की प्रक्रिया ही अपवित्र बना दी जाएंगी तो सृजन ही दूषित हो जाएगा। इसलिये हर स्त्री पूर्ण पवित्र है, हर पल पवित्र है।