लगभग 4 वर्ष पूर्व की बात है, फोन पर एक व्यक्तित्व से परिचय हुआ। उन्होंने मेरे आलेखों की प्रशंसा की और अपनी पत्रिका के लिए कुछ आलेख भी मांगे। फोनों का सिलसिला चलता रहा और वे किसी न किसी जानकारी या आलेख के लिए बात करते रहे। कई बार फोन से बात होने पर नाम भी याद हो गया। कोई राजेन्द्र नाथ मेहरोत्रा हैं, विवेकानन्द एकादमी का संचालन करते हैं और ग्वालियर में रहते हैं, बस इतना भर परिचय मेरे मस्तिष्क में था। मैं भारत विकास परिषद के साथ काम करती हूँ तो एक बार ग्वालियर के प्रतिनिधि एक मीटिंग में मिल गए, मैंने जानकारी की दृष्टि से उनसे पूछ लिया कि आप किसी मेहरोत्राजी को जानते हैं। उन्होंने कहा कि बिल्कुल जानता हूँ, वे समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों में से हैं और हमारा भी बहुत सहयोग करते हैं। अभी उन्होंने एक लाख रूपया परिषद के सेवाकार्यों के लिए दिया है और हम जो कार्यक्रम करने जा रहे हैं, उसमें भी उनका बड़ा सहयोग रहेगा। लेकिन वे सहयोग का प्रदर्शन नहीं करते। मेरा उनसे परिचय है, इस बात का विस्मय भी था उनको। कुछ दिनों बाद ही ग्वालियर जाने का अवसर मिल गया और मैंने तत्काल ही मेहरोत्रा जी को फोन किया कि मैं ग्वालियर आ रही हूँ। वे बड़े प्रसन्न हुए और कहने लगे कि आप मेरे निवास स्थान पर ही रूकेंगी। मैंने उनसे क्षमा मांगी और कहा कि मैं आयोजकों की व्यवस्था से ही रूकूंगी लेकिन आपसे मिलने अवश्य आऊँगी।
कुछ दिन पूर्व ही उन्होंने मुझे बताया था कि मैं एक हिन्दी-विश्व गौरव-ग्रन्थ का प्रकाशन करने जा रहा हूँ और उसमें आपका सहयोग भी चाहिए। मेरे ग्वालियर आने के समाचार से वे प्रसन्न हुए और मिलने का समय निश्चित हो गया। वे स्वयं कार्यक्रम स्थल पर आए, उन्हें देखकर विवेकानन्द का स्मरण हो आया। गैरूआ वस्त्र, धवल लम्बी दाड़ी और पूर्ण ओजमयी एवं गरिमामयी व्यक्तित्व। बडे ही स्नेहपूर्वक वे मुझे अपने घर ले गए। उनके सामने मुझे स्वयं का व्यक्तित्व बहुत ही बौना लग रहा था। हमने घर पहुंचते ही सबसे पहले गौरव-ग्रन्थ की ही चर्चा प्रारम्भ की। उनकी पूरी टेबल पत्रावलियों से भरी थी। हिन्दी साहित्य का ऐसा कोई हस्ताक्षर नहीं था जिससे उन्होंने पत्र व्यवहार नहीं किया हो। एक-एक अध्याय के बारे में हमने वार्ता की, उन्होंने विस्तार से अपनी पूरी योजना को मेरे समक्ष रखा।
हिन्दी का विश्व क्या है और विश्व में हिन्दी कहाँ खड़ी है इसका समग्र चिंतन उस ग्रन्थ की विषय-वस्तु थी। उनका संग्रह देखकर दंग हुए बिना नहीं रह सकी। हिन्दी क्षेत्र से इतर व्यक्ति जो कभी भारतीय सेना को अपनी सेवाएं देकर सेवानिवृत्त हुए हो, का हिन्दी साहित्य के प्रति इतना अनुराग देखकर आश्चर्यचकित रहने के अतिरिक्त और कुछ नहीं था मेरे पास। मेरे सुझावों को उन्होंने बहुत ही स्नेह भाव से माना। इतने बड़े व्यक्तित्व के समक्ष वैसे भी भला मैं क्या सुझाव देती? एक यादगार मुलाकात के साथ मैं ग्वालियर से लौटी। इसके बाद भी ग्रन्थ के बारे में फोन पर बातचीत होती रही। सौभाग्य से एक वर्ष बाद पुन: ग्वालियर जाना हुआ और फिर उनसे मिलने का सुअवसर भी। ग्रन्थ के बारे में भी रुचि बनी हुई थी क्योंकि उसका कार्य प्रारम्भ हुए काफी लम्बा समय व्यतीत हो गया था। इस बार फिर उन्होंने मुझे प्रत्येक खण्ड के बारे में विस्तार से बताया और कहा कि इसका स्वरूप इतना वृहत हो चुका है कि समझ नहीं आ रहा कि कार्य कब पूरा होगा?
