चलिये आपको 70 के दशक में ले चलती हूँ, जयपुर
की घटना थी। रेत के टीलों से पानी बह निकला था और शोर मच गया था कि गंगा निकल आयी
है। मैं तब किशोर वय में थी। गंगा जयपुर के तीर्थ गलता जी के पास के रेतीले टीलों
से निकली थी और गलताजी जाना हमारा रोज का
ही काम था। गलता के मुख्य कुण्ड से यह स्थान तकरीबन एक किलोमीटर रहा होगा। हमारा
बचपन जयपुर के टीलों पर धमाचौकड़ी करते
हुए ही बीता है, ये टीले जैसलमेर के सम के समान थे, अब तो बहुत जगह बस्ती
बस गयी है तो टीले कम होते जा रहे हैं। रेत के टीलों से गंगा निकलना चमत्कार ही था
और सभी ने इसे चमत्कार ही माना भी।
फिर आया 1980, गलता जी पर इन्द्र देव तूफान
बनकर टूट पड़े और पलक झपकते ही गलता के सातों कुण्ड रेत से सरोबार हो गये। दूर-दूर तक एक मैदान दिखायी देने लगा।
जिन टीलों से गंगा निकली थी, पानी की आवक वहीं से हुई थी। पता लगा कि यहाँ टीलों
पर कच्चा बांध बना था और यहीं से पानी रिसकर जमीन में रेंगता हुआ गलता जी में हर
पल आता रहता था। जिस सत्य को कोई भी वैज्ञानिक नहीं पकड़ पाये वह सत्य अब सबके सामने
प्रत्यक्ष था। जिस वैज्ञानिक ने इस कल्पना को साकार किया था वह ऋषि-वैज्ञानिक थे –
गालव ऋषि। जब उन्होंने इस रचना की कल्पना की होगी तब उनके साथियों ने और जनता ने
इसे असम्भव बताया होगा और जब यह मूर्त रूप में परिणित हो गया होगा तब अनेक परामर्श
आ गये होंगे कि इस कुण्ड को ऐसे नहीं ऐसे बनाना चाहिये था। कुण्ड की लम्बाई इतनी
होनी चाहिये थी आदि आदि।
आज ऐसी ही कहानी दोहरायी जा रही है, जिस समस्या
के समाधान की किसी को कल्पना तक नहीं थी,
उसको मोदीजी ने साकार किया। अब लोग राह चलते परामर्श दे रहे हैं कि ऐसे नहीं ऐसे
योजना लागू करनी चाहिए थी। कुण्ड में जो मोखे बने हैं उसमें फंसकर लोग मर जाते हैं इसलिये ये मोखे नहीं होने चाहिये थे।
पहाड़ पर चढ़कर जब लोग कुण्ड में छलांग लगाते हैं तब लोग इन मोखों में फंस जाते
हैं और मर जाते हैं। नोटबंदी को कारण जब बैंक में पैसा निकालने के लिये लाईन लगती
है तो लोग भूखे-प्यासे हो जाते हैं और कोई तो मर भी जाते हैं, इसलिये इसे ऐसे नहीं
ऐसे लागू करना चाहिये था। कोई कह रहा है कि सात दिन का नोटिस देना चाहिये था, कोई
कह रहा है कि इतने पैसे निकालने की छूट होना चाहिये थी. मतलब की सारे ही ज्ञानी बन
गये हैं। रेत के टीलों से होकर पानी कैसे कुण्ड तक पहुँचेगा यह कल्पना गालव ऋषि ने
की, किसी वैज्ञानिक को पता भी नहीं चला कि यह
पानी किस मार्ग से कुण्ड तक पहुंचता है और पर पल कुण्ड में जाकर गिरता है।
मोदी ने कल्पना की कालेधन को रेत के टीलों पर बांधने की, वहाँ से जमीन के अन्दर से
गुजर कर कुण्ड में समाने की और पूरे देश के लिये एक तीर्थ देने की।
मोदी ने तो कल्पना को साकार कर दिया, अब तुम नुक्ताचीनी
करके अपना ज्ञान बघारलो। तीर्थ का निर्माण तो हो गया अब देश पवित्र जल में डुबकी
लगाने को तैयार है। तुम कुण्ड के मोखों की गणना कर-कर के बचाने के रास्ते ढूंढते
रहो। मोखे तो गालव ऋषि ने जब बनाये थे तो कुण्ड की सुरक्षा के लिये ही बनाये थे,
मौदी ने भी बैंक रूपी मोखों को मजबूत किया है तो कुण्ड की सुरक्षा के लिये ही
किया है। तुम नहीं समझोंगे, इसे कल्पनाकार
ही समझ सकता है, तुम अपने दीमाग को मत लड़ाओ। पानी जिस मार्ग से जाना है उसी मार्ग
से जाएगा और कुण्ड भरेगा ही। अब यह निर्मल पानी का कुण्ड होगा, यहाँ के स्नान से सभी के पाप कटेंगे। कल
तक जो पानी अनुपलब्ध था, खारा था, लोग प्यासे थे अब वही पानी निर्मल हो गया है।
सभी की प्यास अब बुझेगी। अब यह कुण्ड तीर्थ बन गया है और तीर्थ का पानी अमृत हो
गया है।
2 comments:
पुराने जर्जर होते नक़शे से
एक नई तस्वीर बन रही है.
चल रहा है
नवोदय का
अनुष्ठान !
हमारा सौभाग्य कि साक्षी-सहभागी हैं ,
इस महत्आयोजन में .
आभार प्रतिभाजी
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