कभी आपके साथ भी ऐसा होता होगा कि किसी मानवीय असंवेदनाओं के कारण या अव्यवस्थाओं के कारण आपका मन दुखी हो उठा हो लेकिन प्रतिक्रिया करने में अपने आपको अक्षम पा रहे हों। मन करता है कि तुम चीखो और कहो कि यह असंवेदना है, लेकिन जुबान पर ताले पड़ जाते हैं। क्यों? क्योंकि ये असंवेदनाएं हमारे आसपास से उगी हैं, हम हमारे ही व्यक्तियों पर आरोप मढ़ने से बचना चाहते हैं। ऐसे ही अव्यवस्थाएं कभी ऐसे विकसित देशों की उजागर हो जाती हैं जिनका जिक्र करने से न जाने कितनी नागफणियां खंजर बनकर आप पर आक्रमण कर देती हैं। तब मौन के सिवाय कुछ करने को नहीं होता है। बस चित्त रोता है।
बहुत दिनों से कोई पोस्ट नहीं लिखी, अपने विचारों को लेकर आपके मध्य नहीं आ पायी। पहले ग्वालियर चले गयी थी और फिर पारिवारिक शोक और बीमारी से पीडित रही। आज भी हूँ। लेकिन मन में जो घुट रहा है, उसे शब्द देने का सामर्थ्य नहीं जुटा पा रही हूँ। परिवार में मृत्यु हुई है, लेकिन वहाँ भी हम अहम् को तलाशते हैं। सबके अपने अपने स्वर हैं, कोई धर्म से प्रेरित है और अर्थ से। हम जैसे लोग रास्ता खोजते हैं और समाधान भी निकाल देते हैं लेकिन मन प्रतिपल प्रश्न करता है कि मनुष्य इतना असंवेदनशील क्यों होता जा रहा है? दुख में भी वह कैसे अहम् को ही पुष्ट करने में लगा रहता है? मेरी इस पोस्ट के कोई मायने नहीं हैं, ना ही कोई उत्तर। बस मन को हल्का करने के लिए कुछ लिख दिया है। कभी मृत्यु से अधिक इन्हीं असंवेदनाओं से मन व्यथित हो उठता है, तब कुछ शब्द कलम से निकल ही जाते हैं। क्योंकि मृत्यु तो शाश्वत है लेकिन हम मनुष्यों में संवेदनाएं भी शाश्वत बनी रहनी चाहिए।
जय शंकर प्रसाद की पंक्तियां है –
मृत्यु, अरी चिर निद्रा तेरा रूप हिमानी सा शीतल,
तू अनंत में लहर बनाती काल जलधि की सी हलचल।
मृत्यु का रूप तो बर्फ की तरह शीतल होता है लेकिन मनुष्य क्यों शीतल हो जाता है? आज बस इतना ही, अभी आप लोगों के ब्लाग पर भी टिप्पणियां नहीं कर पा रही हूँ, लेकिन शीघ्र ही मन स्वस्थ होगा।
27 comments:
मानवीय असंवेदनाएं और अव्यवस्थाएं आज समाज में कूट कूट कर भरी हैं । अज्ञान का अन्धकार भरा पड़ा है ।
खुद ही समझना पड़ता है ।
आशा है जल्दी ही चित शांत होगा अजित जी ।
वेदनाएं, संवेदनाएं, या असंवेदनाएं........सब मॄत्यु के पार....ही क्यों उपजती हैं--तलाश जारी है....पर
बस मन शान्त बना रहे ...
बिल्कुल सही कह रही है ं आप …………॥ऐसे लम्हे हर शख्स की ज़िन्दगी मे आते है जब वो खुद को असहाय महसूस करते है और कुछ कर भी नही पाते…………साथ ही असंवेदनायें कैसे झकझोरती हैं इन्हे वो ही समझ सकता है जिस पर ये गुजरी हो……………ईश्वर से प्रार्थना है आपके मन को शांति प्रदान करे ।
शोक के समय भी अहम ...सबके अपने अपने विचार ..सामने दिखती असम्वेदना मन को आहत करती हैं ..उस समय भी इंसान नहीं सोच पाता कि उसकी भी यही गति होनी है .... सबसे बड़ी बात है कि हर इंसान को पता है कि एक दिन सबको जाना है फिर भी लोग क्यों इस बात से परे रह कर व्यवहार करते हैं ...
आप स्वस्थ हों और मन शीघ्र शांत हो इन्हीं कामनाओं के साथ
जो लोग असंवेदनशील बन जाते हैं मृत्यु जैसे सच को भी देख कर....ये कितनी बड़ी विडम्बना है की इसी सच का सामना कभी उन्हें भी करना पड़ेगा...भूल जाते हैं की उनकी मृत्यु पर भी अगर ऐसा असमवेदनशीलता का व्यवहार हो तो कैसा लगेगा...अगर ये सब नहीं चाहते तो....संभाल ले खुद को...
आपका मन जल्द ही शांत हो...इन्ही कामनाओं के साथ.