लेकिन अभी 17 अप्रेल को उनका फोन आया और उन्होंने बताया कि ग्रन्थ इतना विशाल हो गया था कि उसे तीन खण्डों में प्रकाशित किया है। उसका प्रथम खण्ड प्रकाशित हो चुका है और मैं उसे आपके पास भेज रहा हूँ। आप उसकी समीक्षा करके मुझे शीघ्र भेजें जिससे मैं दूसरे खण्ड में उस समीक्षा को प्रकाशित कर सकूं। मुझे दूसरे दिन ही दिल्ली के लिए निकलना था, मैंने उन्हे बताया कि कल दिल्ली जाना है तो वहाँ से आने के बाद ही आप भिजवाएं। लेकिन उन्होंने कहा कि मेरा एक परिचित आज ही उदयपुर जा रहा है उसके साथ ग्रन्थ भेज रहा हूँ, आप दिल्ली साथ ही लेकर जाएं। मेरे ट्रेन के समय से पूर्व मुझे ग्रन्थ मिल गया। 252 ग्लेज और रंगीन पृष्ठों का ग्रन्थ वजनी भी था, लेकिन उसका कलेवर देखकर वजन उठाने का दृढ़ संकल्प कर लिया। यात्रा अकेले ही करनी थी और किस्मत से मेरे आसपास मेरे कोच में दूसरा यात्री भी कोई नहीं था। तो पूरे तीन घण्टे मुझे ग्रन्थ को पढ़ने का समय मिल गया। एक व्यक्ति का चिंतन इतना विस्तारमय होगा कल्पना नहीं की जा सकती। हिन्दी का कोई भी पक्ष छूटा नहीं है, यह तो अभी प्रथम खण्ड है, अभी दो खण्ड आने शेष हैं। मैंने अपनी समीक्षा में यही लिखा कि यह पुस्तक ना होकर हिन्दी साहित्य प्रेमियों और शौधार्थियों के लिए पुस्तकालय है। आप सब लोग भी ऐसे ग्रन्थ और ऐसे व्यक्तित्व से परिचय में आएं इसलिए मैंने यहाँ विस्तार से लिखा है। हमारे समाज में कितने ही ऐसे व्यक्तित्व हैं जो नि:स्वार्थ भाव से देशहित में कार्य कर रहे हैं। मैंने इस ग्रन्थ के आर्थिक पक्ष के बारे में जब उनसे पूछा तो उन्होंने कहा कि सब ऊपर वाला करेगा। एक बात और बताना चाहूंगी कि मेहरोत्राजी ने जो पत्र-व्यवहार और फोन से सम्पर्क किया है उसका मूल्य शायद इस ग्रन्थ से भी अधिक हो। उनका कक्ष ही उनका शयन कक्ष भी बन गया है, वे इतनी आयु होने के बाद भी दिन-रात साहित्य की सेवा में लगे हैं। उनसे मिलना, उनका सानिध्य पाना एक विलक्षण अनुभव है। इस ग्रन्थ का विमोचन सम्भवतया: दिल्ली में हो, आज इसीलिए वे दिल्ली गए हैं। दिनांक निश्चित होने पर आप सभी को सूचित करूंगी। यदि आपमें से किसी को भी इस ग्रन्थ को देखने और पढ़ने का मन हो तो आप डॉ. राजेन्द्र नाथ मेहरोत्रा, कर्मण्य तपोभूमि सेवा न्यास प्रकाशन, ग्वालियर से सम्पर्क कर सकते हैं। बस मेरा तो इतना कहना है कि इस अद्भुत ग्रन्थ को अवश्य पढ़ना चाहिए।
29 comments:
एक मूर्धन्य साहित्यकार से परिचय कराने के लिए आभार डॉ.गुप्ता जी ॥
डॉ. राजेन्द्र नाथ मेहरोत्रा,जी का परिचय पा कर बहुत खुशी हुयी। उन्हें शुभकामनायें। धन्यवाद।
डॉ. राजेन्द्र नाथ मेहरोत्रा,जी का परिचय पा कर बहुत खुशी हुयी।
शुभकामनायें। धन्यवाद।
in jankariyon ke liye bahut-bahut dhanybwad.
