Thursday, January 2, 2014

कोहरा छाया है, सूरज भैया रजाई में हैं

बस हम जैसे खिटपिटये रजाई से निकल गए हैं और अपने शब्‍दों को जाँचने में लगे हैं कि वे जमे तो नहीं हैं। खिड़की से कोहरे का आनन्‍द लेते हुए शब्‍द धीरे-धीरे सकुचाते हुए बाहर आ रहे हैं।
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2 comments:

अजित गुप्ता का कोना said...

आभार शास्‍त्री जी।

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

वाह...बहुत बढ़िया प्रस्तुति...आप को मेरी ओर से नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं...

नयी पोस्ट@एक प्यार भरा नग़मा:-कुछ हमसे सुनो कुछ हमसे कहो