श्रीमती अजित गुप्ता प्रकाशित पुस्तकें - शब्द जो मकरंद बने, सांझ की झंकार (कविता संग्रह), अहम् से वयम् तक (निबन्ध संग्रह) सैलाबी तटबन्ध (उपन्यास), अरण्य में सूरज (उपन्यास) हम गुलेलची (व्यंग्य संग्रह), बौर तो आए (निबन्ध संग्रह), सोने का पिंजर---अमेरिका और मैं (संस्मरणात्मक यात्रा वृतान्त), प्रेम का पाठ (लघु कथा संग्रह) आदि।
Thursday, February 18, 2010
माफ करना टिप्पणी नहीं कर पाएंगे
तीन दिन के लिए ग्वालियर जा रहे हैं, आपके ब्लाग पर नहीं आ पाएंगे और ना ही टिप्पणी कर पाएंगे। आने के बाद एक-एक की खबर लेंगे। सच आप लोगों की बहुत याद आएगी। आप लोगों से भी गुजारिश है कि इन दिनों सारी बेकार पोस्ट ही डालिए, न पढ़ने का गम रहें ही नहीं। बढ़िया से रहिए, आपस में झगडा मत करिए। घर में बड़ों का कहना मानना, समय पर खाना खा लेना यह नहीं कि सारा दिन कम्प्यूटर पर ही लगे रहो। मुझसे कोई भी काम हो तो मेरे मोबाइल 94141 56338 पर बात कर लेना। अपना भी ध्यान रखना और पडोस का भी। बाय।
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15 comments:
आपकी यात्रा मंगलमय हो ....हम लोग अपना ख्याल रखेंगे ......और आप भी अपना ख्याल रखियेगा .
आपकी यात्र मंगलमय हो , या्त्रा के दौरान अपना ख्याल रखियेगा , फिर भी अगर कोई दिक्कत हो तो मुझसे इस नम्बर 09891584813 पर संर्पक करियेगा
आपकी यात्रा मंगलमय हों. आपकी सारी नसीहते गांठ बांध ली हैं, अच्छे बच्चों कि तरह रहने की कोशीश करेंगे.
रामराम.
जी, आपकी नसीहतों पर अमल करने का हरसंभव प्रयास करेंगें :)
आपकी यात्रा मंगलमय हो.....
आपकी यात्रा मंगलमय हों ....
यात्रा मंगलमय हो -किन्तु यह सदेश तो उस स्क्रिप्ट में है जिमें अमूमन पत्नियाँ औरतों को हिदायते देती हैं जब वे मायके जाती हैं !
nice
ham aapki baat manane ki koshish karenge...aap bhi apna khayal rakhiyega..jyada idhar-idhar ghumiyega mat..time se ghar wapis aa jaaiyega..hamlog intezaar kar rahe hain..
अजित जी , एक ही बार में इतनी नसीहतें दे डाली।
खैर ध्यान रखेंगे।
शुभयात्रा।
आपकी यात्रा मंगलमय है आप चिन्ता मत करें मै हूँ न तब तक सब को डाँट के रखूँगी। नही कोई मानेगा तो आपका नाम ले दूँगी हा हा हा । शुभकामनायें
हम तो पोस्ट ही नहीं डालेंगे. :)
यात्रा मंगलमय हो!
आने के बाद एक-एक की खबर लेंगे।
...
...
देखते हैं।
आप भी ठीक से रहिएगा। अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखिएगा।
न भूलने लायक बेहतरीन अंदाज़, आपके इस अपनापन को शुभकामनायें !
ओह ग्वालियर, मेरा शहर है। मैं तो महीने में एक ही बार जा पाता हूं लेकिन मेरी मां अब भी वहीं रहती हैं। वो ग्वालियर छोड़कर मेरे साथ दिल्ली में रहने को तैयार नहीं है। सचमुच ग्वालियर की तासीर ही ऐसी है। ग्वालियर में हर 100-200 मीटर पर ठेलों पर मिलने वाली चाट ज़रुर खाइयेगा, हाइजीन का ध्यान रखे बगैर, बड़ी मज़ेदार होती है।
ADERNIYA DIDI aap to vaise bhi hamare blog per tashreef nahi latin aapse kya shikayat karenge hum.anuways...happy journy!
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