मैं कल एक कार्यक्रम में भाग लेने छोटी-सादड़ी गयी थी। मेरे साथ हमारे पड़ोसी और सहकर्मी हमारे मित्र भी थे। वे अपने परिवार की निगाह में थोड़े अडियल माने जाते हैं, लेकिन उनके परिवार से ज्यादा वे स्वयं को अडियल स्वीकार करते हैं। शाम को जब कभी एकत्र बैठते हैं तो कई बार अपने मन की बात भी बता देते हैं और हम आपस में परामर्श भी कर लेते हैं। कार्यक्रम पश्चात वापस आते समय उन्होंने मुझे अपने मन की बात बतायी। शायद उसका कारण भी था कि मैंने परिवार पर अपना उद्बोधन दिया था। इसलिए वे बोले कि अभी दो दिन पहले मैंने स्वयं का आकलन किया। मैंने विचार किया कि क्या मैं अपने बेटे के साथ कहीं कठोर तो नहीं रहा? ऐसा तो नहीं कि मैंने उसका बचपन छीन लिया हो? वे बोले कि जब मैं कोई फिल्म देखता हूँ और उसमें पाता हूँ कि आज की युवा पीढ़ी बहुत मस्ती करती है लेकिन मैं तो उसे अनुशासन का पाठ पढ़ाता रहा हूँ, ऐसा तो नहीं है कि उसे आज लग रहा हो कि मैंने यह सब नहीं किया। वे बोले कि मैं अपराध-बोध से ग्रसित होकर अपनी पत्नी से पूछ रहा था। पत्नी ने कहा कि इस बात का उत्तर तो सोच-समझकर दूंगी। पत्नी तो पत्नी ही होती है भला पति को हीनभावना का शिकार कभी होने देती है? उसने कहा कि आपकी चिन्ता बेकार है, आपने बेटे को सभी कुछ दिया है। पत्नी ने अपनी बेटियों से भी बात की कि तुम्हारे पापा सेन्टी हो रहे हैं। बेटियों ने भी कहा कि नहीं उसने वो सारे कार्य किये है जो एक लड़का अपनी उम्र में करता है, इसलिए आप दुखी मत होइए।
उन्होंने जब ये सारी बाते मुझसे शेयर की तब मेरे मन में एक विचार कौंधा। अभी दो दिन पूर्व ही वे दोनो पति-पत्नी घर आए थे और उन्होंने बताया था कि बेटे की शादी पक्की कर दी है। आज उनका अपने बारे में आकलन करना कहीं बेटे की शादी अर्थात नयी-बहु के आगमन के कारण तो नहीं है? मुझे चार वर्ष पूर्व का काल याद आ गया। जब मेरे घर में भी बहु आने वाली थी। मैं अपने पतिदेव के स्वभाव से थोड़ा चिन्तित थी कि कहीं ऐसा ना हो कि वो बहु के सामने भी अपना स्वभाव नहीं बदले और एक पति ही बने रहे। लेकिन मेरे लिए परम आश्चर्य का विषय था कि मेरे पतिदेव एकदम ही बदल गए। माँ होने के नाते तो मुझे मालूम है कि एक स्त्री को उस समय कैसा अनुभव होता है। माँ तो उस समय इतना खुश होती है जैसे उसे कौन सा खजाना मिलने वाला हो? बस बेटे का घर बसेगा, शायद माँ के लिए सबसे बड़ा सुख यही होता है। उसके घर में भी फिर से मेंहदी लगे पैरों की छाप लगेगी। घर में जो यौवन बीत गया था वो वापस लौट आएगा। चारों तरफ बस खुशियां ही खुशियां होंगी।
मैं जब आप सभी पुरुषों से प्रश्न कर रही हूँ तब अपनी बात भी ईमानदारी से रखूंगी। माँ के मन में तो बस एक ही डर होता है कि आज जो मेरा घर है, जिसे मैंने बड़े प्यार से सजाया है कहीं उसमें कोई ग्रहण ना लगा दे? आज की सास का मन भी मैंने देखा है और अक्सर कहते सुना है कि हमारे दिन तो बीत गए लेकिन अब मैं अपनी बहु को हथेलियों पर रखूंगी। सास और बहु के रिश्ते में इतना प्यार भर दूंगी कि यह रिश्ता सबसे अधिक प्रिय हो जाए। लेकिन जब मैंने मेरे पड़ोसी को बदलते देखा और अपने पतिदेव को भी बदलते देखा तो आज स्वाभाविक रूप से यह चाहत जागी कि आप सभी से प्रश्न करूं कि क्या आप भी बदले थे या बदलेंगे? घर में नयी बहु के आगमन के समाचार से आपके मन में क्या विचार आए थे?
21 comments:
मैं लानेवाली हूँ बहू......खुशियाँ छलकी जाती है, बस लगता है... जिस बेटे को बाहों में झुलाते कल्पनाएँ मेरी आँखों में मचलती थीं, वो सब मेरे सामने आनेवाला है............
मैं तो अभी अनुभव हीन हूँ ,समय भी अभी काफी है -मगर मैंने सेन्स किया है की यह सवाल अओकी हेशा असहज सा करता रहा है -मुझे तो न खुशी होगी नागम!
aapki baat bilkul jayaj hai....ye post padhkar bas yahi soch rahi hu ki....sabhi ourato ki saoch aap jaisi ho jaye to...
मेरा विचार है कि बहू को वह सारे हक़ बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के देने चाहिए जो मेरी पुत्री अथवा बेटे के हैं और इससे भी अधिक आवश्यक है पुत्री के घर वालों को वही आदर सम्मान देना जो हम उनसे अपेक्षा करते हैं !