आप शीघ्र ही स्वथ्य हों यह कामना है। मन भी स्वस्थ हो। पर मैं कहूंगा कि मन अशांत ही रहे। क्योंकि यह अशांति ही आपसे कुछ रचनात्मक करवाएगी। कृपया अन्यथा न लें। शुभकामनाएं।
ममा....मैं आपको अभी सीधा फोन ही करता हूँ.... आप उदास हैं....तो मैं भी उदास हूँ...
.आपने सही कहा , जब मन भर जाता है तो उसे शब्दों के रूप में निकाल देना ही उसको हल्का करने का उपाय होता है . वैसे हमारी संवेदनाएं वक्त ने हर ली हैं . हम किसी मृत्यु का शोक कितने देर मानते पाते हैं, जो इससे दुखी हैं उनके पीछे कि चिंताओं की चर्चा वहीं होने लगती है जैसे कि चर्चा मंच हो.
आपके स्वास्थ्य लाभ कि कमाना करती हूँ.
रेखा जी, मेरे लिखने से यह भ्रम बन गया कि मैं बीमार हूँ, ऐसा नहीं है। अमेरिका में रह रहा मेरा पोता बीमार है इस कारण मन दुखी है।
आज हर तरफ यही हाल है संवेदनाएं तो कब की मर चुकी हैं और हम इन मरी हुई संवेदनायों की वेदना पर रोते हैं
मुझे पता नही आप किस मृत्यू की बात कर रही हैं मगर आजकल मैं भी इसी शोक मे से गुजर रही हूँ इस लिये आपकी हालत समझ सकती हूँ। लेकिन पोते को क्या हुया? उसके लिये भगवान से प्रार्थना है कि वो जल्दी ठीक हो। शुभकामनायें। मेरा फोन नो है
09463491917
01887 220377 अगर लैंड लाईन पर करें तो सही होगा आज कल बी एस एनेल वालों का मोबाईल टावर सही नही है। आप मुझे अपना फोन नं भी मैल कर दें ,मैं बात कर लूँगी। शुभकामनायें
मृत्युः सर्वहरश्चाहम उद्भवश्च भविष्यताम्।
कीर्तिः श्रीर्वाक च नारीणां स्मृतिर्मेधा धृतिः क्षमा॥
(श्रीमद्भगवद्गीता)
आपने जो ज़िक्र किया वे ही शायद मानवीय सीमायें हैं।
किसी शायर ने कहा है 'दिन मे जुगनू पकडने की ज़िद करें बच्चे हमारी अहद के चालाक हो गये है...
मानवीय सम्वेदना भी ऐसा ही खेल खेलती रहती है कभी आप जीत जाते है तो कभी हार...
डा.अजीत्
मृत्यु का विचार मात्र हर व्यक्ति पर अलग प्रभाव डालता है।
Maut to palke chup gahri neend sulati hai..ye to zindagi hai jo neende churati hai...
उस पार न जाने क्या होगा?
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भारत के पूर्व राष्ट्रपति
डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म-दिन
शिक्षकदिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
वो जो चीख है मैम, जिसको आप चाह कर भी शब्द नहीं दे पा रहीं...सबका पहचाना हुआ, जाना हुआ है, समझा हुआ है।
दिवंगत आत्मा को शांति और शोकाकुल परिवार को संबल की दुआ।
आप आ गयीं वापस?
ये कुछ विषय ऐसे हैं जिन पर कितना ही सोचा जाए मन शांत नहीं होता बल्कि और भी गंभीर होता जाता है.. गीता भी एक हद तक ही साथ देता है..
लिखती रहें।
लिखक़्ने से मन को बहुत शांति मिलती है।
और एक दिन ...
दु:खों की रजनी बीच
होगा सुख का नवल प्रभात।
... जीवन तो बस चलते ही जाना है।
.
इश्वर से प्रार्थना है , आपको हिम्मत दे, और आपके पोते को शीघ्र स्वास्थ्य करे।
.
पौत्र-स्वाथ्य की चिंता तू है धरती में आया कम्पन.
तू ह्रदय का रक्त दौड़ाती कभी तेज़-कम हो धड़कन.
पोते की चिंता तो धरती के कंप की तरह से है जो ह्रदय के रक्तचाप और धड़कन को सामान्य नहीं रहने देती. जिस कारण माँ का ह्रदय व्यथित हो जाता है. मन स्वास्थ्य खो देता है.
ईश्वर से प्रार्थना >>> आपको हिम्मत मिले, और पोते को स्वास्थ्य मिले.
आपके दुख और उदासी में हम भी शामिल हैं...बात तो आपने सही कही...असंवेदनशीलता भी जैस बंटी हुई है...किसी के प्रति तो अति संवेदनशील...और कहीं बिलकुल बेरुखी...
आशा है कि अब आप स्वस्थ व प्रसन्नचित्त होंगी ॥
marmik aur man choo naje wali post ke liye shukriya.....asanvendanshilta to hamare charon aur hai hi
इन स्थितियों को झेलते -झेलते कभी कभी लगता है मन जड़ होँ गया पर मनो-भावना शब्दों में भले न व्यक्त हो भीतर लगातार कुछ चलता रहता है.अजीत जी ,चित्त की स्थिरता आयेगी ही -बस कुछ समय यह सब बीत जाने के लिए!
ईश्वर से प्रार्थना है आपके मन को शांति प्रदान करे ।
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