Thursday, August 30, 2018

इन मेहंदी से सजी हथेलियों के लिये

कभी आपने जंगल में खिलते पलाश को देखा है? मध्यम आकार का वृक्ष अपने हाथों को पसारकर खड़ा है और उसकी हथेलियों पर पलाश के फूल गुच्छे के आकार में खिले हैं। गहरे गुलाबी-बैंगनी फूल दप-दप करते वृक्ष की हथेली को सुगन्ध से भर देते हैं। एक मदमाती गन्ध वातावरण में फैल जाती है। जंगल के मन में दावानल जल उठता है, इससे अधिक सुन्दरता कोई चित्रकार भी नहीं उकेर सकता जितनी प्रकृति ने उकेर दी होती है। मैंने कई बार देखी है यह सुन्दरता। बचपन में देखी थी और इन टेसू के फूलों से होली के रंग बना लिये थे। ! (यह टेसू और पलाश एक ही है।) युवावस्था में देखी तो लगा कि जंगल में दावानल दहक रहा है, साक्षात कामदेव ने अपने सारे ही सर-संधान कर दिये हैं। भला ऐसी प्रकृति को छोड़कर कौन शहर की ओर दौड़ना चाहेगा! मन करता कि यही बस जाएं। हर पलाश का वृक्ष निमंत्रण देता सा लगता। लेकिन शहरी जीवन कब जाकर बसा है जंगलों में! इसने तो शहर में ही पलाश की सुन्दरता खोजने का काम कर लिया है। 
मेरी नजर महिलाओं की हथेली पर पड़ी, सुन्दर-गुलाबी सी हथेली और उसपर रची मेहंदी। जब फोटो खिंचवाने के लिये हाथ ऊपर किये तो लगा कि पलाश के वृक्ष ने अपने तने को ऊपर किया है। मुझे हथेली पर पलाश के फूल खिलते दिखायी दिये। लाल-पीली सी मेहंदी और महकती मेहंदी, क्या किसी टेसू के फूल की उपस्थिति से कम है त्योहार पर अनेक हाथ जो मेहंदी से रच गये हैं, जंगल के पलाश-वृक्ष की अनुभूति करा रहे हैं। यह मेहंदी का रंग हथेली के साथ मन में भी रचता है, इस मेहंदी की खुशबू से हाथ ही नहीं महकते अपितु मन भी महकता है और अपनी हथेली में रची मेहंदी से दिल किसी ओर का डोलता है। जैसे जंगल पलाश के खिलने से जादुई हो जाता है, लगता है कि किसी तांत्रिक ने वशीकरण मंत्र से बांध दिया है सभी के मन को, वैसे ही मेहंदी से रचे हाथों में यह ताकत आ जाती है। खुमारी सी छाने लगती है और लगता है हर घर में वसन्त ने दस्तक दे दी हो।
महिलाओं ने मेहंदी का भरपूर प्रयोग किया है, जैसे प्रेम की रामबाण औषधि यही हो। बस कोई भी त्योहार हो, बहाना चाहिये और रच जाते हैं मेहंदी के हाथ। घण्टों तक मंडते हैं फिर घण्टों भर की देखभाल लेकिन घर में कहीं कोई उतावलापन नहीं। अपने हाथ से पानी भी नहीं पीने वाले पुरुष पत्नियों को पानी लाकर पिलाने लगते हैं। सब काम खरामा-खरामा होता है लेकिन घर का धैर्य बना रहता है। बिस्तर की चादर लाल हो जाती है, घर के आँगन में मेहंदी का चूरा बिछ जाता है, वाँशबेसन चितकबरे हो जाते हैं लेकिन कोई शिकायत नहीं। मेहंदी का जादू घर के सर पर चढ़कर बोलता है, उसकी खुशबू से सभी मदमस्त रहते हैं, बस इस इंतजार में कि कब मेहंदी सूखेगी और कब हथेली निखरेगी। जैसे ही हथेली से मेहंदी ने झरना शुरू किया, एक ही चाहत आँखों में बस जाती है कि कितना रंग चढ़ा? इस रंग को प्यार का नाम भी दिया गया कि जिसकी ज्यादा रचे, उसे प्यार अधिक मिले। प्रकृति ने हमें जहाँ टेसू के फूल में भरकर रंग दिये हैं वहीं मेहंदी के अन्दर भी रंग घोल दिये हैं। कुछ लोग मेहंदी के बहाने प्रकृति को घर में न्योत देते हैं और कुछ दूर से ही निहारते रहते हैं। जिसने भी प्रकृति के इस प्रेम की ताकत को पहचाना है उसने प्रेम को भी पहचान लिया है और जिसने इन रंगों को अपने जीवन से दूर किया है, उससे प्रेम भी रूठ गया है। हमारे जीवन में मेहंदी ऐसे ही रची-बसी रहे जैसे जंगल में पलाश। जंगल भी महकेंगे और घर भी महकेंगे। घर भी महकेंगे और मन भी महकेंगे।
विशेष - यह सावन-भादो का महिना हम महिलाओं के लिये विशेष होता है और फेसबुक पर मेहंदी से रची हथेलियों के फोटोज की भरमार है, यह पोस्ट उन्हीं के लिये।
www.sahityakar.com

4 comments:

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

बहुत बढ़िया !

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन गाँव से शहर को फैलते नक्सली - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

अजित गुप्ता का कोना said...

गगन शर्मा जी आभार।

अजित गुप्ता का कोना said...

सेंगर जी आभार।