आपके अनुभवों से कुछ शिक्षा हम भी ले लेगे!
बहुत सुंदर सवाल खडा किया है आपने. पर इसका अभी अनुभव नही है. पर आपकी बताई बातों को ध्यान मे अवश्य रखेंगे. बुढऊ ब्लागर्स एशोसियेशन के मेंबर्स के लिये यह बहुत काम की पोस्ट है. अगली मिटींग मे आपका यह सवाल वहां पूछा जायेगा.
रामराम.
काफी छोटा हूँ ये जबाब देने के लिए लेकिन देखा है की हर माँ सुरूं में बहुत खुश होती है लेकिन बेटे को हर बात बहु को बताते हुए देखकर असुरक्षा की भावना से गर्सित हो जाती है. और फिर सुरु हो होती है "कहानी घर घर की" खेर अब रही मर्दों की बात तो मर्द सरीर से कितना भी मजबूत हो,कितने वसूलों, और सक्त अनुसासन वाला हो लेकिन बहु के सामने बिलकुल निर्मल हो जाता है. पता नहीं क्यों पर ये घटना सत्य ghthnayon पर आधारित है
jab bahu layenge aapko yaad karenge..
aapki baato ko maanNe ki koshish karenge...aur khud ko bhi soch-soch badla karenge....ha.ha.ha...abhi to yahi kah sakti hu..
bahut acchhi post..tau ji aapke agle action ka intzar hai.
आज तो आपने पुरुषों के मन को जानने की इच्छा दिखाई है....पर किसी भी नए व्यक्ति के घर में आगमन से परिवर्तन तो स्वत: ही होता है..
अभी मेरा कार्तिक केवल ३ साल का है सो इस बारे में कुछ भी बोल पाना मेरे लिए भी बेहद कठिन है पर हाँ यह बात बिलकुल सच है की जब भी कोई नया व्यक्ति आपके घर या परिवार में आता है तो थोडा बहुत बदलाव तो सब में होता ही है !
संसार में प्रत्येक व्यक्ति के मनोभाव और विचार अलग अलग होते हैं किन्तु कभी कभी दो व्यक्तियों के क्रियाकलाप एक जैसे भी दिखाई दे जाते हैं। संयोग से आपके मित्र और आपके पति दोनों के ही क्रियाकलाप मिल गये। किन्तु ऐसा नहीं है कि अन्य पुरुष भी बहू आने पर चिन्तित हों।
जिस प्रकार से बेटे के घर बसने से माँ का हृदय खुशियों से भर जाता है उसी प्रकार से पिता को भी अपने बेटे की खुशी देखकर अत्यन्त गर्व होता है।
हम्म्म्म... बुढऊ ब्लागर्स एशोसियेशन का एक्सपर्ट ओपीनियन लेना ही पड़ेगा
feeling proud to be your sister
kiran
feeling proud to be your sister
kiran
y .ah manav swebhav hei jo khud ka aankalan karta rahta hei mujhe bhi kabhi lagta hei ki adiyal hei kabhi lagta hei baccho ko jyada hi choot thei rakhi hei .aur jab koi naya mahaman ghar mei anei wala hota hei to analyse karte hei how to behave &react sp BHAU man to aasman mei udta hei per thoda darta bhi hei.males also feels but
they react less.
सतीश सक्सेना जी से सहमत हूँ ।
अजित जी ,
आपके पति में आपने क्या बदलाव देखे ये तो बताया नहीं आपने ....ये तो पुरुष की मानसिकता पर आधारित है ...सभी पुरुषों में अलग अलग तरह के बदलाव देखे जाते हैं .....पर ये बदलाव बस कुछ ही दिन के होते हैं ...समय के साथ साथ फिर वही ...अपनी सामान्य ज़िन्दगी ....!!
अभी इस बात का अनुभव नही हुवा ... वैसे २ बेटियाँ है इसलिए होगा भी नही ... पर मेरा मानना है की समय और परिस्थिति अनुसार परिवर्तन ज़रूर आना चाहिए ...
Monday, April 26, 2010
अजित गुप्ता जी(अजित गुप्ता का कोना ब्लॉग) को बधाई / असीम त्रिवेदी जी ,तारकेश्वर गिरी जी ,अमित शर्मा जी और भावेश जी का धन्यवाद / समीर लाल जी,अजय कुमार झा जी,सुमन जी ,प्रवीन पांडे जी ,देव कुमार झा जी जैसे ब्लोगरों के विस्तृत टिप्पणी का इंतजार है / इस पोस्ट को पढने के लिए निचे पते पर जाएँ / इस पते को कॉपी कर सर्च बॉक्स में पेस्ट कर सर्च करें /
http://honestyprojectrealdemocracy.blogspot.com/2010/04/blog-post_26.html
आप सभी के विचार जाने, लेकिन यह पोस्ट ब्लागवाणी के कारण आप तक ठीक से नहीं पहुंच पायी। पता नहीं क्यो पोस्ट से मेरी फोटो हटा ली गयी। हम कभी और आपसे इस बारे में विचार जानेंगे। अभी तो मैं अमेरिका जा रही हूँ, दूसरी पोस्ट देखिए।
आदरणीय अजित गुप्ताजी, नमस्कार। आॅनेस्टी प्रोजेक्ट ब्लॉग पर आपके कमेण्ट्स देखकर मन प्रसन्न हुआ। आपने भारतीय समाज के उन क्षेत्रों को भलीभांति चिह्नित किया है, जहां सबसे पहले और सबसे अधिक सुधार की आवश्यकता है।
–डॉ. मोहनलाल गुप्ता
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