ये तो बहुत बढिया जानकारी उपलब्ध करवाई है…………आभार्……………पढना तो जरूर चाहेंगे।
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (12-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
डॉ. राजेन्द्र नाथ मेहरोत्रा,जी का परिचय पा कर बहुत खुशी हुयी। आपका धन्यवाद.
Aapka aalekh padhne ke baad granth padhne kee ichha jagrut ho gayee hai!
मेहरोत्रा जी से मिलाकर आपने बहुत बढिया काम किया है |
सचमुच इस उम्र में हिंदी के प्रति इतनी लग्न देखकर आश्चर्य हो रहा है ।
ग्रन्थ के लिए मेहरोत्रा जी को शुभकामनायें ।
डॉ. राजेन्द्र नाथ मेहरोत्रा,जी का परिचय पा कर बहुतअच्छा लगा । धन्यवाद।
परिचय कराने का बहुत बहुत आभार। निश्चय ही पढ़ेगे यह।
इस ग्रन्थ की विषय वास्तु क्या है यह जानने की मन में उत्सुकता पैदा हो गयी है.
डॉ. राजेन्द्र नाथ मेहरोत्रा जी जैसे महान साहित्यकार का परिचय करवाने का धन्यवाद
डॉ. राजेन्द्र नाथ मेहरोत्रा जी के बारे जानकार बहुत अच्छा लगा, कभी भारत आये तो जरुर यह ग्रन्थ भी देखेगे, आप का धन्यवाद
राजेन्द्र नाथ जी से परिचय अच्छा लगा ...आभार
इतनी महान हस्ती का परिचय पाकर बहुत प्रसन्नता हुयी -आभार।
डॉ.मेहरोत्रा का परिचय प्रभावशाली परिचय जानकर अच्छा लगा..भारत आने पर ग्र्ंथ पढ़ने के उपाय खोजेंगे..
डॉ. राजेन्द्र नाथ मेहरोत्रा जी के व्यक्तित्व का परिचय बहुत ही आत्मीयता से दिया है, आपने
इतने विलक्षण व्यक्तित्व वाले साहित्यसेवी से परिचय करवाने का बहुत बहुत आभार
बहुत ही बढ़िया और महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई! धन्यवाद !
Dr rajendra nath ji ke bare me jankar bahut laga. jis mehanat aur lagan se ve hindi sahitya ki seva me lage hai vah vakai kabiletariff hai.
ajit mem !
pranam !
aap ke dwara hume bhi dr rajendra naath jee se parichay hua , achcha laga ek vibhuti se parchay . aap ke dwara unhe bhi pranam 1
SAADAR
डॉ राजेन्द्र जी से परिचय अच्छा लगा । उनकी शालीनता और साहित्य सेवा अनुकरणीय है।
यही वे लोग हैं जिनके भरोसे कोई भी भाषा अपनी यात्रा यूं तय करती है.डॉ. राजेन्द्र नाथ मेहरोत्रा जी साधुवाद.
बढिया जानकारी
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
इस पोस्ट पर आपकी टिप्पणियां मेरे लिए उपयोगी हैं। आप सभी का आभार।
सच में डा.राजेन्द्र नाथ मेहरोत्रा जी के बारे में इतनी गहन जानकारी से मन गदगद है। आपका बहुत बहुत शुक्रिया।
डॉ. राजेन्द्र नाथ मेहरोत्रा जी से मिलकर अच्छा लगा.
nice details of dr rajendra nath .
thanx.
डॉ. राजेन्द्र नाथ मेहरोत्रा,जी का परिचय पा कर बहुत अच्छा लगा ।
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